बहुत कम फिल्में हैं जो सोचने पर मजबूर कर देती है और ये फिल्में जुझारू निर्माताओं की तरफ से आती हैं जिसे बॉलीवुड या यूँ कहे कि व्यावसाइक सिनेमा कई कारणों से नज़रअंदाज कर देता है। इससे पहले सत्य घटनाओं पर बनी फिल्म कश्मीर फाइल ने अपने झंडे गाड़े हैं। अनवांटेड के फिल्ममेकर ने समाज में मुर्दा घोषित हो चुके लोगों पर सबसे पहले फिल्म बनाई।
उनका कहना है कि बाद में बड़े मेकर ने उसी विषय पर फिल्म बनाकर पहले रिलीज किया । पर अनवांटेड के मेकर के आउटसाइडर होने के कारण, कोई गॉड फादर नहीं होने के कारण थिएटर और OTT प्लेटफार्म में बाधाएं कड़ी कि गयी, जगह नहीं दी गयी , मजबूरन उन्हें युटुब में रिलीज करना पड़ा। वजह चाहे जो भी हो , इसी बहाने देश के दर्शकों को सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्म को देखने का मौका मिल रहा है क्यूंकि यूट्यूब आज सबका चलता फिरता सिनेमा हॉल है।
फिल्म की निर्माता मधुमिता रॉय कंपनी सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत थी लेकिन इस फिल्म के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। फिल्म निर्देशक दिलीप देव पिछले बाइस साल से फिल्म उद्योग में बतौर एडिटर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने आशुतोष गोवारिकर, बोनी कपूर और प्रभुदेवा जैसी फ़िल्मी हस्तियों के साथ काम किया है और अब अपनी स्वतंत्र फिल्म लेकर दर्शक की अदालत में उपस्थित हो रहे हैं। तो चलिए अब बात करते हैं उस सत्य घटना और फिल्म की।
पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार और बंगाल में , हमारे समाज में ऐसे लोगों की तादाद लगभग पचासो हज़ार हैं जो मरकर भी जीवित हैं। कहने का मतलब हमारे बीच ऐसे लोग भी रहते हैं जो कागज़ों पर मुर्दा हैं लेकिन वास्तविकता में हमारे बीच चल-फिर रहे हैं। फिल्म एडिटर से निर्देशक बने दिलीप देव ने इस अनछुए सामाजिक विषय से प्रेरित होकर एक फिल्म बनाई है, ‘अनवांटेड’। अनवांटेड हल्के-फुल्के लहजे में भारत के इन ‘मर चुके’ लोगों की कहानी को परदे पर प्रस्तुत करती है। ‘अनवांटेड’ कदाचित पूर्वांचल हिंदी क्षेत्र में शूट होने वाली पहली हिन्दी फिल्म है।
फिल्म की कहानी मंगल नाम के लड़के और इसके दोस्तों के इर्द-गिर्द घूमती है। मंगल को एक लड़की से प्यार है लेकिन वह शादी नहीं कर सकता। मंगल कागज़ों में एक ‘मरा हुआ इंसान है’। उसमे आम इंसानो जैसी सपने देखने की आदत है जो बॉलीवुड का फैन है और शाहरुख़ खान जैसा स्टार बनना चाहता है पर साजिशों के जाल में फंस जाता है। लल्लन हमारे समाज का वह विकृत चेहरा है जो सिनेमा के चकाचौंध को दिखा कर अपना उल्लू सीधा करता रहता है और बसंती जैसी लड़कियां वास्तविकता को भूल आभासी दुनिया के सुख के लिए पाप करती है।
इन सबकी बाला बुवा दूसरे बॉलीवुड स्टार अमिताभ बच्चन की बड़का फैन है। फिल्म का हर पात्र अपने तथाकथित सपनों के मोहजाल में गलत हथकंडे अपनाता है पर मंगल को जब अपनी गलती का एहसास होता है तो वह अपनी जड़ और वास्तविकता की तरफ मुड़ता है , उसे अपनाता है। अनवांटेड मंगल की ये कहानी मज़ाकिया अंदाज़ में हमारे समाज की इस जटिल हास्यास्पद समस्या के साथ साथ कई विषयों को छूते हुए दर्शकों के सामने रखती है, उन्हें सोचें पर मजबूर करती है।
फिल्म छह सालों के लम्बे इंतजार के बाद आज रिलीज हो रही है पर इसकी ताज़गी में कोई कमी नहीं है। ऐसा लगता है आज ही आस पास ऐसी घटनाएं घट रही है। आपको देखकर ऐसा लगेगा की ऐसे लोग आपके आस पास, आपके संपर्क में ही है। इसकी भाषा इसकी सत्यता में कोई कमी नहीं छोड़ती जिसमे पूर्वांचल का मिज़ाज़ साफ़ झलकता है। स्वतंत्र फिल्मकार का यही साहस जो कथित बॉलीवुड की मनोरंजन धारा से विपरीत है, इसे खास और देखने योग्य बनती है।
सबके पास पर्याप्त है पर फिर भी लालची लोग और ज़्यादा पाने की इच्छा में कमजोरों की राह में रोड़ा खड़ी करते हैं, उनका हक़ हड़पते है।
‘मंगल मुर्दा ज़िंदा है ‘ टैग लाइन बड़ी रोचक है और फिल्म का सार प्रस्तुत करती है।ये उन लोगों की कहानी है जो धनवान और लालचियों के बीच ज़िंदा होते हुए भी खुद को ज़िंदा नहीं कह सकते क्योंकि स्वार्थी लोगों ने इन्हे अनवांटेड बना दिया है।
फिल्म में मुख्य भूमिका उभरते युवा कलाकार नरेंद्र बिंद्रा ने निभाई है। इनके साथी कलाकारों में राणा अभिनव गौड़, शैजा कश्यप, रवि साह और थियेटर की हस्ती विभा रानीने अपनी प्रतिभा का जलवा बिखेर रहे है। इनके अलावा बचन पचेरा और कई कलाकार मुख्य भूमिकाओं में दिखाई देंगे। अन्य कलाकरों में बंका का पात्र करने वाले विनोद सोनी बिना शब्द कहे अपनी ओर आकर्षित करते है।
जेरी सिल्वेस्टर विन्सेंट का संगीत कहानी को जीवंत करते इसके प्रवाह को बांधे रखा है। क्रूरतम सत्य को संगीतमय कर हमें एक अलग दुनिया का एहसास कराती है । निर्देशक दिलीप देव का सत्य के करीब रहना, समाज के बहुत सारे असत्य को उजागर करता है। निर्मात्री मधुमिता रॉय का इस फिल्म को बनाना प्रशंसनीय है। और दर्शकों को इस फिल्म को देखकर इन्हे समर्थन देना भी ज़रूरी है।