- आततायी, प्रजा एवं धर्म विरोधी राजा वेन को मार कर उसके योग्य पुत्र पृथु को गद्दी पर बैठाने वाले ब्राह्मण थे। आज उसी महाप्रतापी राजा पृथु के नाम पर इस पृथ्वी का नाम है।
- निरंकुश राजसत्ता के विरुद्ध प्रथम मानव विद्रोह का नेतृत्व भगवान परशुराम ने किया था, जो ब्राह्मण थे।
- कलिकाल में संपूर्ण भारत को एक राष्ट्र के सूत्र में पिरोने के लिए आकाश-पताल एक करने, नंदवंश का विनाश कर चंद्रगुप्त मौर्य के रूप में योग्य राजा को गद्दी पर बैठाने और यवनों से भारत की रक्षा करने वाले विष्णुगुप्त चाणक्य एक ब्राह्मण ही थे।
- बौद्धों का आखिरी सत्ता संघर्ष ब्राह्मणों से- मौर्य वंश का खात्मा पुष्यमित्र शुंग द्वारा।
- कालप्रवाह में कुरीतियों की गठरी बन चुके बौद्ध धर्म को बौद्धिक धरातल पर परास्त कर भारत को पुनः सनातन धर्म की ओर लौटाने वाले कुमारिलभट्ट और आदि शंकराचार्य भी ब्राह्मण ही थे।
- मुगलों का आखिरी सत्ता संघर्ष ब्राह्मणों से- पेशवाओं द्वारा मुगल साम्राज्य का अंत।
- ब्रिटिशर्स का सत्ता संघर्ष ब्राह्मणों से- मंगल पांडे से आरंभ स्वतंत्रता संग्राम सुभाष चन्द्र बोस के आजाद हिन्द फौज से प्रेरित नौ सेना विद्रोह पर आकर समाप्त हुआ। इतिहासकार मीनाक्षी जैन के अनुसार स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों की गोली से मारे गये 70% देशभक्त ब्राह्मण थे।
महाभारत में युधिष्ठिर- मार्केंडेय संवाद में कलियुग का लक्षण बताते हुए ऋषि मार्कण्डेय कहते हैं, ज्यों-ज्यों कलियुग बढ़ेगा ब्राह्मणों और पापियों के बीच संघर्ष बढ़ता जाएगा।
लेकिन मैं यह भी कहना चाहूंगा कि जन्मना ब्राह्मण घमंड न करें, क्योंकि यदि आपने शास्त्र का पठन-पाठन-वाचन छोड़ दिया तो आपका ब्राहणत्व भी नष्टप्राय ही है। तभी रामायण में कहा गया है कि जब ब्राह्मण प्रलाप करने लगे तो समझना कलियुग पूरे चरम पर है।
सनातन शास्त्र विरोधी कम्युनिस्ट, शास्त्र विहीन संघ एवं शास्त्रच्युत व्यक्तिवादी-पार्टीवादी ब्राह्मणों को देख लीजिए। ये प्रलापी ब्राह्मणों की श्रेणी में रखे जाने योग्य हैं! ये केवल जन्मगत ब्राह्मण रह गये हैं, कर्म उनका म्लेच्छों जैसा हो चुका है। शास्त्र में म्लेच्छ की एक परिभाषा यह भी है कि वो वेदों को न मानता हो। अब शास्त्रों को न मानने व उस पर न चलने वाले उपरोक्त जन्मना ब्राह्मण म्लेच्छ सदृश्य ही तो हुए न?
फिर भी मुट्ठी भर ब्राह्मण इतिहास बदल सकते हैं, यह इतिहास से सीख कर स्वतंत्रता के बाद के ‘भूरे साहबों’ ने ब्राह्मणों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने का षड्यंत्र पहले संविधान की आड़ में, और फिर भी जब ब्राह्मण नहीं रुके तो मंडल कमीशन, SC/ST act आदि द्वारा किया। आज इस देश में ब्राह्मणों से घृणा की एक पूरी ‘इंडस्ट्रीज’ स्थापित हो चुकी है। फारसी शब्द ‘मेहतर’ की ‘जाति’ बनाने वाले मुगल बादशाह अकबर के वंशजों के साथ ‘जय भीम-जय मीम’ का नारा गढ़ते हुए ब्राह्मणों को गाली दिया जा रहा है!
आज इस देश को छोड़कर दूसरे देश के ग्रोथ में भारतवंशी ब्राह्मण अपना योगदान दे रहे हैं। वहीं भारत में यह विमर्श आरंभ हो चुका है कि (आरक्षण की बेड़ियों में जकड़ने के बावजूद) IIT, IIM आदि में सवर्ण खासकर ब्राह्मण घुस कैसे रहे हैं? बकायदा इस पर हार्बर्ड के प्रोफेसर पुस्तकें लिख चुके हैं और उनके एजेंडे को यहां के उनके एजेंट आगे बढ़ा रहे हैं!
यह सच है कि योग्यता जातिगत नहीं होती, परंतु यह भी सच है कि परिवेश आपकी योग्यता को बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है! ब्राह्मणों का परिवेश शास्त्र का अध्ययन-मनन-चिंतन था, जिसका प्रवाह व प्रभाव समाज पर दिखाई देता था। आज यह परिवेश टूट रहा है, जिस कारण सनातन परिवार व्यवस्था और भारतीय समाज भी टूट कर बिखर रहा है।
अतः शास्त्र को धारण कीजिए, स्वाध्याय कीजिए आप ‘ब्राहमणत्व’ के वाहक बन जाएंगे। हमारे शास्त्रों में ऐसे कई ऋषि हुए हैं, जो जन्मना ब्राह्मण नहीं थे, लेकिन कर्म और ज्ञान के उस उच्च शिखर को छुआ कि उनकी गिनती ब्राह्मण ऋषियों में की गई।
स्वाध्याय ही आपके ‘ब्राह्मणत्व’ को वापस लौटाएगा, अन्यथा तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था ने तो ‘जन्मना ब्राह्मणों’ के लिए सुलभ शौचालय में अठन्नी गिनने और रिक्शा चलाने का काम निर्धारित कर ही दिया है!