देश के पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी की अपनी कट्टरपंथी सोच के अनुरूप बयान देने की आदत सी पड़ गई है, लेकिन जैसे ही उनसे कोई सवाल पूछा जाता है वे बिफर पड़ते हैं। अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी में जिन्नाह की तस्वीर पर भी उन्होंने कट्टरपंथी बयान दिया था। और एक बार फिर उन्होंने मुसलमानों के शरिया कोर्ट का समर्थन कर अपनी कट्टरपंथी सोच के तहत भारतीय संविधान को धता बताया है। तभी तो भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने उन्हें भारतीय संविधान भेजकर उनसे जिन्ना और शरिया कोर्ट के बारे में अपना संदेह दूर कर लेने को कहा है। अंसारी को भी भारतीय संविधान के खिलाफ कुछ बोलने से पहले जरूर सोच समझ लेना चाहिए, खासकर तब जब बहु विवाह, हलाला और शरिया कोर्ट जैसा मसला सुप्रीम कोर्ट में लंबित हो। इस प्रकार बार-बार बयान देना कहीं अंसारी के लिए ही भारी न पड़ जाए।
#HamidAnsari Sir, You will receive the Constitution tomorrow. Pl read Fundamental Right (Article 14, 15, 21) & Fundamental Duties (Article 51A). Hope it will clear your doubts on #Jinnah & #ShariaCourt PILs to ban #Polygamy #Halala #Mutah #Misyar & #ShariaCourt are pending in SC pic.twitter.com/flHtHFyhyP
— Ashwini Upadhyay (@AshwiniBJP) July 14, 2018
मुख्य बिंदु
* सुप्रीम कोर्ट में बहु विवाह, हलाला और शरिया कोर्ट जैसे लंबित मसले पर अंसारी का बोलना कोर्ट की अवमानना नहीं?
* उपराष्ट्रपति जैसे पद का दायित्व संभाल चुके व्यक्ति का इस प्रकार संविधान के खिलाफ बयान देना देश हित में नहीं
ऐसा पहली बार नहीं है कि हामिद अंसारी ने सांप्रदायिकता का पक्ष लेते हुए देश के संविधान के प्रतिकूल टिप्पणी की हो या अपने बयान से सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने का प्रयास न किया हो। इससे पहले भी इसी साल दो मई को अंसारी ने अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी में जिन्नाह की तस्वीर पर विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पाकिस्तान के संस्था पर मोहम्मद अली जिन्नाह की तस्वीर लगी रहने में कोई बुराई नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि अगर कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल रह सकती है तो फिर एएमयू में जिन्नाह की तस्वीर क्यों नहीं लगी रह सकती है? लेकिन जब यह विवाद बढ़ा और उनसे उनके अपने ही बयान के बारे में पूछा गया तो वह बिफर पड़े और पत्रकारों से कहा कि हमें इस विवाद में नहीं घसीटिये, ये सब काम नेताओं का है और उन्हें ही करने दीजिए। अब सवाल उठता है कि क्या देश के उपराष्ट्रपति जैसे पद पर बैठ चुके व्यक्ति को देश के संविधान के खिलाफ इस तरह का बयान देना चाहिए?
इतना ही नहीं उपराष्ट्रपति जैसे पद का दायित्व निभा चुके हामिद अंसारी को संविधान की गलत व्याख्या लोगों के सामने करना चाहिए? अंसारी ने शरिया कोर्ट का समर्थन करते हुए कहा है कि लोग सामाजिक रिवाजों को विधि व्यवस्था के साथ घालमेल कर रहे हैं। हमारे संविधान इस बात की इजाजत देता है कि प्रत्येक समुदाय का अपना कानून हो सकता है। भारत में व्यक्तिगत विधि के तहत शादी, तलाक, गोद लेने तथा संपत्ति में हक देने का मामला सन्निहित है। अंसारी ने जिस प्रकार शरिया कोर्ट के समर्थन में बयान दिया है क्या उससे हमारा संविधान आहत नहीं होता?
ऐसे में अगर भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने उन्हें देश के संविधान की एक प्रति भेजी है तो यह उनके लिए संयत और सांकेतिक भाषा में सबसे उपयुक्त जवाब है। अंसारी को एक बार फिर से संविधान पढ़ना चाहिए खासकर उपाध्याय जी द्वारा सुझाई धाराओं पर ज्यादा गौर करना चाहिए। जिसमें हमारे मौलिक अधिकार वर्णित हैं। संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि रंग, लिंग, जाति या संप्रदाय के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
People are confusing social practices with legal system. Our law recognizes that each community can have own rules. Personal law in India covers- marriage, divorce, adoption & inheritance. Each community has a right to practice its own personal law: Hamid Ansari on Sharia Courts pic.twitter.com/7GukYMnMIX
— ANI (@ANI) July 12, 2018
अंसारी को सिर्फ अपन समुदाय की ओर ही नहीं बल्कि देश-दुनिया में घट रही घटनाओं पर ध्यान देना चाहिए। उन्हें जानकारी होनी चाहिए कि मुसलमानों में बहु विवाह, हलाला, मुताह, मिसियार तथा सरिया कोर्ट जैसी प्रचलित कुरीति को प्रतिबंधित करवे वाली जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। खुद को एकेडमिशियन कहलाने वाले ऐसे व्यक्ति को शर्म आनी चाहिए कि संविधान प्रदत मौलिक अधिकार और सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका मंजूर होने तक के बारे में प्राथमिक जानकारी नहीं है। अंसारी को पता होना चाहिए है कि जनहित याचिका में संविधान सम्मत कोई बात है तभी तो सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है। अब जब यह मामला देश के सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है ऐसे में उन्होंने सरिया कोर्ट पर बयान देकर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं की है?
दोष अंसारी का नहीं बल्कि कांग्रेस का है जिसने ऐसे सांप्रदायिक विचार वालों को संविधान की रक्षा का दायित्व सौंपा, जिसे खुद संविधान की प्राथमिक जानकारी तक नहीं है। समुदाय के नाम पर देश के हित को दांव पर लगाने वाले अंसारी को समाज में सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने से बाज आना चाहिए। पूर्व उपराष्ट्रपति होने के नाते हामिद अंसारी को अश्विनी उपाध्याय द्वारा भेजे संविधान को तो पढ़ना ही चाहिए साथ ही उसके साथ उस संदेश को भी जानने का प्रयास करना चाहिए कि हमारे देश में संविधान सर्वोपरि है उससे दाएं-बाएं कुछ नहीं।
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2019 में नरेंद्र मोदी बनाम कट्टरपंथी हामिद अंसारी के बीच मुकाबला होने के आसार नजर आ रहे हैं!
URL: BJP spokesman sent constitution to Former Vice President Hamid Ansari
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