
Bloomsburry पर चलना चाहिए दफा 420 का मुकदमा क्योंकि उसने शाहीन बाग़ पर गलत तथ्यों के साथ किताब छापी है– प्रशांत पटेल
Bloomsbury ने दिल्ली दंगों पर लिखी गयी किताब Delhi Riots 2020: The Untold Story का प्रकाशन तो वामी-इस्लामी लॉबी के दबाव में आकर वापस लेने का निर्णय ले लिया है मगर उसकी परेशानियां अब कम होने के बजाय बढ़ रही हैं। फर्जी इतिहासकार William Dalrymple की काल्पनिक किताबें जहाँ छपती हों, वहां पर तथ्य आधारित किताबों को जगह न मिलने से, लेखक संदीप देव ने विरोध में सारे रिश्ते तोड़ने की घोषणा फेसबुक और ट्विटर पर कर दी थी।

हिंदी में Bloomsbury को कोई भी नहीं जानता था। यह संदीप देव ही थे, जिन्होनें न केवल खुद इस प्रकाशन के लिए किताबें लिखीं बल्कि साथ ही कई और लेखकों को उस प्रकाशन से जोड़ा। इतना ही नहीं संदीप देव को Bloomsbury से एक साल में लाखों की रोयल्टी मिलती है। लाखों की रोयल्टी को विचारों के लिए लात मारने वाले संदीप देव के कानूनी सलाहकार प्रशांत पटेल ने India Speaks Daily के साथ बात करते हुए कहा कि वह संदीप देव के इस निर्णय का सम्मान करते हैं और हर किसी के लिए विचारों के लिए पैसों को ठुकराना सरल नहीं होता और वह भी तब जब वह हिंदी के पहले लेखक हैं और उनकी किताबों की आज भी बाज़ार में सबसे ज्यादा मांग है।
ISD 4:1 के अनुपात से चलता है। हम समय, शोध, संसाधन, और श्रम (S4) से आपके लिए गुणवत्तापूर्ण कंटेंट लाते हैं। आप अखबार, DTH, OTT की तरह Subscription Pay (S1) कर उस कंटेंट का मूल्य चुकाते हैं। इससे दबाव रहित और निष्पक्ष पत्रकारिता आपको मिलती है। यदि समर्थ हैं तो Subscription अवश्य भरें। धन्यवाद।
यह पूछे जाने पर कि क्या संदीप देव के पास यह अधिकार है कि वह अपनी किताबें bloomsbury से वापस ले सकें, प्रशांत पटेल ने कहा कि उन्होंने एक ऐसे प्रकाशन के साथ अपना अनुबंध रद्द करके राष्ट्रवादियों की उम्मीदों पर खरा उतरने का काम किया है, जो प्रकाशक शाहीन बाग़ पर तो किताब छाप सकता है, मगर दिल्ली दंगों की असलियत पर नहीं। और उन्होंने कहा कि उन्होंने संदीप देव और प्रकाशक के बीच अनुबंध पढ़ा है, जिसमे टर्मिनेशन के क्लॉज़ में यह साफ़ कहा गया है कि लेखक या प्रकाशक में से कोई भी यदि मिसकंडक्ट करता है तो दोनों में से कोई भी बाहर निकल सकता है और इसमें तो मिसकंडक्ट हुआ है प्रकाशक की तरफ से। और चूंकि संदीप देव के पास लेखक के रूप में अपनी बौद्धिक संपत्ति के अधिकार हैं तो वह इसे कहीं और से प्रकाशित कर सकते हैं।”
यह पूछे जाने पर कि क्या साहित्य के माफिया के साथ लड़ा जा सकता है, प्रशांत पटेल ने कहा कि “Bloomsbury को ऐसा लगा था कि राष्ट्रवादी लेखकों को धक्का लगेगा और वह बैकफुट पर आएँगे, इस बार उलटा हो गया। संदीप देव के हाथ खींचते ही और राष्ट्रवादी लेखकों ने तो हाथ खींचे ही, Bloomsbury के खिलाफ एक जनता उठ खड़ी हुई!” उन्होंने इसे सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के बाद हुए बॉलीवुड में सफाई अभियान के साथ जोड़ते हुए कहा कि जैसे मुम्बई में बॉलीवुड की गंदगी साफ़ करने के लिए लोग उठ खड़े हुए हैं, वैसे ही यहाँ पर भी लोग अन्याय के खिलाफ खड़े हों रहे हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकाशन माफिया को भी इसकी जगह दिखाने की जरूरत है।
जब उनसे यह पूछा गया कि ऐसा पहली बार हुआ कि अंग्रेजी की किताब के साथ हुए अन्याय पर हिंदी का लेखक विरोध में आया क्योंकि यह विचार की बात है और क्या कभी ऐसा होगा कि हिंदी के लेखकों के लिए अंग्रेजी का लेखक साथ आएगा? तो प्रशांत पटेल का कहना था कि भाषा तो विचार व्यक्त करने का माध्यम है और वह भाषा के स्तर पर कोई भेद नहीं देखते हैं, उन्होंने कहा कि विचार जरूरी हैं। उन्होने उम्मीद जताई कि आने वाले समय में विचार के स्तर पर हिंदी लेखकों के साथ अंग्रेजी के लेखक खड़े होंगे, क्योंकि भाषा नहीं बल्कि विचार महत्वपूर्ण होगा और विचारों पर एक साथ आकर ही हम इस लेफ्ट लिबरल गिरोह को हरा पाएंगे।
जब उनसे यह पूछा गया कि उन्होंने यह नोटिस कैसे दिया कि जो पुस्तकें Bloomsbury के साथ हैं, उन्हें नष्ट कर दिया जाए तो उन्होंने कहा कि चूंकि अनुबंध के अनुसार लेखक या प्रकाशक दोनों में से किसी को 60 दिनों का नोटिस देना अनिवार्य है, तो वह आज से 60 दिनों तक तो किताबें बेच सकते हैं, उसके बाद वह उन पुस्तकों को नहीं बेच पाएँगे, फिर चाहे वह नष्ट करें या कुछ भी करें, वह बेच नहीं पाएंगे। क्योंकि संदीप देव का कहना था कि अब उनके पाठक Bloomsbury से उनकी किताब खरीदना नहीं चाहते हैं।
हाल ही में Bloomsbury ने शाहीब बाग़ पर एक किताब का प्रकाशन किया है, अब जबकि न्यायालय से भी यह टिप्पणी आ गयी है कि ताहिर हुसैन ने ही अपनी कौम को हमले के लिए भड़काया, और जो किताब Bloomsbury ने छापी है, उसके अनुसार ताहिर हुसैन निर्दोष है, तो क्या इस किताब को न्यायालय में यह कहते हुए चुनौती दी जा सकती है कि यह किताब पूरी तरह से न्यायालय की अवमानना कर रही है? इस सवाल के जबाव में प्रशांत पटेल का कहना एकदम स्पष्ट था कि इसे हर हाल में न्यायालय में चुनौती दी जानी चाहिए। क्योंकि यह साफ़ तौर पर न्यायालय की अवमानना है। क्योंकि इसमें तथ्य गलत है और उन्होंने Bloomsbury की उस नीति पर भी सवाल उठाए जिसमें वह यह कहते हैं कि वह तथ्यों के आधार पर ही हम काम करते है। और उन्होंने यह कहा कि Bloomsbury पर तो तथ्यों की छेड़छाड़ के आधार पर 420 का मुकदमा चलना चाहिए क्योंकि वह बौद्धिक फ्रॉड कर रहा है, वह झूठ बेच रहा है और वह हमारे न्यायालय के खिलाफ काम कर रहा है, हमारी पुलिस के खिलाफ काम कर रहा है और पूरी व्यवस्था के खिलाफ काम कर रहा है।
और अंत में उन्होंने वामी-इस्लामी गिरोह, जो खुद को अभिव्यक्ति की आजादी का चैम्पियन बताता है, के बारे में बोलते हुए कहा कि सच्चाई तो यह है कि वह अपने से अलग विचार सुन ही नहीं सकते हैं। अपने से अलग विचार सुनते ही वह असहिष्णु हो जाते हैं। और वह अपने से विरोधी विचारों वालों को मार भी सकते हैं। उन्होंने केरल और पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए कहा कि इन दोनों वाम शासित राज्यों में बहुत राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। उन्होंने वाम विचारधारा को वन वे विचारधारा कहा। उन्होंने यह भी कहा कि वह राष्ट्रवादी उद्देश्य के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे।
#Sdeo, #freedomofexpression #Redterror #Intellectualterror #Intellectualmafia #ShameonBloomsbury #FraudBloomsbury
ज्ञान अनमोल हैं, परंतु उसे आप तक पहुंचाने में लगने वाले समय, शोध, संसाधन और श्रम (S4) का मू्ल्य है। आप मात्र 100₹/माह Subscription Fee देकर इस ज्ञान-यज्ञ में भागीदार बन सकते हैं! धन्यवाद!
Select Subscription Plan
OR
Make One-time Subscription Payment

Select Subscription Plan
OR
Make One-time Subscription Payment

Bank Details:
KAPOT MEDIA NETWORK LLP
HDFC Current A/C- 07082000002469 & IFSC: HDFC0000708
Branch: GR.FL, DCM Building 16, Barakhamba Road, New Delhi- 110001
SWIFT CODE (BIC) : HDFCINBB
Paytm/UPI/Google Pay/ पे / Pay Zap/AmazonPay के लिए - 9312665127
WhatsApp के लिए मोबाइल नं- 8826291284