फ़िल्मी पत्रकारिता में किसी बड़े कलाकार पर निशाना साधने के लिए आमतौर पर ‘ब्लाइंड आइटम’ का सहारा लिया जाता है। ये ‘ब्लाइंड आइटम’ पत्रकारिता की ही एक विधा है। किसी व्यक्ति पर बिना नाम लिए निशाना लगाने की कला ही ब्लाइंड आइटम कहलाती है। इस कला का सहारा राजनीतिक पत्रकारिता में भी लिया जाता है लेकिन इसका सबसे अधिक इस्तेमाल फ़िल्मी सितारों को टारगेट करने के लिए किया जाता है। शायद आपको पता न हो कि संदिग्ध मौत मरे सुशांत सिंह राजपूत पर काफी ‘ब्लाइंड आइटम्स’ लिखे गए थे। सुशांत की मौत के बाद ट्विटर और फेसबुक पर एक फिल्म समीक्षक राजीव मसंद घेरे में आ गए हैं। ट्विटर पर सुशांत सिंह राजपूत पर लिखे उनके ‘ब्लाइंड आइटम्स’ की बहुत आलोचना की जा रही है। सुशांत के बहाने फिल्म उद्योग की वह गंदगी बाहर आ रही है, जिसे रेड कारपेट के नीचे दबा दिया जाता है।
फ़िल्मी दुनिया की अंग्रेजी पत्रिकाओं में ‘ब्लाइंड आइटम’ लिखने की कला में राजीव मसंद को माहिर माना जाता है। कलाकारों के प्रेमप्रसंग, ब्रेकअप की ख़बरें, विवाहेतर संबंधों और एक ख़ास वर्ग की ओर से निशानेबाज़ी करने में राजीव का कोई तोड़ नहीं है। उनको इस बात की भी बराबर चिंता रहती है कि रणबीर और आलिया की शादी आखिर कब होगी। हाल ही में कंगना रनौत ने अपने वीडियो में ‘ब्लाइंड आइटम’ की ओर इशारा किया है। कंगना रनौत का इशारा राजीव जैसे लेखकों की ओर है, जिनके लेख फ़िल्मी सितारों और निर्माताओं को तनाव में ला देते हैं। क्या सुशांत की मानसिक स्थिति की दुर्दशा का थोड़ा जिम्मेदार वे ‘ब्लाइंड आइटम्स’ नहीं थे, जो उन्होंने सुशांत पर लिखे थे।
‘ब्लाइंड आइटम’ के अविष्कार का श्रेय William d’Alton Mann को दिया जाता है, जो एक अख़बार चलाते थे। इस विधा का उपयोग बाद में ब्लैकमेल करने के लिए किया जाने लगा था और अब सुशांत सिंह राजपूत जैसे अभिनेताओं को डिप्रेशन में डालने के लिए किया जा रहा है। इस देश में मीडिया को स्वतंत्र कर देने के कुछ साइड इफेक्ट्स भी सामने आए हैं। मीडिया को स्वतंत्र तो कर दिया गया लेकिन उसको नियंत्रण में रखने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया। आज सरकार फेक न्यूज़ के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठा पाती तो ‘ब्लाइंड आइटम्स’ पर रोक लगा पाना तो बहुत दूर की बात है। ब्लाइंड न्यूज़ में किसी का नाम नहीं लिया जाता इसलिए अदालत में बच निकलना बहुत आसान हो जाता है।
सुशांत पर लिखे ब्लाइंड आइटम
‘एक फिल्म पिछले साल अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी। इस फिल्म ने हीरो और हीरोइन को करीब ला दिया था। वे जल्द ही डेटिंग भी करने लगे लेकिन पता चला कि लड़की एक पीरियड ड्रामा फिल्म में काम करने जा रही है, रिलेशनशिप ख़त्म हो गई। लड़की अब प्रोड्यूसर के साथ कुछ समय बिता रही है और लड़का एक नई हीरोइन के साथ अगली फिल्म की रिलीज की तैयारी कर रहा है।’ ( कृति सेनन, राब्ता, केदारनाथ, सारा अली खान)
‘वह एंटरटेनमेंट के पन्नों पर ज़्यादा नज़र आता है, जितनी कि उसकी को-स्टार भी उसके करीब नहीं होती। उसने पिछले छह साल में अपने समकालीन एक्टरों की तुलना में कम फ़िल्में की है। उसकी ज्यादातर फ़िल्में फ्लॉप ही साबित हुई है और अब वह अपनी प्लेबॉय इमेज के सहारे अटेंशन लेने की कोशिश कर रहा है।एक युवा अभिनेता जो कि आउटसाइडर है, उसने एक नए बड़े बैनर की फिल्म पा ली है। लेकिन उसके साथ मुश्किल ये है कि उसकी फिल्म बड़ी फ्लॉप रही है।’ ( केदारनाथ, राब्ता)
तो ये पढ़ने के बाद आपको अहसास हो रहा होगा कि सुशांत सिंह राजपूत केवल आउटसाइडर होने के कारण राजीव मसंद जैसे लेखकों के कारण मानसिक पीड़ा से गुज़र रहे थे। फ़िल्में किसकी फ्लॉप नहीं होती, प्रेम प्रसंग किसके नहीं चलते लेकिन निशाने पर सुशांत जैसे आउटसाइडर ही थे, बाकी के स्टार किड्स नहीं। राजीव जैसे लेखक सलमान खान और उनके कैम्प पर कभी ‘ब्लाइंड आइटम’ नहीं लिखते। उनको मालूम है लिखेंगे तो इंडस्ट्री से बाहर फेंक दिए जाएंगे। कंगना रनौत ने तो अपने वीडियो में सिलसिलेवार उन मीडिया रिपोर्ट्स का खुलासा किया है जो सुशांत पर लिखी गई थी।
राजीव मसंद जैसे लेखक की कलम पर क्या सुशांत सिंह राजपूत का खून लगा है? उन्हें इस मानसिक स्थिति में पहुंचाने में अकेले राजीव का हाथ न हो लेकिन ये तो जरूर है कि उनके लेख भी सुशांत को इस स्थिति में ले आए थे। राजीव मसंद को फिर भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता, उनके जैसे लोगों के हाथ में अदृश्य खंजर होता है। वे क़त्ल करते हैं लेकिन हथियार दिखाई नहीं देता। ये ‘ब्लाइंड आइटम’ राजीव मसंद का प्रिय खंजर है, जिसे वे अपनी कलम की नोंक में लगाते हैं।
राजीव मसंद should be punished on murder charges. This guy along with others, cornered Sushant & created a situation that this unfortunate brilliant human being was compelled to end his life.