हाल ही में कुछ घटनाक्रम ऐसे हुए की हिंदू अपने आप को छला हुआ महसूस करने लगा है। आख़िर अचानक ऐसा क्या हुआ की जो हिंदू यह कहते नहीं थकते थे कि वर्तमान सरकार ही हिंदू हितैषी है और हिंदुओ की आवाज़ को बुलंद इनहि की वजह से हुई है, वो आज दुखी मन से एकाएक सरकार और संघ की आलोचना में लग गए?
हालाँकि हिंदू काफ़ी समय से वर्तमान सरकार से नाराज़ है। हाल ही में नूपुर शर्मा प्रकरण के चलते भाजपा समर्थकों में भी ख़ासा रोष देखने को मिल रहा है। इससे पूर्व भी सरकार की कइ नितियो पर समय समय पर समर्थकों द्वारा प्रश्नचिन्ह लगाए जाते रहे हैं। जहाँ एक तरफ़ सरकार पर तुष्टिकरण केआरोप लगते रहे हैं
वहीं दूसरी ओर हिंदू भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले तत्वों पर कार्यवाही ना करने के भी आरोप हैं। संघ भी इस विरोध से अछूता नहीं रहा जब हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत जी ने एक वक्तव्य में कह दिया कि हमें हर जगह शिवलिंग क्यूँ ढूँढना! ऐसे बयान संघ एवं भाजपा की तरफ़से लगातार आ रहे हैं। इसी बीच यदि कुछ एक दो प्रकरण ऐसे हो जाएँ जो एक तरफ़ हिंदू भावनाओं को ठेस पहुँचाने का कार्य करे तो ऐसे में विरोध होना लाज़मी है।
किंतु सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह बनता है इस समय कि क्या इतने विरोध के बाद भी संघ और भाजपा इस विरोध को ले कर संवेदनशील है? इसका उत्तर मुझे मिला जब मैंने संघ द्वारा आयोजित एक बैठक में भाग लिया जो की छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक- हिंदू साम्राज्य दिवस के उपलक्ष में रखी गई थी।
बैठक में सभी ने अपने विचार व्यक्त किए शिवाजी महाराज के विषय में, किंतु मेरी मनोदशा तब बदल गई जब बैठक के जब मुख्य वक्ता ने अपना विषय रखा। उनका आधे से अधिक वक्तव्य इस विषय पर केंद्रित था संघ शिवाजी की नीतियों पर कार्य कर रहा है।
उन्होंने बतलाया की कैसे शिवाजी ने दुश्मनों से दोस्ती की थी और बाद में सही समय आने पर उन्होंने जीत हासिल की। वे विषय कहते कहते यहाँ तक कह गए की हमें अपने नेतृत्व पर भरोसा होना चाहिए, सवाल नहीं करना चाहिए और हमारा बौधिक स्तर ऐसा नहीं नही की हम शीर्ष नेतृत्व के निर्णय पर सवाल उठा सकें चाहे कोई कितना भी विद्वान क्यूँ ना हो।
बाद में उन्होंने कुछ अपने ही विचारधारा के लोगों को भी नकार दिया जो अभी सरकार का विरोध कर रहे हैं। वे कहते हैं की शिवाजी के लोगों ने भी शिवाजी पर पूर्ण विश्वास किया था, उनसे सवाल जवाब नहीं किए थे। उन्होंने इसी के साथ मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का औचित्य भी सिद्ध करने का भरपूर प्रयास किया। इस सब से एक बात मुझे समझ में आती है की भाजपा और संघ को इस बात का एहसास अवश्य हुआ है की उन्होंने जो किया उस पर प्रतिक्रिया ज़बरदस्त आ रही है और इसे अभी कंट्रोल नही किया गया तो यह बढ़ सकती है। किंतु वे इसको अभी भी अपनी किसी गलती के रूप में स्वीकार करना नही चाहते। वे इसको उचित ठहराने में पूरे दम ख़म के साथ लगे हुए हैं।