असहिष्णुता को लेकर देश में चली बहस को देश के मुख्य न्यायाधीश श्री तीरथ सिंह ठाकुर ने भी सियासत करार दिया था। यह पूरा बहस ही कृत्रिम था ताकि बिहार में भाजपा की सरकार को आने से रोका जा सके और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विश्व नेता के रूप में उभर रही भारत के प्रधानमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचाया जा सके। पुरस्कार वापसी से लेकर हिंदी सिनेमा और पत्रकारिता तक से ‘असहिष्णुता’ के इस बहस को वही लोग लीड कर रहे थे, जो 2002 से लगातार नरेंद्र मोदी पर हमलावर हैं! इनमें से कुछ जैसे आमिर खान, तीस्ता सीतलवाड़ आदि तो वो हैं, जिन्होंने अमेरिका को पत्र लिखकर गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को वीजा न देने की वकालत की थी!
देश की छवि को धूमिल करने के लिए चलाए गए इस अभियान को अंग्रेजी व इलेक्ट्रोनिक मीडिया में बैठे वामपंथी पत्रकारों ने खूब हववा दी। आसाम की लेखिका श्रीमती रंजना देब ने ‘अभिव्यक्ति, असहिष्णुता और भारत'(असहिष्णुता का भ्रम एक साजिश) नामक पुस्तक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भारत सरकार के खिलाफ खड़े किए गए इस कृत्रिम आंदोलन के पीछे की सारी सच्चाई को उजागर किया है।
‘जनसंघ’ के संस्थापकों में से एक वैद्य गुरुदत्त के प्रकाशन ‘हिंदी साहित्य सदन’ से प्रकाशित इस पुस्तक में हर उस घटना का बारीकी से विश्लेषण किया गया है, जिसे तथाकथित बुद्धिजीवियों ने एक एजेंडा के तहत असहिष्णुता और सहिष्णुता के खांचे में बांट कर देश-विदेश में वितंडा खड़ा किया था!
इस पुस्तक में आमिर खान और शाहरुख खान से लेकर राजदीप सरदेसाई, बरखा दत्त, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, जेएनयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार जैसे हर उस सेलिब्रिटी के दोहरे चरित्र को उजागर किया गया है, जिनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है! कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के लिए इन फाइव स्टार सेलिब्रिटीज का मापदंड कुछ और था और 2014 के बाद आई मोदी सरकार के लिए इनका मापदंड कुछ और है!
हैदराबाद में आत्महत्या करने वाले ‘कथित दलित’ छात्र रोहित वेमुला से लेकर जेएनयू में ‘भारत तेरे टुकडे होंगे’ का नारा लगाने वालों और इनके पक्ष में कूदे हर उस चेहरे की सच्चाई को जनता के बीच लाने का प्रयास किया गया है, जिनका मकसद हर हाल में मोदी सरकार को गिराना है! बड़ी संख्या में विदेशी फंडेड एनजीओ जो देश तोड़ने व देश के विकास को रोकने में जुटे थे, मोदी सरकार ने उन पर रोक लगा दी है। इसके कारण फाइव स्टार एनजीओ का एक वर्ग, उनकी सहयोगी मीडिया और उसके पीछे की फंडिंग एजेंसी किस प्रकार देश की जनता द्वारा बहुमत से चुनी गई मोदी सरकार को अस्थिर करने में जुटे हैं, इसका उल्लेख भी पुस्तक में मिलता है।
आजाद भारत के राष्ट्रवादियों में एक बड़ी बीमारी यह जकड़ गई कि उन्होंने पढना छोड़कर, बोलना शुरू कर दिया! दूसरी तरफ वामपंथियों व नेहरूवादियों ने इसका फायदा उठाया और स्पेस खाली पाकर झूठे साहित्य से उसे भर दिया! कालांतर में उनका झूठ ही सच बन गया!
आज भी ठोस साहित्य निर्माण व अध्ययन की जगह, लोग टीवी डिबेट पर ज्यादा समय खराब करते हैं, क्योंकि यह 2 मिनट नूडल की तरह है; झटपट प्रसिद्धि भी दिला देती है और इसके लिए कोई अध्ययन भी नहीं करना पड़ता है! लेकिन यदि आप सन् 2014 के बाद की स्थिति को ठोस धरातल पर समझना चाहते हैं तो आपको यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए!
केवल 100 पृष्ठ वाली इस पुस्तक को पढ़कर हर व्यक्ति उन परिस्थितियों और उन चेहरों को देख व समझ सकता है, जो देश में मोदी सरकार के खिलाफ कृत्रिम आंदोलन खड़ा करने में शिद्दत से जुटे हुए हैं! इसलिए कभी अभिव्यक्ति की आजादी, कभी असहिष्णुता, कभी बीफ विवाद, कभी अल्पसंख्यकों पर हमला- जैसे अनर्गल मुद्दों को हवा दिया जा रहा है!
लेखिका रंजना देब ने यह पुस्तक इस देश के युवा वर्ग को समर्पित किया है, क्योंकि आज सबसे अधिक पढ़ने की आवश्यकता उन्हें ही है। युवाओं की आड़ लेकर ही अफजल गुरु व याकून मेनन जैसे आतंकवादियों को शहीद घोषित करने का प्रयास चल रहा है। कश्मीर, केरल और मणिपुर को भारत से तोड् कर अलग करने की बात की जा रही है। भारत माता की जय, वंदेमातरम् जैसे देशभक्तिपूर्ण नारों को सांप्रदायिक घोषित किया जा रहा है। इसलिए युवा पीढ़ी को तथ्यों से अवगत होना जरूरी है ताकि वो समझ सकें कि कौन भारत को जोड़ रहा है और कौन वास्तव में देश को तोड़ने में जुटा है!
पुस्तक: अभिव्यक्ति असहिष्णुता और भारत
लेखक: रंजना देब
प्रकाशक: हिंदी साहित्य सदन
मूल्य: 100 रुपए
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Web Title: book review- Abhivyakti, Asahishnuta Aur Bharat Asahishnuta ka bhram ek Sajish
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