श्वेताभ पाठक श्वेत प्रेम रस। साधक प्रश्न :: राधेश्याम प्रभू जी, क्या भक्त की भी पूजा की जा सकती है..?? क्या भक्त भी भगवान बन सकता है..??
उत्तर :: अगर वह भगवदप्राप्त महापुरुष है तो केवल उसी को पकड़ लो , भगवान स्वतः मिल जाएंगे ।
वेदांत में एक सूत्र है – तस्मित तज्जने भेदाभावात ।
भगवान और भगवान के भक्त में कोई भेद नहीं है ।
स्वयं भगवान ने भागवत में कहा –
आचार्यम माम विजानियात नावमन्येत कहिर्चित ।
न मर्त्य बुद्ध्या सुयेत सर्व देव मयो गुरु: !!
आचार्य को मेरा ही स्वरूप मानो ।
क्योंकि ब्रह्म विद् ब्रह्मैव भवति । ( उपनिषद )
जो उस ब्रह्म को जान लेता है वह स्वयं ब्रह्म के समान हो जाता है ।
तो हम जिसकी पूजा करते हैं , उसके गुण स्वयमेव आने लगते हैं ।
क्यों अभी बवाल मचा है औरंगजेब को लेकर ?
क्योंकि उसको पूजने वालों के अंदर उसी के गुण आएंगे ।
तो इसलिए इन दोनों में कोई भेद नहीं है ।
यह दोनों पूजनीय हैं ।
Shwetabh Pathak (श्वेताभ पाठक)
Shwet Prem Ras