अनुपमा चतुर्वेदी I भारतवर्ष ने सदियों अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए असंख्य युद्ध लड़े हैंI भारत की धरती माँ ने अपने सपूतों का लहू, माथे पर सिन्दूर के समान सुशोभित किया हैI मात्र भूमि की रक्षा हेतु शीश कटाने की स्वर्णिम परंपरा का जितने शूरवीरों ने संकल्प लिया, उनकी संख्या को स्वयं इतिहास भी नहीं गिना सकता I परंतु वर्तमान में राष्ट्रवाद, तिरंगा, तीनों सेनाओं के महावीर, भारत माता की जय, भारतीय परम्पराएँ, हमारे तीज त्यौहार, हमारे मंदिर, हमारी अनेक धरोहरें सबको राजनीतिक रूप दिया जा चुका हैI ऐसा प्रतीत होता है कि भारत माता की धरती पर सारे ज्वालामुखी एक साथ फट रहे हैंI
इसके उबलते-धधकते लावे में हम सब धीमी गति से झुलस रहे हैंI शरीर ही नहीं आत्माएँ और चरित्र भी जल रहे हैंI हर पटल पर विग्रह, द्वेष, षड़यंत्र, दानव-दैत्य रूपी मनुष्य और विश्वासघातियों का ही बोल बाला दिखता हैI एक साधारण व्यक्ति का, परिश्रम से अपने परिवार को शांतिप्रिय, सुखद और संतुष्ट जीवन देना असंभव हैI आज नहीं तो कल , वह किसी न किसी कारण से इस कुरुक्षेत्र में युद्ध करने को अवश्य ही घसीटा जायेगा I
भरोसा, उम्मीद, धैर्य सब टूटते जा रहे हैं I हताहत मनुष्य प्रलय की प्रार्थना कर रहा है क्योंकि मानव के इस विकराल वीभत्स रूप का साक्षात्कार करना साधारण व्यक्ति की सहनशीलता के परे है I समस्या जटिल और विराट है, तो हल भी प्रभावशाली व दक्षता पूर्ण ही निकालना होगा I कुछ प्रयोग ऐसे किया जा सकते हैं I राष्ट्रवाद का सही अर्थ समझकर जैसे एक फौजी अपने रक्त में उसे प्रवाहित कर लेता है, वैसा ही हमारे बच्चों को बालावस्था से ही राष्ट्र भक्ति सिखाई जानी चाहिए I
हर विद्यालय को सैनिक स्कूल में परिवर्तित कर शिक्षा संस्कार को एकसार कर दिया जाये I विद्यालयों में हमारी संस्कृति की गौरवान्वित शिक्षा प्रणाली के साथ हर बच्चे को एक सैनिक के रूप में तैयार किया जाए I बचपन से ही सैनिक प्रशिक्षण हर विद्यार्थी में राष्ट्रवाद के साथ उच्च कोटि का स्वस्थ और शारीरिक बल भर देगा। बारहवीं तक शिक्षा निशुल्क हो और हर बच्चे का शिक्षा लेना अनिवार्य हो I
इस कानून को संवैधानिक कर, अभिभावकों को इसका उलंघन करने पर उचित दंड का प्रावधान हो I आरक्षण और जातिवाद जैसी प्रणालियों का समूल विनाश किया जाए I किसी भी तरह का व्यावसायिक पद उसी को दिया जाए जो उसके लिए शत प्रतिशत योग्य हो। अक्षम और अयोग्य डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक और वैज्ञानिक इत्यादि इसी आरक्षण प्रणाली की देन हैं।
इस तरह की शिक्षा प्रणाली से भारत का एक-एक नागरिक देशभक्त होगा और भारत माँ की एक पुकार पर करोड़ों प्रशिक्षित सैनिक पहले से ही तैयार होंगे जिनको मूलभूत प्रशिक्षण स्कूल में दिया जा चुका होगा। मेरा अनुभव है कि जो सैनिकों के बच्चे हैं अधिकतर वे राष्ट्रवादी होते हैंI शायद इसका कारण हमें बचपन में दिए गए वो संस्कार होते हैं जो तिरंगे, राष्ट्र गान व यूनिफोर्म की गरिमा और हमारे आस-पास ही रहते शहीद शूरवीरों के बलिदान को भलीभांति समझते हैं I
वायु सेना के दस विभिन्न स्टेशन पर बिताये अपने जीवन के २० सालों ने देश, देशवासियों और अति प्रतिष्ठित देश की तीनों सेनाओं के प्रति जो भाव मुझमें उत्पन्न किए वे संभवतः मेरे उन मित्रों में वैसे नहीं मिले जो सिविल में पले बढ़े थे I परन्तु यह बात सब पर लागू नहीं होती I आज अपने देश को एक फौजी की भांति ही सम्मान और देश प्रेम देने की आवश्यकता है I
मुझे ज्ञात है, प्रधानमंत्री आदरणीय मोदी जी के विरोध में, लोग असंख्य हैं परन्तु उनके पक्ष को, उनके राष्ट्रहित को समर्पित स्वेदमय पुरुषार्थ को समझने वाले भी अब कम नहीं हैं I लोकतंत्र में विपक्ष सबल होना ही चाहिएI परन्तु विपक्ष को प्रवंचक, बेईमान, देशद्रोही, हर कार्य में व्यवधान डालने वाला अवरोधी होना भी आवश्यक हैं? यदि देश की प्रगति के मार्ग पर बड़े-बड़े पत्थर बिछे होंगे तब प्रगति गतिमान होगी या गतिहीन ? जब विदेशी ताक़तों को आमंत्रित किया जायेगा भारत के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए तब हमारा देश हमारी बहुमत से चुनी सरकार चला रही होगी या विदेशी ?
अपने देश पर गर्व होना, अपने तिरंगे का सम्मान करना, अपने प्रधानमंत्री को बिना किसी शर्त के समर्थन देना केवल तीनों सेनाओं और सैनिकों का ही उत्तरदायित्व नहीं है I आज इतने युगों के पश्चात मेरा देश करवट ले रहा है, भीमकाय विराट काया से सीढ़ी चढ़ रहा है I अपने शरीर में अन्दर तक घुसे हुए परजीवियों से मुक्त और स्वस्थ होने का भरसक प्रयास कर रहा है I
ज़रा सा धैर्य, ज़रा सी एकता, ज़रा सा स्वाभिमान और ज़रा सी ईमानदारी ही तो माँग रहा है I आज आत्मचिंतन की सबको आवश्यकता है I अपने नहीं अपने बच्चों के अस्तित्व और भविष्य की चिंता करने की आवश्यकता है I भारतवर्ष में आदिकाल के बाद कलयुग में फिर से एक बार ‘अमृत-मंथन’ हो रहा है और कोई महादेव का रूप धर सारा विष पी रहा है I हमको तो सिर्फ यह तय करना है कि हम वासुकी नाग रूपी रस्सी के किस तरफ खड़े हो कर समुद्र मंथन कर रहे हैं I क्योंकि इस मंथन में हर व्यक्ति को आज नहीं तो कल भाग तो लेना ही पड़ेगा I
हताहत राष्ट्रवाद
“जब बड़ा पेड़ गिरता है
तो धरती हिल ही जाती है”
पर निर्भया की माँ सालों
खून के आँसू बहाती है
राष्ट्रवाद पड़ा चरणों में
मुफ्तखोरी, विजयशीष चढ़ी
मुँह खोलकर ‘वन्दे मातरम्’
बोला तो, तेरी गर्दन कटी
बहुमत के करोड़ों कायर
सीना तान खड़े हैं आज
बुद्धि बंद कर देखो अपनी
भारत बेचने चला समाज
मूर्ख नहीं ये, जाने सब कुछ
पर लालच से कैसे जीतें
हमें क्या, कि कल क्या होगा
सुख की नींद तो आज सो लें
सेना को गाली दें, जी भर के
कड़कड़ाती ठण्ड में खड़ी जो आज
तिरंगे की गर्मी से देखो
सेक रही जो अपने हाथ
(continued )
“सेना देगी प्राणाहुति
बस यही काम तो है इनका”
शत्रु के निर्लज्ज मेहमान बनें
देशद्रोह बस ध्येय इनका
जाग जाओ! ओ सोते शेरों
सुनो गर्जना, गोरखा ने भरी
खुकरी ले लड़ता दुश्मन से
“कायरता से तो मौत भली”