मलाला यूसुफजई को पश्चिमी मीडिया हीरो मानता है लेकिन उसके खुद के मुल्क में वह एक गद्दार कही जाती है। पाकिस्तान के स्थानीय लोगों में ये बात बहुत चर्चा में रहती है कि मलाला पर किया गया तालिबानी हमला सुनियोजित था। ये हमला अमेरिकन एजेंसी सीआईए ने करवाया था।
९ अक्टूबर २०१२ को स्वात घाटी में एक स्कूल बस को रोककर तालिबानियों ने मलाला को दो गोलियां मारी। एक गोली उसके सिर में लगी और एक गर्दन में। मलाला को पेशावर के आर्मी अस्पताल ले जाया गया था। वहां से उसे दुबई शिफ्ट किया गया।
सिर और गर्दन में गोली लगना वैसे भी मौत की गारंटी होती है। मलाला का बच जाना आश्चर्यजनक था। पाकिस्तान जैसे घटिया मुल्क में मलाला को फौरन मेडिकल सुविधा मिलना और तुरन्त दुबई शिफ्ट किया जाना संदेहास्पद रहा। कभी खुलासा नहीं किया गया कि मलाला को गोली कितने बजे मारी गई और कितनी देर में उसे डॉक्टरी इलाज मिला था। कहा जाता है कि ऐसा कोई हमला कभी हुआ ही नहीं था।
इसके बाद गरीब मलाला इंग्लैंड शिफ्ट हो जाती है। मलाला का पिता बहुत गरीब था लेकिन २००९ के बाद वह प्राइवेट स्कूलों की चेन शुरू कर देता है, कैसे? मलाला को प्रोजेक्ट करने का काम २००७ से ही शुरू कर दिया गया था। बीबीसी उर्दू पर उसके ब्लॉग आने लगे थे, जिनमे वह पाकिस्तानी बच्चों की शिक्षा की बात करती थी।
जैसे ही अफगानिस्तान में तालिबान खत्म हुआ, मलाला के मुताबिक वहां अच्छे दिन आ गए थे लेकिन यही मलाला अपने मुल्क में अल्पसंख्यकों बच्चियों पर अत्याचार पर चुप रहती और अपने मुल्क की आतंकी गतिविधियां उसे दिखाई नहीं देती थी।
डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ बोलने वाली मलाला उस समूह का खिलौना है, जो कभी अमेरिका और भारत मे सत्ता पर काबिज हुआ करता था। जैसे भारत मे शहला रशीद, कन्हैया और एनडीटीवी है, वैसे ही मलाला पाकिस्तान में भूमिका निभाती है इसलिए ही उसे अपने मुल्क का गद्दार माना जाता है।