CBI Vs CBI के मामले में सुनवाई करते हुए जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश की बेंच ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के संदर्भ में टिप्पणई की है कि क्या सीबीआई डायरेक्टर कानून से ऊपर हैं? उसे देखते हुए निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कांग्रेस, कांग्रेसी मीडिया और प्रशांत भूषण जैसों के अरमानों पर हथौड़ा के माफिक पड़ा है। क्योंकि इन्हीं लोगों ने आलोक वर्मा के कंधे पर बंदूक रखकर मोदी सरकार को घेरने की साजिश रची थी। मालूम हो कि मोदी सरकार द्वारा सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को बलात छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई की। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, लेकिन सुनवाई के दौरान उन्होंने सीबीआई निदेशक के अधिकार को लेकर जो टिप्पणी की है वह निश्चित रूप से कांग्रेस, कांग्रेसी मीडिया और प्रशांत भूषण जैसे के अरमानों पर पानी फेड़ने के लिए काफी है।
मुख्य बिंदु
* सतर्कता आयोग ने कहा असाधारण परिस्थितियों के कारण अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई जरूरी थी
* सरकार ने कहा कि बड़े स्तर पर सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए आलोक वर्मा से लिया गया अधिकार
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश वाली बेंच के सवालों का जिस प्रकार सरकारी वकील और सीवीसी के वकील ने जवाब दिया है वह भी काबिले तारीफ कहा जा सकता है। मुख्य न्यायधीश ने जब आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को बलात छुट्टी पर भेजे जाने की आतुरता और कारण के बारे में पूछा तो सरकारी वकील केके वेणुगोपाल ने कहा कि असाधारण परिस्थिति में फैसला भी असाधारण ही लिया जाता है। उन्होंने कहा कि सीबीआई के दोनो शीर्षस्थ अधिकारियों के बीच महीनों से बिल्लियों की भांत लड़ाई को देखने के बाद ही दोनों अधिकारियों को एक साथ छुट्टी पर भेजने का तत्काल फैसला लिया गया।
मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई ने जल्दबाजी में दोनों सीबीआई अधिकारियों को छुट्टी पर भेजने के संदर्भ में सीवीसी से कहा कि जब इतने दिनों से चल रही लड़ाई को बर्दाश्त किया गया तो फिर कुछ और दिन बर्दाश्त किया जा सकता था। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बगैर चयन समिति से संपर्क किए आखिर किसकी संस्तुति पर केंद्र सरकार ने यह फैसला किया? मुख्य न्यायधीश के सवालों का जवाब देते हुए सीवीसी ने कहा कि असाधारण परिस्थितियों को संभालने के लिए असाधारण उपचार की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जो कानून और प्राधिकरण से परे है, ऐसी असाधारण परिस्थितियों में भी अगर सीवीसी कार्रवाई नहीं करेगा तो फिर वह दंतहीन (निष्क्रिय) हो जाएगा। वहीं वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस से कहा कि बड़े स्तर पर सार्वजनिक हित को बचाने के लिए ही केंद्र सरकार ने आलोक वर्मा को अधिकाररहित करने का फैसला किया है।
जिस प्रकार से आलोक वर्मा सीबीआई निदेशक के रूप में काम कर रहे थे उससे साफ लग रहा था कि वह किसी न किसी रूप में कांग्रेस का ढाल बने हुए थे। क्रिश्चियन मिशेल के प्रत्यर्पण मामले को देखकर ही यह स्पष्ट हो जाता है। जब तक आलोक वर्मा सीबीआई निदेशक के रूप में कार्यरत थे तब तक मिशेल के प्रत्यर्पण में कोई न कोई अड़चन लगी ही रही। इससे साफ हो जाता है कि वह कांग्रेस और गांधी परिवार को बचा रहे थे। लेकिन जैसे ही उन्हें बलात छुट्टी पर भेजा गया और अंतरिम सीबीआई निदेशक के रूप में एम नागेश्वर को दायित्व मिला मिशेल के प्रत्यर्पण का रास्ता ही साफ नहीं हुआ बल्कि उसे प्रत्यर्पित कर भारत लाया भी जा चुका है।
आलोक वर्मा अंतिम समय तक मिशेल को बचाने में जुटे रहे। उनके जाने के बाद मिशेल के प्रत्यर्पण का जिम्मा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने संभाल लिया। तब उन्होंने सीबीआई में तैनात अपने अधिकारी मनीष कुमरा सिन्हा को आगे कर डोवाल पर कई आरोप लगवाए, ताकि मिशेल का प्रत्यर्पण न हो पाए। जब तक उनके पास अधिकार था तब तक वह मिशेल के प्रत्यर्पण फाइल पर कुंडली मारकर बैठे रहे। लेकिन जैसे ही एम नागेश्वर को अंतरिम निदेशक का दायित्व मिला उन्होंने मिशेल का प्रत्यर्पण कर दुबई से भारत लाने में सफल हो गए। इससे साफ हो जाता है कि आलोक वर्मा कांग्रेस और गांधी परिवार की हिफाजत कर रहे थे।
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