25 दिसंबर को महामना मदन मोहन मालवीय, अटल बिहारी वाजपेयीज के जन्मदिन और क्रिसमस के अलावा एक और दिवस मनाया जाता है, क्या आप जानते हैं कि वो क्या दिन है? आज ‘मनुस्मृति दहन’ दिवस के नाम पर कई जगह आयोजन होता है। बाबा सहब भीमराव आंबेडकर ने 25 दिसं 1927 को मनुस्मृति को जलाया था और कहा था- “Let’s destroy the authority of ancient Hindu scriptures that are borne in inequality. Religion and slavery are not compatible.”
मेरे मन में यह सवाल उठता है कि आखिर क्रिसमस के दिन ही उन्होंने मनुस्मृति को जलाने की क्यों सोचा? क्या तब कहीं उनके मन में क्रिश्चनिटि में धर्मांतरण का विचार तो नहीं आया था? हालांकि बाद में क्रिश्चनिटी और इस्लाम के ऑफर को ठुकराते हुए भारत की समस्या भारतीयता से सुलझाने की बात कहते हुए बौद्ध धर्म को स्वीकार किया था!
उसी दशक में अंबेडकर और गांधी के बीच टकराव शुरू हुआ था। सही मानिए, यदि गांधी नहीं होते तो अंबेडकर हिन्दू समाज को तोड़ चुके होते। जिन्ना जैसे मुसलमानों को भारत से अलग मानते थे, वैसे ही आंबेडकर भी दलितों को अलग करने की बात कर रहे थे। गांधी के आमरण अनशन ने हिंदू समाज को बचा लिया! मेरा सवाल फिर से वही है, क्या अंबेडकर अंग्रेजों के हाथों में खेल रहे थे? क्रिसमस के दिन मनुस्मृति दहन दिवस महज संयोग तो हो नहीं सकता? बड़े नेता हमेशा प्रतीकों के जरिए बात करते हैं! आंबेडकर आखिर इस प्रतीक के जरिए क्या कहना चाहते थे?