30 अगस्त 2020 को भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी सीबीआई को एक पत्र लिखते हैं। पत्र में स्वामी जानना चाहते हैं कि सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध हत्या वाले केस का क्या हुआ। इस पत्र का उत्तर देने में एजेंसी को चार माह लग गए। चार माह बाद 30 दिसंबर को उत्तर में कहा जाता है ‘जाँच जारी है।’
सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध हत्या को आज आठ माह होने आए हैं। सीबीआई को इस केस पर जाँच करे हुए सात माह होने आ रहे हैं। अब तक उनके पास इस केस को लेकर कहने को इसके अलावा कुछ नहीं है कि ‘जाँच चल रही है’। हालांकि अब वे अपने लंबे चौड़े उत्तर में ये भी जोड़ दे रहे हैं कि जाँच आधुनिक तरीके से की जा रही है।
वैसे ये बताने की आवश्यकता नहीं है। दुनिया भर की जांच एजेंसियां अब मामले हल करने के लिए तकनीक का ही सहारा ले रही हैं। तीन पन्नों के इस पत्र को स्वामी प्रधानमंत्री के समक्ष प्रस्तुत करने जा रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि स्वामी या प्रधानमंत्री महोदय इस पत्र से संतुष्ट होंगे। सात माह की जांच के बारे में इस पत्र में कुछ नहीं कहा गया है।
सीबीआई देश के नागरिक और मीडिया के सामान्य ज्ञान की परीक्षा लेती प्रतीत हो रही है। आपने कहा जांच जारी है और हम मान लेंगे। एजेंसी किस आधार पर ऐसा कहती है, मुझे समझ नहीं आया। सुशांत केस में मुख्य संदिग्ध बंधन मुक्त होकर घूम रहे हैं। रिया चक्रवर्ती के वकील ने तो कोर्ट में याचिका दायर कर दी है कि उसे झूठे केस में फंसाया गया है।
एक भी जमीनी कार्रवाई विगत तीन माह से नहीं दिखाई दी है। मुंबई में इस केस को लेकर मची हलचल को बंद हुए महीनों बीत चुके हैं। स्वामी के पत्र का उत्तर देना विवशता थी। एक रजिस्टर्ड पत्र को आप ऐसे इग्नोर नहीं कर सकते। जिस दिन स्वामी के पत्र का जवाब आया, उसी दिन दिल्ली में सीबीआई मुख्यालय के सामने सुशांत केस में सीबीआई की ढिलाई को लेकर ज़ोरदार प्रदर्शन किया गया।
ये प्रश्न विचारणीय है कि सीबीआई के निकम्मेपन से इतने नाराज़ सुशांत के समर्थक सीबीआई के जवाब से संतुष्ट होंगे। सुशांत समर्थक ही नहीं, स्वयं गृहमंत्री अमित शाह भी संतुष्ट नहीं होंगे। क्या अब अमित शाह को सीबीआई से कड़ाई से सवाल नहीं करना चाहिए। स्वामी को दिए जवाब के बाद तो ये आवश्यक हो ही जाता है कि गृहमंत्री सीबीआई चीफ को तलब करें।
जाँच में सात माह का समय कोई कम नहीं होता। वह भी ऐसी जाँच, जिसमे आज तक कोई गिरफ्तारी ही नहीं हुई। ऐसी जाँच जिसमे फिल्म उद्योग के कई नामचीन लोगों से प्रश्न करने की ज़रूरत ही नहीं समझी गई। ऐसी जांच, जिससे जुड़ी सहयोगी एजेंसी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के दो अधिकारी फर्जीवाड़े में पकड़े गए थे।
ऐसी जाँच, जिससे जुड़ी जाँच एजेंसी के चीफ पर मुंबई में प्राणघातक हमला हो गया। गृहमंत्री और प्रधानमंत्री को अपने बिजी शेड्यूल में से थोड़ा समय इन बातों के लिए अवश्य निकालना चाहिए। बिहार चुनाव में जन भावनाओं के साथ खेलकर बिहार के मुख्यमंत्री ने इस केस को मुद्दा बनाया था। ये केस जन भावनाओं से जुड़ा है, इसलिए केंद्र को संज्ञान लेना चाहिए। यदि वे नहीं लेते तो जो खटास केंद्र के प्रति आ जाएगी, वह भविष्य के लिए अच्छी नहीं होगी।