संदीप देव –
हम बचपन के तीन मित्र एक साथ अरसे बाद मिले। 1989-1994 के बीच अर्थात 8वीं से 12 वीं कक्षा तक मेरी पढ़ाई राजस्थान के उदयपुर स्थित विद्याभवन स्कूल में हुई। उस दौर में विद्याभवन देश के प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक था। भारत सरकार द्वारा आयोजित छात्रवृत्ति परीक्षा मैंने पास की थी, जिसके बाद सरकार ने हमें यहां पढ़ने भेजा था। आज की स्थिति में सवर्ण छात्रों की सारी पढ़ाई सरकार कराए, सोचना भी मुश्किल लगता है! है न?
हम सब घर से इतनी दूर थे। वहां हमारी मित्रता राजस्थान के छात्रों से हुई, जिसने हमारे लिए संबल का काम किया। आज क्षेत्रवाद की कुत्सित राजनीति सभी ओर देखने को मिलती है, लेकिन उस समय ऐसा कोई माहौल नहीं था। हमारा निर्दोष बचपन इन सभी झंझटों से दूर था।
मेरे सबसे प्रिय मित्रों में राजस्थान के ही बलवंत सिंह देवड़ा और वीरेंद्र सिंह खींची थे। मेरे क्या, ये दोनों सभी के प्रिय मित्र थे। बलवंत सिंह ऊर्फ बलसा, असल में हम सभी के नेता था और वीरेंद्र सिंह ऊर्फ वीरू बना हम सभी के कमांडर थे! बलसा बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ी थे। कॉर्नर से दागा उनका गोल मजाल कि कोई गोलकीपर रोक ले। हाफ से मारा उनका शॉट सीधे गोल में जाता था। उनके कारण हमारा स्कूल स्टेट खेलता था। बलसा स्टेट के खिलाड़ी बन कर उभरे।
बलसा सिरोही के हैं और वीरू बना उदयपुर के ही। हम लोगों ने जो स्कूल जीवन जीया है, आज के विद्यार्थी सोच भी नहीं सकते। एक घटना सुनता हूं। 12 वीं बोर्ड की परीक्षा थी। बिहार के ही हमारे एक साथी कृष्णकांत झा को वहां के एक लोकल डॉन ने मारा था। उसके बाद बलसा और वीरू बना के नेतृत्व में हम सब ने उस डॉन के इलाके में घुस कर उसे मारा था। उसके बाद उसके गुंडे हमारे हॉस्टल पर चढ़ाई करने आ रहे थे।
हमें याद है बलसा ने मुझे पेट्रोल लाने भेजा था। हमने पेट्रोल बम बनाया, हथियारों को जमा किया और रात भर हॉस्टल की पहरेदारी में हम सब लगे रहे ताकि पढ़ने वाले विद्यार्थियों को किसी मुसीबत का सामना न करना पड़े। लोकल डॉन एंड गैंग को हमारी तैयारी का पता चल गया कि यदि आज हमला किया तो नहीं बचेंगे। इसलिए उन्होंने उस रात हमला नहीं किया।
सुबह बोर्ड की परीक्षा देनी थी। पहला पेपर ही अंग्रेजी का था। हम सभी की अंग्रेजी बस कामचलाऊ थी। हम हिंदी मीडियम में पढ़ने वालों को अंग्रेजी बहुत डराती थी। मैंने तो अंग्रेजी पहली बार पढ़ा ही 8 वीं में। अंग्रेज़ी के कारण मेरा पढ़ाई से ही मोहभंग हो गया था, जो 12 वीं तक बना रहा। BHU में जब समाजशास्त्र से ऑनर्स करने पहुंचा तब जाकर पढ़ाई में पुनः रुचि जगी। उसके बाद MBA करने गया। वहां सबकुछ अंग्रेजी में। बीच में ही पढ़ाई छोड़कर भाग आया।
खैर, स्कूल की कहानी पर लौटते हैं। 12 वीं बोर्ड का सेंटर दूसरे स्कूल में पड़ा था। हम सब को बस से जाना था। बस में हॉकी, बैट, तलवार, चाकू, सरिया भरकर हम परीक्षा सेंटर पहुंचे थे। क्या पता लोकल डॉन के गुंडे बीच में हमला कर दें? परीक्षा से निकल कर हमें कलेक्टेरिएट पर धरना भी देना था, विद्यार्थियों के प्रोटेक्शन की मांग करते हुए।
परीक्षा का पेपर जब सामने आया तो हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था। वीरू बना ने पेपर छोड़ने को कहा, बलसा ने कहा जो आता है वो लिख लो सब। हम सभी १२ वीं में अंग्रेजी पेपर में ग्रेस से पास हुए। 7 नं का ग्रेस मुझे मिला था। बाद में BHU और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इंट्रेंस में मेरा हो गया था, लेकिन डर था कि 12 वीं में ही अंग्रेजी में फेल कर जाऊंगा। जब ग्रेस से पास हुआ तो जान में जान आई! 😛
बाद में बलसा, वीरू एवं अन्य साथियों पर FIR हुआ। मेरा निक नेम स्थानीय रूप से ‘झाम’ रखा था मेरे साथियों ने, इसलिए FIR में मेरा असली नाम नहीं आया। मैं बच गया।
पास होने के बाद मैं BHU चला गया, वीरू बना उदयपुर के सुखाडिया विश्वविद्यालय में पढ़े और वहां छात्र नेता के रूप में उभरे। ABVP से वह विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने। आज वो भाजपा के बड़े नेता हैं। बलसा बाद में शिक्षक हो गये। हम सबकी दुनिया अलग-अलग हो गई।
बलसा तीन-चार दिन पहले पहली बार दिल्ली आए थे, अपने बेटे के एडमिसन के सिलसिले में। 30 साल बाद हम मिले। हृदय गदगद हो गया। वीरू बना से मेरा संपर्क हमेशा बना रहा। मैं उदयपुर जब भी जाता हूं, भाभी सा और बच्चों से मिलना होता है। उनके घर पर जाना होता है। वीरू बना जब यहां आए तो वो मेरे नये घर भी आए।
बचपन की यह मित्रता बाद के दिनों की हर मित्रता पर भारी है। नयी दिल्ली पुलिस में एडिशनल DCP रविकांत हम तीनों से तीन साल जूनियर हैं। हम तीनों की मेहमाननवाजी उन्होंने की, जहां बचपन की एक-एक कहानी याद आती गई और चर्चा चलती रही। अरसे बाद हमने बचपन को पुनः जीया।
विद्याभवन के वो दिन बाद के जीवन में कभी नहीं आया, और न बाद के जीवन में ऐसे मित्र ही मिले। धन्यवाद बलसा और वीरू बचपन के दिनों में पुनः ले जाने के लिए।
#SandeepDeo