श्वेता पुरोहित।
बड़े-बड़े राजपूत राजाओं ने अकबर के सामने सिर झुका दिया था और उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी; किंतु महाराणा प्रताप ही ऐसे थे जो अकबर के आगे कभी झुके नहीं। उन्होंने बड़े-बड़े कष्ट उठाये, किंतु हिंदूकुल के गौरव को सुरक्षित रखा। इन्हीं हिंदू-कुल-सूर्य महाराणा प्रताप की प्यारी पुत्री का नाम चम्पा था।
अकबर की सेना ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था।
महाराणा प्रताप अरावली पर्वत की घाटियों, गुफाओं और बनों में अपने परिवार के साथ भटकते फिर रहे थे।महारानी और राजकुल के सुकुमार बालक, पता नहीं कितना कष्ट का रहे थे। लेकिन अपने धर्म और देश की स्वतन्त्रता तथा गौरव के लिये महाराणा ने पूरे पचीस वर्ष यह अपार कष्ट उठाया।
इस कठिन समय में महाराणा को बच्चों के साथ दिन-दिन भर पैदल घूमना पड़ता था। रात को भूमि पर या चट्टानों पर वे सोते थे। बहुधा बच्चों को उपवास करना पड़ता था। तीन-तीन, चार-चार दिनों पर कहीं जंगली बेर और घास की रोटियाँ मिल पाती थीं। कई बार ऐसा अवसर आता था कि वे घास की रोटियाँ भी बनाते- बनाते छोड़कर भागने को विवश हो जाते थे।
महाराणा प्रताप की पुत्री चम्पा ग्यारह वर्ष की थी और एक पुत्र था महाराणा के जो उस समय चार वर्ष का था। एक दिन दोनों बालक एक नदी के किनारे खेल रहे थे। छोटे कुमार को भूख लगी थी। वह रोटी माँगने लगा और रोने लगा। उस चार वर्ष के बच्चे को क्या पता कि उसके पिता-माता के पास आज अपने युवराज के लिये रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं है। चम्पा ने अपने छोटे भाई को कहानी सुनाकर फूलों की माला पहिनाकर बहला दिया। राजकुमार भूखा ही सो गया।
चम्पा जब छोटे भाई को गोद में लेकर माता के पास सुलाने आयी तो देखा कि महाराणा चिन्ता में डूबे बैठे हैं। उसने पूछा- ‘पिताजी! आप चिन्तित क्यों हैं?’
महाराणा ने कहा- ‘बेटी! हमारे यहाँ एक अतिथि आ गये हैं। आज ऐसा भी दिन आ गया कि चित्तौड़ के राणा के यहाँ से अतिथि भूखा चला जाय।’

चम्पाने कहा- ‘पिताजी ! आप चिन्ता न करें! हमारे यहाँ से अतिथि भूखा नहीं जायगा। आपने मुझे कल जो दो रोटियाँ दी थीं, वे मैंने बचा रखी हैं। मुझे भूख नहीं है। मैंने रखी तो छोटे भाई के लिये थी, पर वह सो गया है। आप उस अतिथि को दे दीजिये।’
पत्थर के नीचे दबाकर रखी घास की दो रोटियाँ पत्थर हटाकर चम्पा ले आयी। थोड़ी-सी चटनी के साथ वे रोटियाँ अतिथि को दे दी गयीं। अतिथि रोटियाँ खाकर चला गया। लेकिन महाराणा से अपने बच्चों का कष्ट नहीं देखा गया। उस दिन उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिये पत्र लिख दिया।
ग्यारह वर्ष की सुकुमार बालिका चम्पा दो-चार दिन पर तो खाने को घास की रोटी पाती थी और उसे भी बचाकर रख दिया करती थी। अपने भाग की रोटी वह अपने छोटे भाई को थोड़ी-थोड़ी करके खिला देती थी। लेकिन इस प्रकार भूख के मारे वह सूख गयी थी। उस दिन अतिथि को रोटियाँ देने के बाद मूर्च्छित ही हो गयी। महाराणा प्रताप ने उसे गोद में उठाकर रोते-रोते कहा- ‘मेरी बेटी! अब मैं तुझे और दुःख नहीं दूँगा। मैंने अकबर को पत्र लिख दिया है।’
चम्पा मूर्च्छा में से चौंक पड़ी। वह कहने लगी- ‘पिताजी! आप यह क्या कहते हैं? हमें मरने से बचाने के लिये आप अकबर के दास बनेंगे?
पिताजी ! हम सब क्या कभी मरेंगे नहीं? पिताजी ! देश को नीचा मत दिखाइये ! देश और जाति की गौरव-रक्षा के लिये लाखों लोगों का मर जाना भी उत्तम ही है। पिताजी ! आपको मेरी शपथ है, आप अकबर की अधीनता कभी न मानें?’
बेचारी चम्पा बोलते-बोलते महाराणा की गोद में ही सदा को चुप हो गयी। लोग कहते हैं कि अकबर के दरबार में महाराणा का पत्र देखकर पृथ्वीराजजी ने महाराणा को पत्र लिखा और उसे पढ़कर फिर महाराणा ने अकबर के अधीन होने का विचार छोड़ दिया। लेकिन सच बात तो यह है कि बालिका चम्पा ने अपने बलिदान से ही महाराणा का विचार बदल दिया था और हिंन्दूकुल के गौरव की रक्षा कर ली थी।
🌟 ऐसी वीर बालिका को कोटि – कोटि नमन 🙏
नारायण !नारायण! नारायण! नारायण!