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India Speak Daily > Blog > समाचार > संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही > न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम को क्यों बरकार रखना चाहते हैं न्यायाधीश ?
संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही

न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम को क्यों बरकार रखना चाहते हैं न्यायाधीश ?

Ashwini Upadhyay
Last updated: 2021/04/09 at 12:46 PM
By Ashwini Upadhyay 847 Views 10 Min Read
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10 Min Read
India Speaks Daily - ISD News
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जब आम भारतीय़ चारो तरफ से हताश होता है तो उसे भारत की सबसे बड़ी अदालत से ही आखिरी उम्मीद होती है। आंखों पर पट्टी बांधे न्याय की देवी को देखकर ही तो उम्मीद जगता है कि यहां न्याय मिलेगा, सब कुछ निश्पक्ष होगा। लेकिन देश की आम जनमानस ने जब आजाद भारत में पहली बार अपने मुख्य न्यायधीश को रोते देखा हुए देखा तो सोशल मीडिया के दौर में यह आंसू वायरल हो गया। मीलॉड कुछ भी हो आम भारतीय को तो यही लगता है कि काश ये भावनात्मक आंसू होते। काश , भारत के प्रधान न्यायाधीश के ये आंसू , भाई भतीजावाद के कारण न्यायपालिक के गिरते साख और लोगों को इंसाफ मिलने में जीवन खपा देने के दर्द को समझने वाले होते। लेकिन ये आपकी जिद् के आंसू थे मीलॉड ! भारत के प्रधान न्यायाधीश, न्यायपालिका के दुर्गंध को नजअंदाज कर राजनीति का रोना रोए

यह भारतीय न्यायपालिका के लिए अशुभ संकेत है मीलॉड। आपकी जिद्द है कि आप ने जिन 75 जजों के नाम की सिफारिस केंद्र सरकार के पास भेजी है उस पर मुहर क्यों नहीं लगाई गई है? सुप्रीम कोर्ट और देश के हाईकोर्ट मे ही नहीं स्कूलों में शिक्षक से लेकर तमाम सरकारी विभागों में देख लीजिए लगभग एक तिहाई पद दशकों से खाली हैं। रोना तो उस पर भी आता है। यह सब कैसे चलेगा? लेकिन आपका रोना सिर्फ न्यायपालिका में आपके मुताबिक जजों की नियुक्ति को लेकर रोने को है। अपने मुख्य न्यायाधीश को इस कदर हताश और कमजोर देख कर इंसाफ की देवी पर हमारा भरोसा डिगता है मिलॉड।

दशकों से कॉलिजियम सिस्टम से आप देश भर के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकीलों और जजों की नियुक्ति हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज के रुप में करते आए हैं। देश की जनता को यह जानना चाहिए की कॉलेजिमय सिस्टम वह है जिसमें भारत के मुख्य न्यायधीश समेत पांच वरिष्ठतम न्यायाधीश जिस वकील के उपर हाथ रख देते हैं वो हाईकोर्ट का जज बन जाता है। जिस सिनियर वकील या हाइकोर्ट के जज को चुन लेते हैं उसकी सिफारिस केंद्र सरकार के पास भेज दी जाती है सरकार की सहमती के बाद वो सुप्रीम कोर्ट का जज बन जाता है। शिकायत रही है कि इस सिस्टम में कई बार कॉलेजियम के जज, सत्ता पक्ष के वफादार वकील को मेवा देकर रिटायरमेंट के बाद अपने लिए आयोग के अध्यक्ष का पद सुरक्षित करते रहे हैं। अतित के सरकारी पन्नों को खंघाल कर इसे समझा जा सकता है।

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* न्यायाधीश बना खानदानी पेशा, भाई-भतीजावाद की भेंट चढ़ा इलाहाबाद हाईकोर्ट!
* क्या सुप्रीम कोर्ट से भी कुछ सड़ने की बू आ रही है मी-लॉड!
* मुख्य न्यायाधीश टी.एस ठाकुर के पिता डीडी ठाकुर इंदिरा-शेख समझौते के तहत जज के पद से इस्तीफा देकर बने थे जम्मू-कश्मीर में मंत्री!
* मी लार्ड यह बात कुछ हज़म नहीं हुई !

ये कॉलेजिम सिस्टम ही है जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट के जजों के रिश्तेदारों को हम न सिर्फ अलग अलग हाइकोर्ट में जज के रुप में देखते हैं बल्कि प्रभावशाली वकील के रुप में भी वही होते है। इसी से दुखी होकर नवंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में भाई भतीजेवाद से दुखी होकर कहा था कि इलाहाबाद हाइकोर्ट में कुछ सड़ रहा है। इलाहाबाद हाइकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर आपत्ति थी। हाइकोर्ट याचिकाकर्ता बन कर सुप्रीम कोर्ट आ गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी नहीं हटाई। यह साबित करता है कि देश की अदालतों में किस प्रकार भाई भतीजाबाद है। न सिर्फ जजों को लेकर बल्कि आम धारणा ही नहीं, इसके मजबूत साक्ष्य हैं कि हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के नजदीकी रिश्तेदार जैसे पत्नी बेटा बेटी या भतीजा उसी कोर्ट में वकील होते हैं और इस तरह कई मामले प्रभावित होते हैं। अक्सर ऐसी शिकायतें वकील करते रहे हैं।

सालों से कॉलेजियम सिस्टम की इन्ही कमजोरी के कारण न सिर्फ न्यायपालिका की साख कमजोर हुई है बल्कि सत्ता के साथ न्यायपालिका का गठजोर भी उजागर हुआ है। क्योंकि ऐसा माना जाता रहा है कि दस में पांच जज देश के कानून मंत्री के सिफारिस के होते हैं जिसे कॉलेजियम आसानी से मान लेता है भविष्य के अपने रोजगार को ध्यान में रख कर। मीलॉड ये हालात तो न्याय की देवी को लेकर संदेह पैदा करता है। उसकी साख को प्रभावित करता है। क्या कभी किसी न्यायाधीश के आसूं इस बदहाली पर निकले हैं ? हमें तो याद नहीं आता आपको आता है क्या ?

मीलॉड ! आपने सरकार के बनाए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को असंवैधानिक बता कर खारिज कर दिया। आपकी दलील है कि यह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार में राजनीतिक दखलअंदाजी है। देश को तो यह भी जानना चाहिए कि इस न्यायिक नियुक्ति आयोग में भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ दो अन्य वरीष्ठ न्यायाधीश देश के कानून मंत्री समेत दो जानी मानी हस्ती की भूमिका होगी। दो जानी मानी हस्ति के चयन में भी आपके ( सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश) साथ भारत के प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता की भूमिका होनी है। खास यह है कि नियुक्ति आयोग के कोई दो सदस्य यदि किसी उम्मीदवार का विरोध कर दे तो जज के रुप में उसका चनय नहीं हो सकता। क्या देश के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के चयन के लिए इतनी पारदर्शिता नहीं होनी चाहिए? क्या यहां कहीं भी सुप्रीम कोर्ट के अधिकार का हनन हो रहा है। पांच के बदले आपके तीन जज साथ हैं। लोकतंत्र, जन प्रतिनिधि से चलता है, सिर्फ सरकार से नहीं। इस आयोग में सिर्फ सरकार नहीं विपक्ष का भी भरोसा है। क्या कहीं से भी यह सिस्टम आपके कॉलेजियम सिस्टम से कमजोर है? ऐसे समय में जब कि कॉलेजिम सिस्टम की साख कमजोर हुई है, खुद सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में माना है कि न्यायिक सिस्टम में कहीं कुछ सड़ रहा है तो फिर इस सड़न की सफाई क्यो न हो मीलॉड ताकि लोगों का भरोसा इस न्याय की देवी पर बरकरार रहे। डर लगता है कॉलेजियम की यह जिद्द कहीं आम लोगों का इंसाफ के मंदीर से भरोसा न डिगा दे मीलॉड!

मीलॉड ! अभी, बहुत कुछ नहीं बिगड़ा। या यूं कहे ही भारत के आम जन को यह नहीं दिख रहा है कि न्यायपालिका में भाई भतीजाबाद के कारण सड़ाध किस कदर है। ये न्याय की देवी तो बस भरोसा पर ही तो टीकी है मीलॉड। अब देखिए न विधायिका और कार्यपालिका पर चर्चा तो होती है न्यायपालिका पर नहीं। क्योंकि हमारा अब भी भरोसा उस आंख मूदे न्याय की देवी की ईमानदारी पर है। लेकिन देखिए न शिकायत आ रही है कि जिन75 जज के नाम कॉलेजिमय ने भेजे उसमें 70 से ज्यादा की रिश्तेदारी न्यायपालिका में है। क्या कॉलेजियम ऐसे चले की मैं तेरे रिश्तेदार का भला मैं करुं तूं मेरे? शिकायत तो यह भी है मीलॉड की इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कीलिन मुख्य न्यायधीश जो अभी सुप्रीम कोर्ट में हैं उनने जजों के लिए जिन 50 वकीलों के नामों की सिफारिश की उसमें भी ज्यादातर के रिश्तेदार जज हैं। क्या कॉलेजियम का यह सिस्टम न्यायपालिका की साख को कायम रख पायेगा मीलॉड? न्याय में देरी को लेकर भारत के प्रधान न्यायधीश के आंसू दिखाता है कि वो कितना संवेदनशील है लेकिन ये आंसू न्यायिक सिस्टम के बदहाली और स़ड़ांध के लिए होते तो अच्छा लगता मीलॉड। भारत के प्रधान न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के पास असीम शक्ति है मीलॉड, यह तो हमे किताबों में पढाया जाता है। उस असीम शक्ति का प्रयोग कर न्यायपालिका की सड़ाध को खत्म कर इसे पारदर्शी और भरोसेमंद बनाइए न मीलॉड.

नोट- इस लेख में वर्णित विचार लेखक के हैं। इससे India Speaks Daily का सहमत होना जरूरी नहीं है।

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TAGGED: Collegium system, corruption in judiciary, judge appointment, Judiciary of India, nepotism in indian judiciary, Supreme Court
Ashwini Upadhyay August 21, 2016
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Ashwini Upadhyay
Posted by Ashwini Upadhyay
Ashwini Upadhyay is a leading advocate in Supreme Court of India. He is also a Spokesperson for BJP, Delhi unit.
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