अनुज अग्रवाल। पिछले 40 दिनों में देश में लगभग 2 लाख करोड़ रुपयों की 500 और 2000 के नोटों की नई करेंसी की लूट हुई। देशद्रोह की श्रेणी में आने वाले इस कुकर्म में आतंकित करने वाली बात यह है कि इसमें कई राज्यो के मुख्यमंत्री, अनेक मंत्री, सांसद, विधायक, सैकड़ों जिलों के जिलाधिकारी, पुलिस अधिकारी और रिजर्व बैंक के पचासों अधिकारी मुख्य रूप से शामिल रहे। कैसे की गयी यह लूट जरा समझें?
रिजर्व बैंक ने विमुद्रीकरण की घोषणा से पहले ही यानि 6 नबंबर 2016 को ही नयी करेंसी अपने विभिन्न प्रदेशों में फैले करेंसी चेस्टो में भेजनी शुरू कर दी थी। रिजर्व बैंक के अनेक अधिकारियों ने इससे भी बहुत पहले सार्वजनिक एवं निजी बैंको के अनेक अधिकारियों और बेंको के एटीम में करेंसी डालने वाली निजी कम्पनियों के अधिकारियों से सांठ गाँठ शुरू कर दी थी। इन अधिकारियों ने नोटबंदी की घोषणा के साथ ही ज्वैलर्स, हवाला कारोबारियों और बिल्डरों से संपर्क साध बड़ा खेल खेलने का गेम प्लान तैयार कर लिया। चूँकि देश के अधिकांश बड़े ज्वैलर्स, बिल्डर्स और हवाला कारोबारियों से देश के प्रमुख़ राजनेताओं के व्यापारिक संबंध हें, ऐसे में अरबों रुपयों की अदला बदली चुपचाप हो सकी। अब जब जनता तक नयी करेंसी नही पहुंची और शोर मचा तब जाकर सरकार जागी और फिर छापो में करोड़ो रूपये मिलने शुरू हुए।
पहली लूट
नोटबन्दी की घोषणा होते ही ज्वेलर्स, हवाला कारोबारियों, बिल्डर्स आदि ने पैसे वाले नेताओ, सांसदों और विधायकों,सरकारी अधिकारी, ठेकेदार, इंजीनियर, कर अधिकारियों, दलालों और उद्योग, व्यापार से जुड़े लोगो से सम्पर्क साधना शुरू कर दिया। बदहवास कालेधन के कुबेरों ने अपनी पुरानी करेंसी 50% तक कमीशन देकर गोल्ड और डॉलर में बदलवा ली या फिर जमीनों/बिल्डिंगों के मोटे सौदे कर लिए। फिर सिंडीकेट में शामिल रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने एटीएम को भेजी जाने वाली और निजी बेंको को भेजी जाने वाली करेंसी को रोककर उसे अपने सिंडीकेट को पहुंचा दी और पुरानी करेंसी फर्जी नामों से निजी बेंको में जमा करवाकर सब ने मोटा माल कमाया। यह पुर्णतः कालाधन है, जिसको सरकार आसानी से पकड़ रही है किंतू पकड़ने की गति बहुत धीमी है।
दूसरी लूट
दूसरी लूट मध्यम दर्जे के कालेधन वालों ने बेंको के मैनेजरों और केशियर से मिलकर 20 से 40 प्रतिशत तक कमीशन देकर की। इसमें बैंक अधिकारियों ने आधा पैसा जनता को बांटा और शेष कमीशन लेकर बदल दिया और फर्जी नामो से पुरानी करेंसी जमा कर ली। यह आज भी कालाधन ही है बस नई करेंसी में इसका रूप बदल गया है।
तीसरी लूट
सबसे खतरनाक तीसरी लूट रही। खबर है इसमें अनेक राज्यो के मुख्यमंत्रियों ने सीधे जिलाधिकारी को 20 से 50 करोड़ या इससे भी अधिक की नई करेंसी का इंतज़ाम करने को कहा और उनको अपना कालाधन पहुंचाया। जिलाधिकारी ने बैंक अधिकारियों को डराकर/ हड़काकर और लालच देकर नई करेंसी पर कब्जा कर लिया और अपने राजनीतिक आकाओ को पहुँचा दी। ऐसे में राजनीति में अब भी धन का खेल खत्म होना मुश्किल है।
चौथी लूट
यह लूट बेंको की लाइन में 15 से 25 प्रतिशत का लालच देकर लोगो को पुरानी काली करेंसी देकर नई बदलवाने, 20 से 25 प्रतिशत तक कमीशन पर उन लोगो के खातों में जमा करा कर की गयी, जिनके खातों में चार्टेड अकाउंटेंट के अनुसार गुंजाइश थी। अब इन्हीं खातों से नई करेंसी निकालकर कालेधन के कुबेरों को वापस देने वाले लोग ही बेंको की भीड़ बड़ा रहे हें। यह असज भी कालाधन है।
पांचवी लूट
यह खेल अपनी फर्मो, कम्पनियों , धार्मिक संस्थाओं और एनजीओ के खातों में फर्जी बिक्री/ आमदनी/दान आदि दिखाकर एडजस्ट करके किया गया। इसके अलावा पिछले कर्ज/ भुगतान चूका, एडवांस में बाज़ार से माल उठाकर या कर्मचारियों को 2 से 3 माह का अग्रिम वेतन नकद देकर ठिकाने लगाया गया। अग्रिम वेतन मिलने के कारण ही फैक्ट्रियों के मजदूर छुट्टी लेकर गाँव चले गए और फैक्ट्रियों में बंदी सी हो गयी। यद्धपि इस रकम पर सरकार को खासा टैक्स मिलना तय है और अब यह सफ़ेद हो गयी है।
छटी लूट
जिन जिन सेवाओं और वस्तुओ की बिक्री में सरकार ने पुरानी करेंसी स्वीकार करने की छूट दी थी, उनके मालिकों और अधिकारियों से 20 से 30 प्रतिशत तक कमीशन देकर पुरानी करेंसी एडजस्ट करायी गयी। अब जनवरी से यह रकम नई करेंसी के रूप में वापस दी जायेगी। किंतू रहेगी कालाधन ही, जिसे पकड़ा जा सकता है।
घर के चिराग कैसे खुद अपने ही घर को जला रहे हें, इससे बड़ा और अफसोसजनक उदाहरण क्या हो सकता है। महाभ्रष्ट और मक्कार सरकारी तन्त्र के सहारे यह लड़ाई लड़ते हुए मोदी सरकार सच में आग से खेल रही है। अभी उसे और भी कड़ी परीक्षाओ के दौर से गुजरना है। अभी भी इस सिंडीकेट के पास कई लाख करोड़ की काली करेंसी पुराने नोटों के रूप में मौजूद है यद्धपि बैंको के पास कुल जारी किये गए 14.2 करोड़ रुपयों की 500 व 1000 की करंसी से बहुत ज्यादा नोट आ चुके हें और लगातार आ रहे हें। ऐसे में एक बड़े अवैध करेंसी छापने के यू पी ए के घोटाले की औपचारिक घोषणा का इंतज़ार करें।
साभार: अनुज अग्रवाल संपादक, डायलॉग इंडिया