विपुल रेगे। भारतीय क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान मिताली राज पर एक फिल्म ‘शाबाश मिठू’ का पहला प्रोमो प्रदर्शित हुआ है। इस प्रोमो को उदाहरण मानकर एक बहस छेड़ी जा सकती है। बहस इस पर होनी चाहिए कि वास्तविक चरित्रों पर बनने वाली फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर हिट कराने के लिए फेमिनिज़्म का इस्तेमाल कब तक किया जाने वाला है। बॉयोपिक्स अब फ्लॉप हो रहे हैं लेकिन इनके बनने का सिलसिला जारी है। एक अन्य क्रिकेटर झूलन गोस्वामी का बॉयोपिक भी रिलीज पर है।
सचिन तेंदुलकर सर्वकालिक महान खिलाड़ी हैं। उनका कॅरियर 24 वर्ष का रहा। कॅरियर में कभी कोई विवाद नहीं हुआ। सर्वकालिक महान क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का कॅरियर 16 वर्ष रहा। सर्वकालिक महान बल्लेबाज़ सुनील गावस्कर ने केवल सोलह वर्ष ही क्रिकेट खेला। ऐसे ही भारतीय महिला क्रिकेट की सर्वकालिक प्रभावशाली क्रिकेटर मिताली राज ने भी 23 वर्ष अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला।
यानि कि मिताली को भी सचिन तेंदुलकर की तरह ही लंबे समय तक देश की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। इसका अर्थ ये है कि उनके साथ किसी प्रकार का अन्याय नहीं हुआ। तथ्य तो कम से कम यही सिद्ध कर रहे हैं। ये अवश्य है कि कॅरियर के अंतिम दिनों में जब उनको नहीं चुना गया तो उन्होंने अपने कोच और चयनकर्ताओं पर आरोप लगाए। 35 वर्ष की आयु तक आते-आते शरीर खेल के लिए शत-प्रतिशत साथ नहीं देता, ये तथ्यात्मक सत्य है।
मिताली पर बनी शाबाश मिठू का प्रोमो देखकर लगा कि कहानी फिर से वही है, जो अभिनेत्री तापसी पन्नू की फिल्म की हर कहानी में होती है। नारी उत्पीड़न से उबरती नायिका उनकी पहचान बन गई है। कोई भी फिल्म हो, तापसी सभी में एक सी हैं। पुरुष के प्रति क्रोध के ताप से तपती तापसी अपने किरदारों में इसलिए ही कोई वेरिएशन नहीं ला सकी हैं। लिहाजा शाबाश मिठू में भी तापसी के मैनरिज्म में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं पड़ रहा है।
बॉलीवुड के माथे पर अब बॉयोपिक्स की लगातार असफलताएं शिकन लाने लगी है। एक महेंद्र सिंह धोनी ब्लॉकबस्टर होकर लेजेंड हो गई तो सबको ही बॉयोपिक ही बनानी थी। बॉयोपिक और ऊपर से खेल फिल्मों का भविष्य अब बॉक्स ऑफिस पर संदिग्ध हो चला है। स्टम्प्ड, पटियाला हाउस, दिल बोले हड़िप्पा, 83, हैट्रिक, जर्सी, मीराबाई नॉटआउट आदि वे फ़िल्में हैं, जो क्रिकेट पर बनाई गई थी। भारतीय बॉक्स ऑफिस बड़ा रहस्य्मयी होता है।
वह शुक्रवार को कैसा व्यवहार करेगा, कहना मुश्किल है। अब देखिये, जो कमल हासन पिछले कई वर्ष से फ्लॉप थे, उनकी फिल्म विक्रम 400 करोड़ कमा गई। विक्रम उनके बेहतरीन कॅरियर की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म बन गई। भारतीय महिला क्रिकेट की एक और खिलाड़ी झूलन गोस्वामी पर भी एक फिल्म ‘चकदा एक्सप्रेस’ बन रही है। ये नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित होगी। शाबाश मिठू की तरह ही इस फिल्म में भी वह मुद्दा उठाया गया है, जब महिला क्रिकेटरों के पास पहनने के लिए स्वयं के नाम की जर्सी तक नहीं थी।
मीडिया ने भी इसे जोरशोर से उठाया था। अब तो महिला क्रिकेटरों को अपने नाम की आधुनिक जर्सी मिलने लगी है। ये मुद्दा वास्तविक है, और दर्शाना बुरा नहीं है लेकिन हरदम पुरुष को अत्याचारी दिखाते रहने से दर्शक अब ऊब चुके हैं। मैं कह ही चुका हूँ कि मिताली राज को एक लंबा खेल कॅरियर मिला है। यदि उनके ऊपर बैठे निर्णायक पुरुष इतने ही अत्याचारी होते तो क्या उनका कॅरियर 23 वर्ष का हो सकता था।
बॉलीवुड को कुछ समय के लिए बॉयोपिक्स पर काम बंद कर देना चाहिए और बैठकर इन विषयों पर बनाई गई वैश्विक फ़िल्में देखनी चाहिए। तब उन्हें समझ आएगा कि एक गांधी या एक ब्यूटीफुल माइंड जैसी फिल्म बनाने में वर्षों का पसीना लग जाता है। इतने परिश्रम और समर्पण के बाद वे फ़िल्में दशकों तक याद रखी जाती हैं।