द्वारका, दिल्ली। केंद्र सरकार के शहरी विकास मंत्रालय के अधीन आने वाला दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता मिशन को मुंह चिढ़ा रहा है। द्वारका के सेक्टर-7 व 10 में लगाए गए जैव शौचालय की दुर्गति देखकर लगताहै कि प्रधानमंत्री के स्वच्छता मिशन को असफल बनाने में उनका ही विभाग जुटा हुआ है।
बताते हुए दुःख होता कि डीडीए ने द्वारका में लगाए गए जैव शौचालय के रखरखाव की कोई व्यवस्था नहीं की है। शौचलय में गंदगी की कौन कहे, सीटों में ढक्कन, फ़्लश और नल की टोंटी तक गायब हैं। डीडीए ने जैव शौचालय के निर्माण से लेकर इसके रखरखाव के लिए करोड़ों का ठेका एक निजी एजेंसी को दिया है।
डीडीए के क्षेत्रीय मुख्य अभियंता डी.पी. सिंह द्वारा ‘द हिंदू’ अखबार को दिए एक साक्षात्कार के अनुसार, ‘एक जैव शौचालय को लगाने पर एक लाख रुपए का खर्च आया है और इसके रखरखाव पर प्रति वर्ष 2 लाख रुपए खर्च हो रहे हैं। द्वारका में ऐसे 100 जैव शौचालय का निर्माण होना है।’ अर्थात केवल द्वारका में जैव शौचालय के निर्माण पर एक करोड़ रुपए और इसके रखरखाव पर प्रति वर्ष दो करोड़ रुपए खर्च होंगें।
निजी कंपनी को तीन साल का ठेका दिया गया है अर्थात वह तीन साल तक ऐसी दयनीय जैव शौचालय के लिए ही करदाताओं के करोड़ों रुपए लूटे लेगा और डीडीए के अधिकारी आज की तरह ही कहेंगे कि यह मेरा काम नहीं, एजेंसी का काम है।
ऐसा लगता है कि केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के अधीन आने वाले दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के अधिकारियों द्वारा अपने ही प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन को पटरी से उतारने की कोशिश हो रही है। ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने जो सर्विस टैक्स बढ़ाया है, उसमें स्वच्छता मिशन के लिए अतिरिक्त कर का प्रावधान है। तो क्या आम जनता का कर ऐसे निजी एजेंसियों और एजेंटों की जेब में जा रहा है। यह तो एक छोटा उदाहरण है। ऐसे और न जाने कितने उदाहरण भरे पड़े हैं, जिसमें सरकारी और निजी एजेंसी प्रधानमंत्री के सपने और जनता के धन को लूटने की कोशिश में जुटे हैं।
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