सारा कुमारी– ब्राह्मण नहीं, अब क्षूद्र हूं मैं अपनी दुर्दशा, से क्रुद्ध हूं मैं
लक्ष्मी नहीं तो, बेकार हूं मैंइस कलयुग में, लाचार हूं मैं
हीरा था, अब पाषाण हूं मैंतरकश से टूटा बाण हूं मैं
गलतफहमी का शिकार हूं मैंसबका ही तिरस्कार हूं मैं
जाती नहीं, एक ढाल हूं मैंदुश्मनों का काल हूं मैं
ज्ञान का भंडार हूं मैंनिरंतर्ता का संचार हूं मैं
शरीर का दिमाग़ हूं मैंसबसे महत्त्वपूर्ण भाग हूं मैं
अंधकार में, प्रकाश हूं मैंअपने समाज की आसं हूं मैं
अनुष्ठान का, साथ हूं मैंकर्म – कांड के पास हूं मैं
हर ईश्वर की आरती हूं मैंहर अर्जुन का सारथी हूं मैं
ब्राह्मण नहीं, अब शुद्र हूं मैं अपनी दुर्दशा, से क्रुद्ध हूं मैं
जय हिन्द जय भारत