विपिन त्रिपाठी :-
कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी जी पोलैंड व युद्धरत यूक्रेन की यात्रा पर गए थे। उन्होंने कहा कि दुनिया की समस्याओं का समाधान युद्ध से नहीं बुद्ध से होगा। उनका यह चिंतन. स्वाभाविक है, क्योंकि वे बुद्ध के देश के रहने वाले हैं, जहां अहिंसा, प्रेम व बातचीत से समस्याओं का समाधान खोजने की कोशिश की जाती है। लेकिन मूल प्रश्न यह है कि, क्या अब्राहमीक धर्मो को मानने वाले देश, वे चाहे पश्चिम के हो या पश्चिमी एशिया के उनके इस संदेश को महत्व देंगे ? जिसकी उम्मीद नगण्य है । इसके कई कारण है। पहला कारण है, आजादी के आठ दशक बीतने वाले हैं, भारत आर्थिक रूप से आज भी बेहद कमजोर स्थिति में है। 1990 में चीन की अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 462 बिलियन डॉलर था, भारत का लगभग 440 बिलियन डॉलर, आज चीन की अर्थव्यवस्था बीस ट्रिलियन डॉलर की है, और हमारी मात्र तीन ट्रिलियन डॉलर की है, अर्थात हमसे सात गुना बड़ी है, और अमेरिका की अर्थ व्यवस्था तीस ट्रिलियन डॉलर की है। आप भी जानते हैं की कमजोर की आवाज को कोई नहीं सुनता है।
दूसरा कारण अब्राहमिक धर्मों में एक खुदा, एक किताब, व एक पैगंबर को मानने की अवधारणा है, तथा ” फाइनल डे आफ जजमेंट” का विश्वास भी है। जो तब- तक नहीं आनी है जब – तक सम्पूर्ण विश्व उनके मत को स्वीकर नहीं कर ले, तब – तक जेहाद या क्रूसेड अनिवार्य है। दरअसल इन धर्मो की इसी चिंतन धारा के कारण ही ये अपने मूल चिंतन व चरित्र में, साम्राज्यवादी, विस्तारवादी, युद्ध वादी व अपने व्यवहार में फासिज्म के गुणसूत्र लिये होते हैं। युद्ध उनके लिए बुराई नहीं है, उनके लिए उपासना है, अर्चना है, आराधना है और उनका आनंद है । यही कारण है की मध्य युग में क्रिश्चियनिटी व इस्लाम ने तीन चौथाई विश्व पर कब्जा कर लिया, युद्ध और हिंसा के दम पर। उन्होंने, उन क्षेत्रों के निवासियों को अपने-अपने मजहब में तब्दील कर लिया। प्रसिद्ध अफ्रीकी नेता डेसमंड टू – टू ने एक बार कहा था कि, “जब गोरे उनके देश में आये उनके हाथ में बाइबिल थी और हमारे पास जमीन, आज हमारे हाथ में बाइबिल है उनके पास जमीन!”
लेकिन युद्ध हमेशा बुरे भी नहीं होते हैं। विशेष कर प्रथम विश्व युद्ध में “ओटोमन अंपायर” को ध्वस्त कर विश्व के तमाम देशों को “इस्लामी साम्राज्यवाद” से मुक्ति दिलाई और द्वितीय विश्व युद्ध ने भारत समेत तमाम एशिया, अफ्रीका के देशों को क्रिश्चियन साम्राज्यवाद से मुक्ति दिलाई थी। यह अलग बात है कि इतिहास में हमको को पढ़ाया गया है कि इस्लाम वह क्रिश्चियन साम्राज्यवादी हम असभ्यओं को, सभ्य बनाने आए थे। और उनसे मुक्ति गांधी जी के अहिंसा से प्राप्त हुई।
कल्पना कीजिए, यदि दुनिया से युद्ध विदा हो जाते हैं तो, अमेरिका समेत सभी पश्चिमी देशों की, आधी आबादी भूख से मरने लगेगी। ये मुल्ला व मौलवी,बेरोजगार हो जाएंगे l मदरसे, मस्जिद सब वीरान हो जाएंगे। जब मोदी जी, इन समुदायों को बुद्ध का संदेश देते हैं, तो लगता है कि आप भेड़िए को शाकाहारी होने का उपदेश दे रहे।
वर्तमान दुनिया जिन समस्याओं से जूझ रही है, यदि भारतीय मनीषा से देखा जाए तो, बहुत सारे समाधान हैं। लेकिन शक्तिहीन के उपदेश का कोई मूल्य नहीं होता है। राष्ट्रकवि दिनकर जी ने कहा था “क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो”। यहां पर “क्षमा” की जगह “उपदेश” शब्द को जोड़ने की जरूरत है।
विडंबना देखिये, प्रथम विश्व युद्ध में जब इस्लामी साम्राज्यवादी व क्रिश्चियन साम्राज्यवादी आपस में लड़ रहे थे, उस युद्ध में पंद्रह लाख भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया था, और जब द्वितीय विश्व युद्ध में क्रिश्चियन साम्राज्यवादी यूरोप में आपस में भिड़ रहे थे, उस विश्व युद्ध में पचीस लाख भारतीय सैनिकों ने भाग लिया था। अर्थात जब साम्राज्यवादी शक्तियां अपना युद्धों – उत्सव मना रहे थे उसमें कटने के लिए भारतीय सैनिकों का निर्यात, भेड़- बकरियों की तरह यूरोप को किया जा रहा था । ठीक उसी समय भारत के खेत- खलिहानों से अनाज जबरदस्ती उठाकर, जहाज से यूरोप भेज दिया गया था। जिसके परिणाम स्वरुप बंगाल और बिहार में भुखमरी फैल गई और लगभग चालीस लाख लोग भूख से तड़प- तड़प के मर गए थे। तत्कालीन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री “चर्चिल,” ने बोला था कि,ये चूहे – कुत्तों की तरह बच्चे पैदा करते हैं, उनके जीवन का कोई मूल्य नहीं है। ये बचन उस देश के प्रधानमंत्री के थे, जो दावा करते हैं कि विश्व को लोकतन्त्र उनकी देन है, तथा विश्व की तमाम जातियों व नस्लों को उन्होंने सभ्यता सिखाई है ।
कल्पना कीजिए! किस तरह का समाज था हमारा, किस तरह के पूर्वज थे हमारे! चेतना विहीन, प्रतिक्रिया विहीन, भाग्यवादी, निश्चेत जीवों का एक झुंड, जिनके आधे बच्चों की, उस युद्ध में बलि दी गयी , जिस युद्ध से उनका कोई संबंध नहीं था , और बांकी आधे बच्चे जो अपने देश में ही रह गए, भूख से मारे गये, पर कोई प्रतिक्रियाएं नहीं हुयी ! गांधी जी ने भी कोई प्रतिरोध नहीं किया, जिनके अहिंसा के हथियार से समूचा क्रूर “क्रिश्चियन साम्राज्यवाद” पूरी दुनियां में ध्वस्त हो गया था?