
भगत सिंह को वामपंथी बताना शहीद-ए-आजम का अपमान।
अमित श्रीवास्तव। भगत सिंह को वामपंथी विचारक बताना उनका अपमान है। विडंबना है कि भगत सिंह को वामपंथी बताने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के कोर्स में वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भगत सिंह को “आतंकवादी” पढ़ाए जाने का कभी विरोध नहीं करते। यह भी एक प्रकार से वामपंथी विचारधारा का प्रचार ही है जिसे वामपंथ से खुद को अलग घोषित कर वामपंथ के अघोषित प्रचारकों द्वारा किया जाता है।
शहीद भगत सिंह का जन्म सनातनी परंपराओं पर विश्वास करने वाले एक आर्य समाजी परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा भी आर्य समाज के वैदिक सिद्धांत पर चलने वाले दयानंद एंगलों वैदिक कॉलेज में हुई। इन्होंने अपनी पार्टी जिसका संचालन चंद्रशेखर आजाद द्वारा किया जा रहा था में सोशलिस्ट शब्द जुड़वाया। चूंकि तात्कालिक सोवियत संघ में सोशलिस्ट शब्द थे इस आधार पर इन्हें वामपंथी करार दिया गया किन्तु भारत में समाजवाद साम्यवाद से विपरीत धारा है और इसका संबन्ध साम्यवाद से है ही नहीं। उदाहरण के रूप में भारत में समाजवाद के सबसे बड़े चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया को देखा जाता है। क्या डॉ लोहिया को हम वामपंथी मान सकते हैं? नहीं कभी नहीं।
इनका दूसरा कुतर्क है कि भगत सिंह को जब फांसी के लिए पुकारा गया तो वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। समय के साथ इस कहानी पर भी लोगों ने संदेह जताया है। अटल बिहारी वाजपेयी व इंदिरा गांधी के बारे में भी वामपंथी पत्रकारों द्वारा एक झूठ को इतनी बार कहा गया कि अटल बिहारी वाजपेयी जी के बार बार सत्य सामने रखने के बाद भी लोग यह मानते हैं कि वाजपेयी जी ने इंदिरा गांधी को माँ दुर्गा कहा था जबकि वाजपेयी जी इसका खंडन कई बार कर चुके हैं।
वामपंथ उस जमात का नाम है जो झुंड में झूठ परोसते है और एक दूसरे को साक्षी बता झूठ को पुष्ट कर सत्य साबित कर देते हैं। शैक्षणिल संस्थाओं, पत्रकारिता के समूहों पर इनके कब्जे ने इनका काम और भी सुलभ बना दिया है। जब जीवित व प्रधानमंत्री पद पर बैठे अटल बिहारी वाजपेयी जी इनके प्रपंच व झूठ को फैलने से नहीं रोक पाए तो भगत सिंह तो जेल में ही बन्द थे। और उनका शव ही बाहर आया।
किन्तु यदि मान भी लिया जाए कि भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और इस आधार पर इन्हें वामपंथी स्वीकार किया जाए तो यह भगत सिंह का घोर अपमान है कि जो युवा अध्ययन अध्ययन और केवल अध्ययन के आधार पर अपनी राय बनाता हो वह पहले वामपंथी बना ततपश्चात लेनिन को पढ़ना शुरू किया। इसका अर्थ हुआ कि भगत सिंह बिना पढ़े ही लेनिन से प्रभावित हो गए। यह कहना इनका अपमान होगा। और जिन्होंने अपनी जीवन के अंतिम क्षणों में लेनिन को पढ़ना शुरू किया और आधा ही पढा वह भला वामपंथी कैसे हो सकता है?
भगत सिंह ने प्रखर हिन्दू नेता, महान स्वतंत्रता सेनानी व हिन्दू महासभा के अध्यक्ष लाला लाजपत राय जी की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही अंग्रेज अधिकारी स्कॉट की हत्या की योजना बनाई किन्तु प्रतीक्षारत स्वतंत्रता सेनानियिं द्वारा स्कॉर्ट के न दिखने पर सांडर्स की हत्या की गई। जब भगत सिंह ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी/आर्मी की सदस्यता ली उन दिनों तक भारत मे कॉमनिस्ट पार्टी की स्थापना हो चुकी थी। क्या कोई वामपंथी अपनी विचारधारा की पार्टी को छोड़ कर अन्य दल में शामिल होना चाहेगा?
भारत में वामपंथी साहित्यकारों एवं पत्रकारों का चरित्र आज के चीन से ही मिलता है जो झूठ, छल, कपट, षड्यंत्र, सीनाजोरी एवं कुतर्क का सहारा लेकर विस्तारवाद एवं अधिनायकवाद को समाज मे स्थापित करते हैं। पूर्व में सुभाष चंद्र बोस जैसे महान नेता को जापान के प्रधानमंत्री तोजो का कुत्ता व गधा बताने वाले वामपंथी पिछले कुछ वर्षों से सुभाष चंद्र बोस को भी वामपंथी बनाने का षड्यंत्र रच रहे हैं।
यदि संघ और जनसंघ का भाजपा के रूप में विस्तार न हुआ होता तो वामपंथी साहित्यकार/ पत्रकारों के द्वारा एकात्म मानववाद के माध्यम से समाज के अंतिम व्यक्ति व सर्वहारा के उदय के लिए अंत्योदय के सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले दीनदयाल उपाध्याय जी को भी वामपंथी घोषित कर दिया गया होता।
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