दिल्ली दंगों की सच्चाई बताने वाली किताब से Bloomsbury ने अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं. मगर यह कदम bloomsbury india का न होकर bloomsbury London का है. bloomsbury London को हिन्दुओं से दिल से नफरत करने वाले विलियम डेरिम्पल (William Dalrymple) ने आदेश दिया और भारत में बैठी उसकी गुलाम Bloomsbury india में अपने हथियार डाल दिए. अपनी किताबों में जम कर मुगलों का महिमामंडन करने वाला विलियम डेरिम्पल कई दिनों से दिल्ली दंगों का सच बताने वाली इस किताब के पीछे पड़ा था. वह नहीं चाहता था कि दिल्ली दंगों का सच दुनिया के सामने आए.
मजे की बात यह है कि क़ानून की बातें करने वाला विलियम डेरिम्पल खुद ही क़ानून तोड़कर भारत में निवास कर रहा है. अक्टूबर 2016 को विलियम डेरिम्पल ने एक लेख ट्वीट करते हुए लिखा था कि:
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ट्विटर यूजर आलोक भट्ट ने प्रश्न उठाते हुए कहा है कि आखिर विलियम डेरिम्पल यह फार्महाउस कैसे खरीद सकता है? इतना बड़ा फ़ार्म हाउस और वह भी दिल्ली के दिल में? सवाल तो उठेगा ही कि किस क़ानून के तहत उसने यह फ़ार्महॉउस खरीदा है?
यदि वह ओसीआई भी है तो भी वह फ़ार्महाउस नहीं खरीद सकता है क्योंकि वह फार्महाउस कृषि संपत्ति के अधीन आता है और यदि वह उसने खरीदा या फिर वह 5 साल की लीज़ से ज्यादा से उसके पास है तो यह गैर कानूनी है.
जिसका मतलब यह हुआ कि वह लूट रहा है, फिर ध्यान आता है कि अंग्रेजों का तो काम ही रहा है लूटना. ईस्ट इंडिया कम्पनी (East India Company) के रूप में आए तो लूटने ही आए थे और एक वेबसाइट के अनुसार विलियम डेरिम्पल के खुद के पिता भी एक लुटेरे ही थे. https://kreately.in/ के एक लेख के अनुसार विलियम के पुरखे जॉन डेलरिम्पल बतौर जज 27.69 किलो सोना हर साल लिया करते थे और आपको बता दें कि इस रकम में घूस की रकम शामिल नहीं है। इसके अलावा इनके परिवार में एक डेलरिम्पल और थे जो मद्रास में भारतीयों को मारने का काम करते थे।
विलियम का एक और ट्वीट है जिसमें वह लिखता है कि वह अपने पिता की स्क्रैपबुक को पलट रहा था तो उसने देखा कि उसके पिता को माउंटबेटेन की सिल्वर वेडिंग, 18 जुलाई 1947 को बुलाया गया था. वह एक ग्रांड डिनर की बात कर रहा था. अंग्रेजों की मानसिकता को समझना होगा कि भारत को आधिकारिक रूप से विभाजित करने से पहले वह शाही दावतें कर रहे थे और उन दावतों में नेहरु, जिन्ना, श्रीमती गांधी और रेडक्लिफ आदि को निमंत्रित किया गया था.
तो जाहिर है कि जब खानदान ही लूटने वाला हो तो वह दिल्ली में क्यों नहीं लूटेगा, वह तो गैर कानूनी रूप से महरौली के फार्महाउस पर रहना अपना अधिकार मानेगा ही, और अपनी औपनिवेशिक मानसिकता के चलते भारत को अपना गुलाम मानता है. इस मानसिकता के लोगों को पता है कि कैसे भारत के बौद्धिक जगत पर राज करना है. वह अपनी नफरत का एजेंडा जयपुर साहित्योत्सव से फैलाते हैं, जहां पर भाग लेने की पहली शर्त ही भारत से नफरत करना है. ऐसे लोग हिन्दुफोबिया को पूरी दुनिया में फैलाते हैं.
भारत को गुलाम मानते हैं, इस घटना से साबित हुआ है कि लन्दन में बैठी Bloomsbury London भारत की अपनी Bloomsbury India को अपना वही गुलाम मानती है, वह Bloomsbury india को अपना बंधुआ मानती है और यह सोचती है कि उससे जो चाहे काम करा लेगी और Bloomsbury India खुद को गुलाम ही मानती है!
अभी तक हिन्दुओं को उन्हीं के प्रति नफरत बेचने वाला नकली और फर्जी इतिहासकार बेचैन है, कि लोग अब अपना सच खोजने लगे हैं. हिन्दू अब अपनी नफरत नहीं खरीदेगा!
अब आते हैं खालिद होसैनी पर!
Bloomsbury के एक और सबसे ज्यादा बिकने वाले लेखक हैं खालेद होसैनी (Khaled Hosseini)! नाम से ही वैसे उनकी प्रतिबद्धता जाहिर हो जानी चाहिए, मगर फिर भी कामों से बताते हैं. कहने को वह संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर (UNHCR) के गुडविल अम्बेसडर हैं, और दुनिया भर में रिफ्यूजी के लिए काम करते हैं. चूंकि काबुल से हैं तो अफगानिस्तान से जो रिफ्यूजी कहीं और जाते हैं, उनके लिए इनके सीने में बहुत दर्द पैदा होता है. मगर अफगानिस्तान में कुछ गिने चुने सिख और हिन्दू बचे हुए हैं, जिन्हें सही में केवल उँगलियों पर गिना जा सकता है, उनका कत्लेआम यह देखेते हैं और उनके लिए इनकी कलम से एक भी पंक्ति नहीं लिखी जाती है.
यही नहीं रोहिंग्या मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं के खून के बारे में भी यह चुप हैं, और पाकिस्तान में रोज़ बलोचों के साथ होने वाले अत्याचारों पर चुप हैं, फिर पाकिस्तान में हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों पर क्या बोलेंगे?
पाकिस्तान में रोज़ कोई न कोई लड़की जबरन मतांतर का शिकार हो रही है, एक सुनियोजित तरीके से हिन्दुओं को मिटाया जा रहा है. और होसैनी फाउंडेशन केवल और केवल मुसलमानों पर होने वाले कथित अत्याचारों का रोना रो रहा है, जो कर कौन रहा है, पता नहीं!
ईरान में अफगानिस्तान के रेफ्युज़ियों पर रोने वाला खालेद होसैनी बांग्लादेश में स्वतंत्र आवाज़ रखने वाले हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही ब्लॉगर्स के मारे जाने पर चुप है!
और यह लोग चाहते हैं कि जो यह सिलेक्टिव एजेंडा अब तक चलाते हुए आए हैं, वह आगे भी चले! हर प्रकाशन हॉउस पर इनका कब्ज़ा है, जैसे फिल्मों में भट्ट और खान माफिया है, वैसे ही लेखन और प्रकाशन में विलियम डेरिम्पल और होसैनी माफिया हैं, जो चाहते हैं कि भारत की जनता वही सुने जो यह कहना चाहते हैं और वही पढ़े जो इन्होने लिखा.
मगर यह क्या, कल Bloomsbury India ने जैसे ही Bloomsbury London के इशारे पर यह हरकत की, यहाँ के राष्ट्रवादी लेखकों, जिनमें अब तक रीढ़ है और जो अपने देश के लिए समर्पित हैं, वह इस अन्याय के खिलाफ उठ खड़े हुए और सबसे पहले संदीप देव (Sandeep Deo) ने घोषणा की कि वह न केवल Bloomsbury से अपने सारे रिश्ते तोड़ रहे हैं, जबकि Bloomsbury India से संदीप देव की लिखी सभी किताबें बेस्ट सेलर रही हैं तथा उन्होंने बिक्री के कई रिकॉर्ड बनाए हैं, जिसकी कल्पना सहज नहीं की जा सकती है. Bloomsbury के लिए अब वह महायोगी आशुतोष महाराज (पंजाबी), टॉयलेट गुरु (हिंदी), राज योगी, कहानी कम्युनिस्टों की, स्वामी रामदेव: एक योगी एक योद्धा जैसी पुस्तकें लिख चुके हैं और कहानी कम्युनिस्टों की ने तो कई रिकॉर्ड बनाए हैं और अभी तक उसकी भारी मांग है. फायरब्रांड लेखक संदीप देव ने फेसबुक पर फायरब्रांड घोषणा की और कहा:
Kapot Media Network LLP टीम और प्रबंधन ने बैठक के बाद आज यह निर्णय लिया है कि
- Bloomsbury India से लीगल बैटल जीतने के बाद, मेरी पूर्व प्रकाशित और आगामी सभी पुस्तकें Kapot Publication से आएगी।
- साथ ही कंपनी ने यह भी निर्णय लिया है कि हम नये राष्ट्रवादी लेखकों को साइन करेंगे और उन्हें इंटरनेशनल स्तर की रॉयल्टी भी प्रदान करेंगे।
- हम मेनलाइन टीस्ट्रीब्यूटर को बाईपास करेंगे, क्योंकि वहां भी लेफ्ट-इस्लामिस्टों का कब्जा है।
- कपोत की सभी पुस्तकें केवल हमारे ई कामर्स kapot.in से मिलेंगी।
- अमेजन एंड अन्य नेटवर्क पर हमारे दूसरे पार्टनर्स बुक को ले जाएंगे।
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हमारी पुस्तकों की डिलिवरी होगी, जो अभी तक अंतरराष्ट्रीय होकर भी ब्लूम्स इसे नहीं कर रहा था।
- हम और हमारे लेखक सीधे पाठकों से जुड़ेंगे। हम बीच के सभी मध्यस्थों को खारिज करेंगे।
- और भी काफी सारे फैसले किए गये हैं, जो समय-समय पर पाठकों से शेयर किए जाएंगे।
यह Bloomsbury London के मुंह पर एक तमाचा है, क्योंकि दिल्ली दंगों पर किताब को प्रकाशित करने से कदम पीछे हटाकर वह फंस गयी है, भारत में उसका पाठक ही नहीं बल्कि लेखक भी विरोध कर रहे हैं. आज तक कई लेखकों ने अपने प्रकाशन को वापस लेने की घोषणा कर दी है! और वहीं भारत के रीढ़ वाले लेखकों ने Bloomsbury London को दिखाया है कि उड़ान अभी शुरू हुई है!
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इनका जबरदस्त विरोध होना चाहिए। ये हमें जो चाहे वो पढने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।