हाँग कांग में हाल ही मे संपन्न हुए चुनावों के परिणाम आ चुके हैं और ये परिणाम इस बात को और भी अधिक रेखांकित कर रहे हैं कि हाँग कांग वासी अब प्रजातंत्र की मांग कर रहे हैं. हाँग कांग में जून से एक ज़बर्दस्त जन आंदोलन छिड़ा हुआ है जो कि चीन से स्वतंत्रता की मांग कर रहा है. और पिछले कुछ हफ्तों में पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच हुई मुठभेड़ के चलते किस प्रकास इस आंदोलन ने एक बहुत ही हिंसकऔर विध्वंसक रूप धारण कर लिया. अभी हाल ही में जो स्थानीय चुनाव हुए, उसमे हाँग कांग वासियों ने जमकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया. 70 प्रतिशत से भी ज़्यादा हाँग कांग वासी वोट डालने के लिये अपने घरों से बाहर निकले , यानि 70 प्रतिशत से भी अधिक हाँग कांग वासियों ने मतदान में हिस्सा लिया.और इनमें से एक बड़ा तबका उन युवा मतदाताओं का था जो कि पहली बार अपने वोट डालने के अधिकार का प्रयोग करते थे.
हाँग कांग चुनावी नतीजों से चीनी सरकार आई दुविधा में
हाँग कांग चुनाव के जो नतीजे निकले, उन्होने चीनी सरकार को हिला कर रख दिया. एक बहुत ही बड़ी मार्जेन से प्रजातंत्र का समर्थक खेमा यानि प्रो डेमोक्रेसी उम्मीदवार चुनाव जीते. हाँग में कुल मिलाकर स्थानीय शासन के लिये 18 काउंसिल हैं जिनमे से 17 काउंसिल प्रो डेमोक्रसी उम्मीदवारों के हे शासन में रह्रेगी चुनाव के बाद. तो चुनाव में हिस्सा लेने वाले वे उम्मेदवार जो चीन के समर्थक हैं, बुरी तरह से हार गये हैं. हाँग कांग की राजनीति 2 खेमों में बंटी है – एक तरफ प्रजातंत्र आ समर्थक खेमा है तो दूसरी तरफ चीन के शासन का समर्थक खेमा है जो एक तरह से चीनी सरकार के ही लोग हैं. हाँग कांग वासी अपना प्रमुख यानि जो कि हाँग कांग का चांसलर है, उसे खुद नहीं चुनते, उन्हे ये अधिकार नहीं है, वो सिर्फ इन स्थानीय चुनावों में वोट डालते हैं और फिर जो लोग इन चुनावों से जीत के आते है, कानुसलर के चुनाव मे उनकी भी अहम भूमिका होती है. तो हालांकि ये स्थानीय चुनाव हैं, इनका राजनीतिक तौर पर इतना महत्व नहीं है. लेकिन फिर भी इस तादाद में लोग वोट डालने आये ये प्रजातंत्र के प्रति उनके अटूट विश्वास को जगाता है और इस बात की भी संभावना ब्बनती है कि आगे चलकर होने वाले चांसलर के चुनावों में प्रजातंत्र के समत्र्थक व्यक्ति के जीतने की संभावना बन सकती है.
पूरा विश्व चीन द्वारा मानवाधिकार उल्लंखन के बारे में रहा खुलकर बोल, ऐसे में भारत सरकार को भी लेना चाहिये चीन के विरुद्ध पक्ष
चुनावों के नत्तीजों ने चीनी खेमें में हड़्कम्प मचा दिया है. उसे हाँग कांग पर से अपनी पकड़ फिसलती सी नज़र आ रही है. और एक सब ऐसे समय पर हो रहा है जब चारों तरफ से उसे मुंह की खानी पड़ रही है. जम्मू कश्मीर पर से धारा 370 हटने के मुद्दे को लेकर जबकि उसने पूरे विश्व में भारत की छवि बिगाड़ने की कोशिश की लेकिन उसकी किसी ने न सुनी. अब तो दिन ब दिन जम्मू कश्मीर में हालात सामान्य होते जा रहे हैं और देश के तथाकथित वामपंथी मीडिया से भी खास कुछ कहते नहीं बन रहा. हाँग कांग मसले में अपने रवैय्ये को लेकर चीन को पूरी विश्व मीडिया की आलोचना झेलनी पड- रही है और ऐसे में चुनाव के नतीजे चीन दारा फैलाई गयी इस प्रपोगैंडा थ्योरी को भी बुरी तरह से ध्वस्त करते हैं कि हाँग कांग में जो कुछ भी जन आंदोलन चल रहा है, वो मात्र अमरीका द्वारा उकसाया प्रोपोगैंडा था. यदि ये प्रोप्गैंडा होता तो चुनावों में भी तोड़ फोड़ मचती और कोई भी वोट करने नहीं आता. जबकि इसके उलट इतनी बड़ी संख्या में लोग वोटिंग के लियेआये को कि इस बात का प्रमाण है कि हाँग कांग वासियों का भरपूर समर्थन है वहां के आंदोलनकारियों को और ये आंदोलन सीधा लोगों के जन सरोकारों से जुड़ा है, किन्ही पश्चिमी ताकतों के दबाव में आकर नही छेड़ा गया.
चीन की सारी सच्चाइयां धीरे धीरे कर विश्व के सामने आ रही हैं. उईगर मुसलमानों पर वहां के कैप्स में जो यातनायें ढाई जाती हैं, उसका भी कच्चा चिट्ठा पूरे विश्व के सामने आ रहा है. हाल ही मे चीनी सरकार का कोई द्स्तावेज़ लीक हुआ है जिससे इन यातना शिविरों में जो उईगर म्सलमानों के साथ चीन पशुओं से भी बदतर आचरण करता है, वो सच्चाई सब के सामने आ गयी है. और जैसा कि हमने पहले भी कहा था कि अब भारत सरकार को हाँग कांग मसले को लेकर् चुप नहीं बैठना चाहिये और इस पर एक सार्वजनिक तौर पर पक्ष लेना चाहिये.