अगर आपको क्रूरता और पक्षपाती न्यायप्रणाली का दर्शन करना हो तो इस देश के संत आशाराम बापू पर लगे आरोपों का और इसी के लगभग समानांतर जालंधर चर्च के बिशप पर लगे आरोपों का केस देखिए। आप दोनों केसों का तुलनात्मक विश्लेषण करके देखेंगे तो जान पायेंगे कि वर्तमान की भारतीय न्याय प्रणाली में अगर आप न्याय की अपेक्षा रखते हैं तो बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय से होना आपके लिये किसी श्राप से कम नहीं। वरना ऐसा भी क्या अलग है इन दोनों केसों में जो एक ही कानून में सुनवाई के बाद बिल्कुल विपरीत परिणामों को प्राप्त होते हैं।
इसमें एक तरफ है संत आशाराम बापू का केस, जिनके प्रकरण में अगस्त 2013 में एक लड़की ने छेड़छाड़ के आरोप लगाए थे FIR में बलात्कार/रेप शब्द का कहीं भी जिक्र नही किया गया था। लड़की की मेडिकल रिपोर्ट में भी बलात्कार की पुष्टि नही हुई यहां तक कि उस लड़की के शरीर पर एक निशान तक नही था। लेकिन मीडिया द्वारा इसे बलात्कार अथवा रेप की झूठी संज्ञा देकर कई हजारों घण्टों का मीडिया ट्रायल करके झूठा प्रचार किया गया, उस झूठे प्रचार को रुकवाने के लिये कोर्ट से गुहार लगाई गई लेकिन उसे प्रेस की आजादी और सूत्रों के हवाले से मिलने वाली खबर बताकर खारिज कर दिया गया।
तो वहीं दूसरी तरफ ईसाई बिशप फ्रैंको मुलक्कल जिस पर वर्ष 2018 में एक नन ने गलत तरीके से बंधक बनाने, एक बार नहीं 13 बार बालात्कार करने का आरोप, अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और आपराधिक धमकी देने के आरोप लगाए थे। जिसके बावजूद मीडिया में न तो कोई ट्रायल हुआ, न ही पीड़ित पक्ष को नैतिक समर्थन देने के लिये सामाजिक चेतना का ध्रुवीकरण किया गया। बल्कि इसके विपरीत अदालत ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को उसकी अनुमति के बिना मुकदमे से संबंधित किसी भी सामग्री को प्रसारित करने पर रोक लगाई थी। क्या यह सब अन्याय और पक्षपाती रवैया नही ?
जहाँ एक तरफ संत आशाराम बापू गत 8 वर्ष , 4 माह 18 दिन से जोधपुर जेल में होने के बावजूद उन्हें एक दिन की भी जमानत प्रदान नहीं की गई जबकि ऐसे में जमानत न देकर उनके जीवित रहने के मौलिक अधिकार का भी हनन किया गया। बापू को अनेकों गंभीर जानलेवा बीमारियां हैं जिनका उल्लेख अस्पताल की रिपोर्ट में भी है। पिछले वर्ष फरवरी 2020 में उन्हें एंजिमा का अटैक आया, उसके बाद उन्हें कोरोना हुआ जिसमें चेस्ट इंफेक्शन होने के कारण आईसीयू में एडमिट होना पड़ा, खून में हीमोग्लोबिन का स्तर 3.8 तक पहुंचा तब भी राजस्थान हाईकोर्ट ने उनकी याचिका अस्वीकार कर दी।
उन्हें जल्दी स्वस्थ होने के लिये एक दिन की भी पैरोल/Medical SOS नहीं दी गई और जेल में ही रखा गया जिसके कारण उन्हें जून महीने में सेप्सिस का अटैक पड़ा और उनका ऑक्सीजन लेवल 55 से नीचे के खतरनाक स्तर तक आ पहुंचा लेकिन तब भी मानवीय आधार पर जीवित रहने के मौलिक अधिकार को देखते हुये उन्हें एक दिन की भी जमानत नहीं दी गई। आज भी उन्हें कैथेटर लगा हुआ है 85 वर्ष से ज्यादा की आयु है जोधपुर में सर्दियों में न्यूनतम तापमान 10℃ तक जाता है और गर्मियों में अधिकतम तापमान 48℃ तक लेकिन इसके बाद भी उन्हें जमानत या पैरोल नहीं दी जाती। वहीं दूसरी तरफ बिशप फ्रैंको मुल्लकल के केस में अत्यंत गंभीर आरोप होने के बावजूद सिर्फ 24 दिनों बाद जमानत मिल गई थी। क्या यह अन्याय नही ?
ऐसे में स्वभाविक प्रश्न जो उठता है वो यह कि जब संत आशाराम बापू की जमानत याचिका डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अलग-अलग स्तर पर लगभग 15 बार से भी अधिक बार खारिज की जा सकती है तो ईसाई बिशप फ्रैंको मुलक्कल की जमानत खारिज क्यों नहीं हुई। जैसे आशाराम बापू के केस में कोर्ट में कई बार यह कहकर जमानत नहीं दी गई कि आरोपी समाज में बहुत प्रभावशाली व्यक्ति है और उसके जमानत पर बाहर आने से गवाह प्रभावित हो सकते हैं। तो क्या यही बात फ्रैंको मुल्लकल के लिये लागू नहीं होती ? जबकि फ्रैंको मुल्लकल अपने क्षेत्र पंजाब के सबसे शक्तिशाली ईसाई हैं उन्हें सभी राजनीतिक दलों से समर्थन प्राप्त है।
फ्रैंको मुलक्कल ने कैथोलिक चर्च के जालंधर डायोसिस के बिशप के रूप में कार्य किया है । जालंधर डायेसीस एक शक्तिशाली निकाय है जो अमृतसर, फरीदकोट, फिरोजपुर, गुरदासपुर, होशियारपुर, जालंधर, कपूरथला, लुधियाना, मोगा, मुक्तासर, नवनशहर, पंजाब में तरण तारण और हिमाचल में चंबा, हमीरपुर, कंगड़ा और उना के अलावा सभी कैथोलिक ईसाई गतिविधियों को बढ़ावा देता है। दोनों राज्यों में फैले शैक्षिक और धर्मार्थ संस्थान का प्रमुख होने के नाते, बिशप ने सैकड़ों संस्थानों पर नियंत्रण रखा। उन्होंने चर्च के संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था। क्षेत्र में उनके प्रभाव की धाक इस बात से मापी जा सकती है कि वो जब जालंधर के बिशप रहे तब सभी क्षेत्रीय दलों के नेता जिसमें अकाली दल, कांग्रेस एवं आप के नेता प्रमुख हैं उनसे आशीर्वाद लेने जाते रहे हैं।
ऐसे में अगर कोई कहे कि नहीं बिशप एक साधारण व्यक्ति हैं तो इससे हास्यास्पद क्या होगा। यह केस स्पष्ट करता है कि देश में ईसाई संगठनों का प्रभाव न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया को किस हद तक प्रभावित करने की शक्ति रखता है। पक्षपात के इस नंगे नाच में सब की अपनी भूमिका रही है। समाज से लेकर सरकार तक और मीडिया से लेकर न्यायविदों तक सभी दोगले व्यवहार के इस गंदे कीचड़ से पूरी तरह सने हुये दिखते हैं।
क्योंकि एक तरफ तो आशाराम बापू के केस में लड़की के बयान के अलावा एक भी साक्ष्य, एक भी मेडिकल एविडेंस और एक भी फॉरेंसिक एविडेंस न होने के बावजूद 5 साल के ट्रायल के बाद उन्हें आमरण कारावास अर्थात जीवन की आखिरी श्वास तक का कारावास की सजा दी गई तो वहीं दूसरी तरफ फ्रांको के केस में 39 गवाह दो पीड़िताएं और 2000 पन्नो की चार्जशीट होने के बावजूद 14 जनवरी 2022 को निर्दोष बरी कर दिया गया। जब यदि किसी का धर्म उसको मिलने वाले न्याय का पक्षपाती आधार स्थापित हो जाये तो यह समय होता है गहन सुषुप्ति की अवस्था को त्याग कर अपने अधिकारों के प्रति नव समाजिक चेतना को जागृत करने के आंदोलन का।
आज एक संत के साथ अन्याय हुआ है तो कोई आवाज नहीं उठा रहा कल जब आपके साथ अन्याय होगा तब उसके खिलाफ आवाज उठने की संभावना भी समाप्त हो चुकी होगी। ये बौद्धिक युद्ध है इसे लड़ने के लिये निष्क्रिय हो चुके स्वार्थ से युक्त समाज को अपने अधिकारों के प्रति सजग करना होगा। रोटी-पानी की जुगाड़ और शराब-सिगरेट के नशे में धुत्त सनातन धर्मावलंबियों को जानना होगा कि धर्म, धर्म को धारण करने से विस्तरित होता है। वरना जो, Missionary Conversion और Project Thessalonica आज आशाराम बापू के जेल में होने का कारण बना है (जिसके तहत हिन्दू समाज की धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों अथवा त्योहारों को खत्म करने के लिये उनके प्रति घृणा भरने का कार्य किया जाता है) वही कल को आपके धर्म से च्युत होने और अधर्मी होने का कारण बनेगा।
पार्टियां बनाने, वोट देने और सरकार बनाने से काम नहीं चलेगा। क्योंकि सत्ता के कुएं में ऐसी भांग पड़ी है कि जो इसमें कूदता है वही बौरा जाता है। आगे भी ऐसा ही होगा। सभी पार्टियों की सभी सरकारें विदेशी फंड का इस्तेमाल करती हैं। यह फंड वही मल्टी नेशनल कम्पनियां देती हैं जिनका मुख्य लक्ष्य आपको त्याग एवं तपस्या से गिराकर भोगवादी बनाने का होता है।
सरकार कोई भी हो वो भी धर्म देखकर पक्षपात करने वाली ही होगी। अगर ऐसा न होता एक ही आरोप में जालंधर (पंजाब, जहाँ कांग्रेस की सरकार है) के बिशप को केरल (जहाँ कम्युनिस्टों की सरकार है) की कोर्ट से क्लीन चिट नहीं मिलती और आशाराम बापू की जोधपुर (राजस्थान, जहाँ कांग्रेस एवं भाजपा दोनों की सरकार रही) कि कोर्ट से एक दिन की भी जमानत न रोकी जाती। यह सब सिद्ध करता है कि बल संख्या में नहीं बल पैसा और एकमत रहकर संगठित रहने में है। बड़ी हैरानी की बात है हिन्दू समाज अपने ही धर्म के देवी-देवताओं, गुरुओं ,महापुरुषों का मजाक बनाये बिना नही चूकता,उन्ही का विरोध करता है। वर्तमान में सरकारें भी अपनी निजी स्वार्थ के लिए संतो का उपयोग कर उन्हीके साथ छलावा कर रही हैं।
जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ… ज़ख्म का एहसास तब हुआ जब कमान देखी अपनों के हाथ में। संत हमारे धर्म हमारी संस्कृति की सुरक्षा प्रणाली हैं, उन पर आघात होना धर्म पर आने वाला सबसे बड़ा संकट है।
दीपक श्रीवास्तव और मनीष तोमर।
Sant Shri Asharamji Bapu has elaborated the greatness of Sanatan Dharma in His spiritual discourses. He has done Great work to spread the Sanatan Dharma across the world. Bapuji’s predictions are getting True one by one !!
सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए हिन्दू संत आशारामजी बापू ने बहुत काम किया जो कि अद्वितीय है इसलिए बापूजी को झूठे मामले में फंसाया गया ये बात तो जगजाहिर है लेकिन आशारामजी बापू केस से न्यायपालिका का हिन्दू विरोधी चेहरा भी देश के सामने आ गया है ।
No doubt the judiciary on question
बहुत ही विचारणीय विषय है , कब तक संतों पर अत्याचार सहते रहेंगे । हमारी निष्क्रियता के कारण ही विधर्मियों द्वारा आज हिंदू धर्म की जड़े उखाड़ने का अविरत प्रयास किया जा रहा है।
ननों से बलात्कार करना पादरियों का अधिकार है। अंगेजों की महारानी ऐलीजाबेथ के ताज के प्रति वफादारी की शपथ लेने वाले भारत सरकार के न्यायधीश इस सत्य को जानते है। भले ही इन न्यायधीशों द्वारा भारतीय संविधान के प्रति ली सत्य आस्था की शपथ भंग हो तो होये।
🙏🕉️
Kaisi nyaaa pranali h, Bharat m?
संत श्री आशाराम जी बापू निर्दोष है। बापूजी राजनैतिक साजिश के सीकर हुए है। बापूजी पर कोई आरोप सिद्ध नही हुआ है। मेडिकल रिपोर्ट में बापूजी को क्लीन चिट दी है ।
यह बड़े बड़े मुजरिम रिहा हो जाते है । पर निर्दोष संत श्री आशाराम जी बापू को न्याय नही मिल रहा।