
भारत में गहरी जम चुकी ईसाई चेरिटेबल संस्थाओं की जड़ें हिला दी हैं राष्ट्रवाद की आंधी ने!
अनुज अग्रवाल। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और चर्च के कॉकटेल ने पिछली तीन शताब्दियों से भारत सहित दुनिया के सभी विकासशील देशों को जकड़ रखा है। MNCs के CSR फण्ड पर कूदता उछलता वेटिकन का ईसाई माफिया यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में तो ईसाई संप्रदाय को बचा नही पा रहा, हां अपने अस्तित्व को बचाने के लिए तथाकथित ईसाई बाज़ारु शक्तियॉ की कठपुतली जरूर बन गया। दुनिया के गैर ईसाई देशो में अपने उत्पादों का बाज़ार खड़ा करने के लिए इसाई देशों की कंपनियो ने पादरियों और पैसों को हथियार बना रखा है और प्रकृति केंद्रित जीवन जी रहे शेष विश्व के लोगो को धीरे धीरे बाज़ार की जद में ला खड़ा किया है। बाज़ारवाद और अंतर्राष्ट्रीय वाद से त्रस्त विश्व की जनता ने अब विद्रोह सा कर दिया है और राष्ट्रवाद की और लौट रही है। अपनी संस्कृति, जड़ो और सभ्यता से फिर से जुड़ने की ललक अब तमाम दुनिया के देशों में जग रही है और यह एक तरह से अति कृत्रिम होते जीवन और बुरी तरह लूटते बाज़ार के कारण फैले अकेलेपन और असुरक्षा की भावना के साथ ही बेरोजगारी, मशीनी जीवन एवं ‘पहचान के संकट’ से गुजरने की नयी पीढ़ी की घुटन भी है।
अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारू शक्तियॉ अपने CSR फंड को ईसाईयत के माध्यम से तीन तरीको से उपयोग में लाती हैं। भारत में चर्च, मिशनरी स्कूल और विदेशी फंडेड एनजीओ ये तीन एजेंसी अंदर से एक साथ मिलकर काम करती हें। देश के प्रत्येक जिले में चर्च, चर्च की जमीनों पर मिशनरी स्कूल और एनजीओ के कार्यालय और प्रशिक्षण केंद्र हें। देश के 800 से अधिक जिलों में यह नेटवर्क अंग्रेजी राज में ही आजादी के पहले से ही खड़ा किया जा चूका है। आज की तारीख में चर्चो को 10 से 12 हज़ार करोड़ प्रतिबर्ष और उनसे जुड़ी एनजीओ को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष(हवाला से) 70 से 80 हज़ार करोड़ रुपयों तक की सहायता आती रही है। देश के चर्च हर साल इसी अनुदान से सेकड़ो एकड़ जमीनें खरीद देश में निजी भूमि के सबसे बड़े मालिक बन गए हैं। इनके स्कूलों में पढ़े देश के समृद्ध तबके के बच्चे काले अंग्रेज बन चुके हैं। यानि शरीर से भारतीय और दिमाग से ईसाईयत और बाज़ारू ताकतों के गुलाम और अपनी संस्कृति से घृणा या उसकी उपेक्षा करने वाले और ब्रेन वाशिंग का यह खेल अनवरत चालू है। इन स्कूलों का मुख्य कार्यालय आइजोल, मिजोरम में है और चर्च और मिशनरी स्कूलों के खेल ने पूरे उत्तर पूर्व को तीव्र ईसाईकरण, पश्चात्यकरण और देशद्रोही गतिविधियों का शिकार बना रखा है।
देश में नक्सली आंदोलन और लगभग 750 देश विरोधी आंदोलनों को यह सिण्डिकेट NGO और CSR फण्ड के माध्यम से सहयोग एवं समर्थन देता है। यूपीए के कार्यकाल में सोनिया गांधी की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रिय सलाहकार परिषद के बहुत सारे सदस्य इसी सिंडिकेट का हिस्सा थे और इस कारण देश में ईसाईकरण बहुत तेजी से फैला और राष्ट्रविरोधी आंदोलन भी। अन्ना- केजरीवाल आंदोलन को भी इसी गिरोह का सहयोग एवं समर्थन था जिसके विरोध में राष्ट्रवादी शक्तियां एकजुट होकर भाजपा और नरेंद्र मोदी के समर्थन में आ गयी और देश में बड़ा सत्ता परिवर्तन संभव हुआ। मोदी सरकार अब चर्च, मिशनरी स्कूल और विदेशी अनुदान पर पल रही एनजीओ के खिलाफ कमर कस रही है और लगभग 12 से 15 हज़ार ऐसी एनजीओ पर प्रतिबंध लगा चुकी है जिन्होंने विदेशी पैसों का देश के विरुद्ध इस्तेमाल किया था। किंतू अभी इससे कई गुना किया जाना है। देश का अंग्रेजी मीडिया, अनेक देशी एनजीओ, बुद्विजीवियों का एक वर्ग, वनवासी, दलित और पिछड़ो के अधिकारों के नाम पर खड़े किये गए आंदोलन और अनेक राजनितिक दल सभी चर्च और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इस खेल का हिस्सा हें और वित्तपोषित भी। इतिहास सहित देश के अनेक बिषयों का पाठ्यक्रम ही गलत और झूठ के आधार पर लिखा हुआ है जिसे हटाने और जनता को सच से अवगत कराने की आवश्यकता है। लंबे संघर्ष और गहन तैयारियों से ही भारतीयों के खोये स्वाभिमान को जगाया जा सकता है और तभी मौलिक भारत का निर्माण संभव है।
साभार : अनुज अग्रवाल, संपादक, डायलॉग इंडिया
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