सेम :-
पुराणों में वर्णन है की असुरों से पीड़ित भारतवर्ष के पश्चिमी भाग अर्थात सिंधु पार वारुण क्षेत्र में निवास करने वाले आम सज्जन एवम ऋषियों की पुकार पर स्वामी इंद्र ने आकर उन असुरों उचित दण्ड दिया। तत्पश्चात इंद्र पुनः स्वर्ग में लौट गया। यानी सिंधु के पार रहने वाले और लुटेरों द्वारा लूटे गए ऋषि-मुनि आदि की रक्षा के लिए प्रार्थना किए जाने पर इंद्र ने यहां के असुरों और दस्युओं का नाश किया।
इंद्र ने उन असुरों द्वारा भारत भूमि के विरुद्ध की जा रही आक्रामक युद्ध की तैयारी से पूर्व ही आसुरी सेना पर एक संक्षिप्त आक्रमण कर के आसुरी सेना के तीन पचास अर्थात् (५०x३ = १५०) डेढ़ सौ योद्धा मार दिए। इस छोटे से युद्ध में इन्द्र की सेना के भी इक्कीस योद्धा मारे गये।
इन्द्र की इस सेना में स्वयं इन्द्र की निन्दा करने वाले भी थे, किंतु वे आर्य थे, इसलिए उनको इस युद्ध में मरने के पश्चात् जलाया गया था, परन्तु आसुरों के मृत शरीरों का दाहसंस्कार जलाकर नहीं किया गया अपितु उनको भूमि में रख कर मिट्टी से दबा दिया गया।
असुरों के मृत शरीर भूमि में जिस घर में अथवा जिस स्थान पर रखे जाते है, उन्हें “अर्मक” कहा जाता है तथा जिस स्थान पर ये “अर्मक” बनाये जाते हैं, उस स्थान को “वैलस्थान” कहा जाता है।
येऽत्रानिन्द्रा आर्य्यास्तेषां दाहः प्रमीतानाम् ।
असुराणां मृतदेहा नादह्यन्त क्षितौ त्वधीयन्त।।
मृतदेहा असुराणां यत्र गृहे शेरते निहिताः । तद्गृहमर्मकमुक्तं वैलस्थानेऽर्मकाणि कल्प्यन्ते॥
आर्मीनियेति नाम्ना प्रथितं प्रान्तं तदर्मकं मन्ये। देवासुरसंग्रामे हतासुराणां श्मशानं तत्॥
असुरश्मशानभूमिं वैलस्थानाख्यया स्म ते ब्रुवते । राज्ञां महाश्मशानं तथैव कथितं महावैलम् ||
आज की साधारण भाषा में कहें तो जिस स्थान पर मृत देह को गड्डे में गाड़ा जाता है उसे अर्मक यानी कब्र कहा जाता है और जिस स्थान पर ऐसी बहुत सारी कब्र हों उसे वैलस्थान यानी कब्रिस्तान कहा जाता है।
जिस स्थान पर असुरों के विरुद्ध यह युद्ध लड़ा गया और जहां ये “अर्मक” बनाए गए थे वह स्थान है आज का आर्मीनिया प्रांत अथवा देश है जो उस प्राचीन अर्मक अथवा वैलस्थान से आज का आर्मेनिया बना है। अर्थात देवासुर संग्राम में मरे हुए असुरों का श्मशान था।
एक अन्य तथ्य यह भी है कि आम और साधारण असुरों की श्मशान भूमि “वैलस्थान” के नाम से कही जाती थी तथा असुरों के राजाओं के महाश्मशान को “महावैल” कहा गया।बहुत से प्रसिद्ध असुर, जो युद्ध में मारे गये अथवा पहले भी मारे जाते थे उनको भी इसी महावैल में स्थापित यानी गाड़ा जाता था।
- अजय चौहान (२४-०९-२०२४)