लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए चुनाव में सौ प्रतिशत मतदान के खातिर भाजपा ने जिस NOTA “उपरोक्त में से कोई नहीं (नन ऑफ द एवभ )” विकल्प का समर्थन किया था उसे क्या पता था कि वही विकल्प एक दिन उसके दो बड़े राज्यों में हार का मुख्य कारण बन जाएगा। मालूम हो कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा अपने किसी प्रतिद्वंद्वी पार्टी से नहीं बल्क नोटा में पड़े वोट की वजह से हारी है। दूसरे शब्दों में कहें तो उसे कांग्रेस ने नहीं बल्कि नोटा ने हराया है, जिसका वह समर्थन करती आ रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में नोटा के तहत पड़ने वाले वोट का अगर आधा हिस्सा भी भाजपा को मिला होता तो इन दोनों प्रदेशों के चुनाव परिणाम ही कुछ और होते। इन दोनों प्रदेशों में आज भाजपा की सरकार बनी होती।
मालूम हो कि देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने नोटा का समर्थन किया था। नोटा के समर्थन के पीछे उनकी एक अतंरदृष्टि है । वे भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के तहत चुनाव में सौ प्रतिशत मतदान होने के हिमायती हैं। मोदी ने कभी भी भारतीय लोकतंत्र को अपने हित में साधने का प्रयास नहीं किया। वह उस समय भी जानते थे कि नोटा का प्रयोग सरकार के खिलाफ ज्यादा होगा। और वह उस समय गुजरात की सरकार चला रहे थे। नोटा के खतरा का भान होने के बावजूद मोदी ने लोकतंत्री की मजबूती के लिए नोटा का समर्थन किया था।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस से 47,827 वोट अधिक मिलने के बाद भी भाजपा को उससे कम सीटें मिली हैं। शायद लोकतंत्र के इतिहास में कम ही ऐसा उदाहरण देखने को मिलेगा कि कुल मत और मत प्रतिशत अधिक होने के बावजूद किसी पार्टी की सीटें कम हुई हों। मालूम हो कि मध्य प्रदेश में जहां भाजपा को कुल 1,56,42,980 यानि 41 प्रतिशत वोट मिले हैं वहीं कांग्रेस को 1,55,95,153 यानि 40.9 प्रतिशत वोट मिले हैं। इस हिसाब से भाजपा को कांग्रेस से .1 प्रतिशत यानि कुल 47,827 मत अधिक मिले हैं। इसके बावजूद भाजपा को कांग्रेस से 5 सीटें कम मिली हैं। जबकि नोटा के तहत करीब साढ़े पांच लाख वोट पड़े हैं। अगर नोटा के तहत पड़े वोट का आधा हिस्सा भी, या फिर पार्टियों के पड़े वोट प्रतिशत के अनुपात के हिसाब से ही मिला होता तो मध्य प्रदेश में उसे हार का मुंह नहीं देखना पड़ता बल्कि कांग्रेस से करीब दो लाख अधिक वोट उसके हिस्से पड़ा होता। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज कांग्रेस कहां होती और भाजपा कहां।
मध्य प्रदेश में ही नहीं राजस्थान में भी उलट परिणाम देखने को मिलता, क्योंकि राजस्थान में भी भाजपा महज .5 प्रतिशत यानि कुल 1,77,699 वोट से पीछे रह गई। जबकि राजस्थान में नोटा के तहत 1.3 प्रतिशत यानि 4,67,781 वोट पड़े हैं। अगर यहां भी नोटा में पड़े वोट का आधा हिस्सा या फिर सभी पार्टियों को मिले वोट प्रतिशत के अनुपात के हिसाब से ही मिल जाता तो यहां भी कांग्रेस से भाजपा कहीं आगे निकल गई होती। मीडिया में आई रिपोर्ट के हिसाब से प्रदेश की कई सीटें भाजपा ने नोटा में पड़े वोट से कम ही वोट से गंवाई है। गौर हो कि राजस्थान में जहां कांग्रेस को कुल 1,39,35,201 यानि 39.3 प्रतिशत वोट मिले हैं वहीं भाजपा को कुल 1,27,57,502 यानि 38.8 प्रतिशत वोट मिले हैं।
कहा जा रहा है कि इन दो प्रदेशो में नोटा के तहत पड़ने वाले अधिकांश वोट भाजपा के वोटरो के ही हैं।
जिस प्रकार इन दो प्रदेशों में नोटा का प्रभाव दिखा है उससे हमारा लोकतंत्र और मजबूत हुआ है। नोटा ने दिखा दिया कि अब लोकतंत्र भीड़तंत्र में नहीं बदल पाएगा। इससे पहले तक सभी पार्टियां भीड़ को आकर्षित करने और उसे लुभाने के लिए अनाप शनाप न केवल वादा करती थी बल्कि भीड़ को लुभाने के चक्कर में पढ़े लिखे और अपने विवेका का इस्तेमाल करने वालों की ओर ध्यान ही नहीं देती। लेकिन नोटा ने यह दिखा दिया कि भीड़ ही नहीं सरकार को पटखनी देने में एक व्यक्ति भी समर्थ है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में नोटा ने दिखा दिया है कि अब वह भी सरकार बदलने में समर्थ है।
नोटा के खतरे से वाकिफ होने के बाद भी भाजपा ने लोकतंत्र के हित में इसका समर्थन किया था। वहीं कांग्रेस न तो इसका कभी समर्थन किया है न ही वह कभी करेगी। क्योंकि वह कभी भी भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने का पक्षधर नहीं रही है। कांग्रेस मानती है कि देश में लोकतंत्र जितना कमजोर होगा उसकी सत्ता कायम रहेगी। तभी तो आज भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ईवीएम को कोसते हैं। राहुल गांधी तो नोटा का ही नहीं बल्कि देश में ईवीम का भी विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि देश में ईवीएम का प्रयोग बंद होना चाहिए।
प्वाइंट वाइज समझिए
नोटा से हारी भाजपा
* राजस्थान और मध्य प्रदेश में नोटा ने दिखा दिया अपना प्रभाव
* इन दोनों प्रदेश में कांग्रेस से नहीं बल्कि नोटा से हारी भाजपा
* नोटा में पड़े वोट का आधा हिस्सा भी भाजपा को मिलता तो परिणाम अलग होता
* एमपी में तो करीब 48 हजार अधिक वोट मिलने के बाद भी सीटों में पिछड़ी भाजपा
* राजस्थान में महज कांग्रेस से 1लाख 78 हजार वोट से पीछे रह गई भाजपा
* जबकि राजस्थान में नोटा के तहत करीब 4 लाख 68 हजार मत पड़े थे
* लोकतंत्र को मजबूत करने के उद्देश्य से भाजपा ने नोटा का किया था समर्थन
* मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब किया था नोटा के विकल्प का समर्थन
* नोटा के खतरे को भांपने के बाद भी सत्ता में रहते हुए किया था इसका समर्थन
* जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी देश में ईवीएम के उपयोग पर उठा रहे हैं सवाल
* हमेशा से नोटा और ईवीएम के खिलाफ रही है कांग्रेस पार्टी
* नोटा के प्रभाव बढ़ने से अब होश में आएगी राजनीतिक पार्टियां
URL : BJP is not defeated by Congress but the “nota” in MP and Rajsthan!
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