कांग्रेस के मुखिया को ‘अवकाश’ अच्छा लगता है, इतना कि तमाम प्रकार के अवकाश के बहाने वे ‘अवकाश’ पर ही बने रहते हैं, कभी ‘आराम’ के लिए अवकाश, कभी ‘विदेश घूमने’ के लिए तो कभी ‘चिंतन’ करने के लिए। उनके इस ‘अवकाश प्रेम’ से लगता है कि वो जल्द से जल्द अवकाश प्राप्त कर लेना चाहते हैं लेकिन उनके इस प्रेम से सबसे बड़ी समस्या कांग्रेस के प्रवक्ताओं के लिए हो जाती है, उनके पास अपने आलाकमान के बारे में बताने के लिए कुछ नहीं होता है, लेकिन उन्हें कुछ न कुछ बोलकर पार्टी भी चलानी होती है। इसीलिए वे ‘कुछ भी’ बोलकर अपना ड्यूटी पूरी करनी पड़ती है।
इसी क्रम में उनको ताजा आपत्ति कल केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में ब्यूरोक्रेट्स को शामिल करने को लेकर है। मैं कभी-कभी वाकई सोचने को विवश हो जाता हूँ कि कांग्रेसियों के दिमाग में इस प्रकार के ख्याल आते कहाँ से हैं?
कुतर्क में महारथी इन लोगों से कोई पूछे कि दस साल तक देश के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह क्या थे? उनकी सरकार में मंत्री रहे मणिशंकर अय्यर और शशि थरूर क्या थे? चुनाव आयुक्त के पद से सेवानिवृति के बाद केंद्र में खेल मंत्री बनाये गए एम.एस.गिल को कितने वर्षों का राजनीतिक अनुभव था? आज पंजाब में जो कांग्रेस के मुख्यमंत्री हैं, कैप्टन अमरिंदर सिंह उनकी पृष्ठभूमि भी सेना की रही है। यही नहीं राजीव गांधी की सरकार में ताकतवर मंत्री रहे अरुण सिंह और अरुण नेहरू भी राजनीति के छात्र नहीं बल्कि कॉरोपोरेट क्षेत्र में नौकरी पेशा हुआ करते थे।
अत: कांग्रेस को कम से कम ऐसे सवालों से बचना चाहिए जो वस्तुत: सवाल ही नहीं है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है जहाँ प्रत्येक सरकार अपनी क्षमताओं में इजाफा करने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को व्यवस्था का हिस्सा बनाती है। लेकिन डिलीवरी स्पष्ट तौर पर नेतृत्व की नीति, नीयत और मंशा पर निर्भर करती है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी लगातार खरे साबित हो रहे हैं।