रामेश्वर मिश्र पंकज। हिन्दू समाज की विकृतियों और कमजोरियों का ही निरंतर चित्रण करने वाली ngoया मीडिया रिपोर्ट तथा साहित्य को लगातार विदेशी पुरस्कार मिलने के विरुद्ध भारतीयों को और हिंदुओं को अपना क्रोध व्यक्त करना चाहिए। यह राष्ट्रीय कर्तव्य है । जो लोग उस पर खुशी व्यक्त कर रहे हैं, वह मेरी दृष्टि से हिंदू समाज से गहरी घृणा पाले हुए हैं और मुख्यतः ईसाइयों के नियोजित प्रोपेगेंडा से उनका चित्त अतिशय प्रभावित है।
रेत की समाधि के विदेश से पुरस्कृत होने से स्वस्थ भारतीय को आशंका ही अधिक हुई है।खुशी नहीं।यह सत्य छिपाने की आवश्यकता नहीं है। गीतांजलि श्री एक कम्युनिस्ट लेखिका हैं और भारत के विरुद्ध विशेषकर हिंदू समाज के विरुद्ध बहुत अधिक पूर्वगृह तथा विद्वेष भारत के कम्युनिस्टों में है । यह तो सदा स्मरण के योग्य और प्रचार के योग्य है। इसे छिपाने की क्या आवश्यकता है ,? मीडिया लोक भावनाओं की अभिव्यक्ति का ही माध्यम है।
अभी तक भारतीय सत्य को भारतीय दृष्टि से प्रस्तुत करने वाला एक भी कम्युनिस्ट लेखक भारत में नहीं हुआ है । 1925 से आज तक। यह सर्वविदित सत्य है।
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