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जातिवाद / अवसरवाद

जातिव्यवस्था

ISD News Network
Last updated: 2023/02/06 at 2:40 PM
By ISD News Network 252 Views 12 Min Read
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सतीश अन्ना। प्रश्न: जातिव्यवस्था इन्सान के द्वारा बनाई गयी है या ईश्वर के द्वारा?

उत्तर: निश्चित रूप से ईश्वर द्वारा बनाई गयी है।

प्रश्न :क्या इसे तर्क के द्वारा समझा सकते है?

उत्तर :हां, क्यों नहीं? बिलकुल समझा सकता हूँ

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प्रश्नकर्ता: लेकिन न तो मुझे संस्कृत का ज्ञान है ना ही मैं शास्त्रों का ज्ञाता हूँ। हाँ, मैंने एम.ए .किया है

उत्तर :कोई बात नहीं। संस्कृत , या शास्त्रों का ज्ञान नहीं होगा तो चलेगा। किन्तु कॉमनसेंस होना जरूरी है।

प्रश्नकर्ता: जी , वो तो है

उत्तर: अब हम शुरूआत करते हैं, कृपया बतायें कि इस पृथ्वी पर कितने प्रकार के जीव रहते हैं?

प्रश्नकर्ता: मनुष्य ,पशु, पक्षी, जलचर, पेड़, पौधे इत्यादि

उत्तर: बिलकुल सही, अब एक बात बताओ पशु कहने से सभी पशु शेर हो गए क्या? पक्षी कहने से सभी पक्षी तोता हो गए क्या? जलचर कहने से सभी शार्क मछली हो गए क्या? पेड़ कहने से सभी आम हो गए क्या?

प्रश्नकर्ता: नहीं… शेर जानवरों की जाति है, तोता पक्षियों की जाति हे, और आम पेड़ की जाति है।

उत्तर: तो क्या इन्हें इन्सान ने बनाया है?

प्रश्नकर्ता: नहीं… ये तो ईश्वर की बनाई व्यवस्था है।

उत्तर: ठीक उसी प्रकार मनुष्य कहने से सभी ब्राह्मण हो गए क्या? नहीं… ये तो मनुष्यों की जातिव्यवस्था है जो की ईश्वर द्वारा बनाई गयी है जैसे जानवर शब्द से हजारों जानवरों का होना समझा जाता है, पक्षी शब्द से हजारो प्रकार के पक्षी होने का बोध होता है, फल शब्द से हजारों प्रकार के फलों का होना समझा जाता है उसी प्रकार मनुष्य शब्द से हजारों प्रकार के मनुष्यों का होना सिद्ध होता है… साथ ही साथ इन सभी की जाति के साथ साथ प्रजाति का होना भी पाया जाता है। और सुनो जातिव्यवस्था केवल इन्सान के लिए ही नहीं अपितु यह संसार अनेक प्रकार की विविधताओं से भरा पड़ा है।

आप स्वयं देखिये, आम की कितनी प्रजातिया होती हे…

नीम की कितनी प्रजाति होती है…

शेर की जाति प्रजाति… बन्दर, घोडा, तोता, सर्प, गेहूँ, चना, चावल, इत्यादि। अतः अब आप ही बताए कि इसमें इन्सान द्वारा जातिव्यवस्था का निर्धारण करना कहाँ सिद्ध होता है !

प्रश्नकर्ता: मैं आपकी बात से सहमत हूँ, कृपया आप जातिव्यवस्था के विज्ञान को सरल भाषा में विस्तार से समझाने का कष्ट करें।

उत्तर: ब्रह्माजी ने सृष्टि रचना के समय अपने मुख से ब्राह्मण को उत्पन्न किया, भुजाओं से क्षत्रियों को उत्पन्न किया, अपने उदर से वैश्यों को प्रकट किया तथा अपने चरणों से शूद्रों की उत्पत्ति की… अर्थात् मुख से मेधाशक्ति, भुजाओं से रक्षाशक्ति, उदर से अर्थशक्ति, एवं चरणों से श्रमशक्ति को उत्पन्न किया। इसका अर्थ यह हुआ कि ब्राह्मणों के पास जो शक्ति है उसका सम्बन्ध सिर से है यानि ब्राह्मण के पास देखने, सुनने, बोलने, बताने, सूंघने, तथा किसी को भी खा जाने की शक्ति होती है। प्राचीन काल में किसी भी राज्य में जो राजा होता था वह मार्गदर्शक के रूप में किसी ब्राह्मण को जरूर गुरु के रूप में मार्गदर्शक बना कर रखता था तथा उन्हीं के परामर्श से अपनी प्रजा का पालन करता था क्योंकि वह जानता था की मेरे पास शक्ति है, ज्ञान नहीं।

क्षत्रियों को भुजाओं से उत्पन्न किया तो स्वाभाविक है कि उनके पास भुजाओं का बल अत्यधिक पाया जाता हे और किसी भी राज्य की रक्षा का दायित्व क्षत्रियों का होता है। उसी प्रकार वैश्यों की उत्पत्ति उदर से हुई तो उनके पास संग्रह तथा वितरण की कुशलता पाई जाती है। यही उसकी शक्ति का आधार है ।

ठीक उसी प्रकार शूद्रों को पैरों से उत्पन्न किया याने शूद्रों के पास श्रम शक्ति होती है। जो श्रम वे कर सकते है वह अन्य कोई वर्ण या जाति का व्यक्ति नहीं कर सकता। इसीलिए भगवान् कहते है सभी की धर्मों की सिद्धि का मूल सेवा है। सेवा किये बिना किसी का भी धर्म सिद्ध नहीं होता। अतः सब धर्मों की मूलभूत सेवा ही जिसका धर्म हे… वह शूद्र सब वर्णों में महान है।

ब्राह्मण का धर्म मोक्ष के लिए है, क्षत्रिय का धर्म भोग के लिए, वैश्य का धर्म अर्थ के लिए है,और शूद्र का धर्म -धर्म के लिए हे। इस प्रकार अन्य तीन वर्णों के धर्म अन्य तीन पुरुषार्थ के लिए है किन्तु शूद्र का धर्म स्व-पुरुषार्थ के लिए है।

अतः इसकी वृति से ही भगवन प्रसन्न हो जाते हैं। अस्तु अब आगे सुनिए।यह जो ब्रह्मा जी की सृष्टि है यह भगवान का शरीर ही है। इसी में सारा ब्रह्माण्ड बसा हुआ है। सारे लोक इसी शरीर में है ! यह विराट शरीर ही हमारा संसार है !

अब आप बताइए कि किस- किस अंग से कौन- सा कार्य होता है…

सिर का कार्य हाथों द्वारा संभव है? नहीं….

हाथों का कार्य उदर द्वारा संभव है? नहीं….

उदर का कार्य पैरों द्वारा संभव है? नहीं….

जातिगत व्यवस्था को कदाचित् भंग कर दिया जाए तो क्या स्थिति उत्पन्न होगी विचार कीजिए…..

विचार क्या कीजिए। अरे देख ही लीजिएः वर्तमान में जो शिक्षा पद्धति व जीविका पद्धति हमारे ऊपर थोपी गयी है उसका परिणाम क्या हो रहा है?

वर्णसंकरता, कर्मसंकरता………
और ऊपर से आरक्षण…

हमारे यहाँ कभी भी किसी के लिए भी रोजी- रोटी का संकट था क्या? कभी नहीं ! प्रत्येक व्यक्ति अपनी जाति तथा वर्ण के अनुसार अपना जीवन यापन करता था! कोई भी किसी के कर्म का अतिक्रमण नहीं कर सकता था अपितु एक दूसरे के सामंजस्य से सारे कार्य होते थे, कोई भी समाज अपने को हीन नहीं समझता था ! प्रत्येक समाज अपनी जाति पर गर्व महसूस करता था क्योंकि वो जानते थे कि जो गुण योग्यता उनमे हे वह अन्य के पास नहीं है। यह ईश्वर का उस समाज के लिए वरदान हुआ या नहीं?

ये भी पढें–वर्ण व्यवस्था : अद्भुत सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था है।

अब मै आपको दूसरे रूप में समझाता हूँ। कल्पना कीजिए कि आप स्वयं भगवान् विराट् हैं। यह शरीर जो आपको प्राप्त हुआ है यह आपका संसार है और इस शरीर के मालिक या भगवान आप हैं एवं इस संसार में आपको मुख के रूप में ब्राह्मण, भुजाओं के रूप में क्षत्रिय, उदर के रूप में वैश्य और पैरों के रूप में शूद्र प्राप्त हुए हैं।

अब इनसे आपको इस संसार रूपी शरीर का संचालन करना है। कैसे करेंगे ?

अब आप कहें कि मैं जातिव्यवस्था में विश्वास नहीं करता बल्कि सबको सामान दृष्टि से देखता हूँ… कोई ब्राह्मण नहीं, कोई क्षत्रिय नहीं, कोई वैश्य नहीं, कोई शूद्र नहीं… आर्थात सभी अंगों को समान मानता हूँ।

किसी भी अंग से कोई भी कार्य करा सकता हूँ और तो और अब मैं अपने चरणों को यानी की शूद्रों को मुख्य धारा में लाने का प्रयास करूँगा और ब्राह्मणों से वो कार्य करवाऊंगा जो आजतक श्रमशक्ति {शूद्र} द्वारा किये जाते थे। वैश्यों के कार्य क्षत्रिय करेंगे, क्षत्रिय के कार्य वैश्यों से अर्थात् सभी वर्णों को सभी कार्य का अधिकार होगा। अब फिर से आप कल्पना करके बताओ कि आपके संसार रूपी शरीर की स्थिति क्या होगी? वही स्थिति आज हमारे समाज की हो रही है। उदाहरण लीजिए, जब से आरक्षण आया हे तब से हमारे चरण {श्रमशक्ति} जमींन से ऊपर उठ गए।

क्या मतलब निकला? चरणों का स्थान वाहनों ने ले लिया या नहीं? आज कितने व्यक्ति संसार में अपने पैरों का उपयोग करते हैं आवागमन मे? अब पैरों का उपयोग केवल विशेष परिस्थिति में ही किया जाता है ताकि इन्हें किसी प्रकार का कष्ट न हो! और तो और टी.वी.का चैनल बदलने के लिए भी पैरों को कष्ट देना नहीं है। विकल्प के तौर पर अब हमारे पास रिमोट कण्ट्रोल जो आ गया है! अब जब पैरो द्वारा श्रम ही नहीं होगा तो क्या होगा? मोटापा बढ़ जाएगा, पेट बाहर निकल आएगा, मतलब संसार की सारी संपत्ति का वेश्य {उदर} संग्रहण तो करेंगे किन्तु वितरण नहीं होगा।

वितरण क्यों नहीं होगा, क्योकि श्रम नहीं हो रहा…..

अब बारी आती है ब्राह्मणों की यानी मुख की…..

क्या स्थिति है आज मुख {ब्राह्मण} की? जितनी सफाई इसकी की जाती है शायद ही किसी अंग को इतना चमकाया जाता हो जितना चेहरे को चमकाया जाता है। सबसे ज्यादा जिम्मेदारी भी इसी की है क्योंकि संसार रूपी शरीर के संचालन में इसकी भूमिका सबसे अहम होती है। बगैर पैरों के शरीर जीवित रह सकता है, बगैर हाथों के शरीर जीवित रह सकता है, किन्तु सिर को अगर धड़ से अलग कर दिया जाए तो कोई जीवित रह सकता है? कल्पना कीजिए।

महोदय……ऐसा है कि हम कोई समानता के विरोधी नहीं है। सभी को समानता का अधिकार निश्चित ही प्राप्त होना चाहिए। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। किन्तु समानता का मतलब किसी के अधिकारों का अतिक्रमण करना नहीं हे।

आप ही बताइए आप अपने किस अंग से भेदभाव करते हैं?

किसी से नहीं… क्योंकि वे सब आपके अंग है।

एक सज्जन ने जातिव्यवस्था के बारे में लिखा की ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण, क्षत्रिय का बेटा क्षत्रिय, ऐसा कैसे संभव हो सकता है?

इस प्रकार तो डॉक्टर का बेटा डाक्टर, मास्टरजी का बेटा मास्टर यह तो गलत है। अब मैं उन सज्जन से कहूँगा कि मान्यवर आप जिस व्यवस्था के अन्तर्गत बात कर रहे वह मैकाले महोदय की शिक्षा पद्धति के डॉक्टर व मास्टरजी हैं न कि सनातन व्यवस्था के। हमारे यहाँ तो वैद्य का बेटा वैद्य, सुतार का बेटा सुतार, लोहार का बेटा लोहार, सुनार का बेटा सुनार, ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण, और क्षत्रिय का बेटा क्षत्रिय ही होता है। उन्हें कुछ सीखने कहीं बाहर नहीं जाना होता।

अपितु अपनी परम्परा प्राप्त आजीविका का ज्ञान उसके DNA यानि संचित कर्म में रचा बसा होता है। आवश्यकता है तो अपने वर्ण या जाति के गुणों को निखारने की क्योंकि हीरे को जब तक तराशा नहीं जायेगा तब तक वह किसी के मुकुट की शोभा नहीं बढ़ा सकता।

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    TAGGED: Caste and Conversion, caste system, Sanatan dharma, sanatan hindu dharm, sanatan sanskriti
    ISD News Network February 6, 2023
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    Posted by ISD News Network
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