अर्चना कुमारी । लोकतंत्र की जननी जन्मस्थली बिहार में बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों का बोलबाला है। बिहार के सीमावर्ती 4 जिले में हिंदू लगातार अपना घर बार छोड़कर पलायन कर रहे हैं और किशनगंज में तो हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं ।
सीमांचल कहलाने वाले बिहार के इन जिलों में बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं के कारण बड़े पैमाने पर जनसांख्यिकीय बदलाव हुए हैं, जिनके कारण इन इलाकों में हिंदू अल्पसंख्यक होते चले जा रहे हैं। कहना ना होगा कुछ दिनों में भी बिहार केरल ना हो जाए क्योंकि प्रदेश में जो भी सरकार है ,वह मुस्लिम तुष्टिकरण में विश्वास करती रही है और कल तक भाजपा भी इसमें शामिल रही थी। बिहार के 4 जिलों में ,जहां हिंदुओं की हालत बद से बदतर होती चली गई, उनमें बांग्लादेश और नेपाल की सीमा से सटे बिहार के किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया शामिल है ,जिन्हें कालांतर से सीमांचल के नाम से जाना जाता है। यहाँ हिंदुओं की आबादी तेजी से कम हुई है।
किशनगंज में तो हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो दावा किया गया है कि 1951 से 2011 तक देश की कुल आबादी में मुस्लिमों की साझेदारी चार प्रतिशत बढ़ी है। इसी अवधि में सीमांचल में यह आँकड़ा लगभग 16 प्रतिशत तक हो चुकी है। इन जिलों में बंगाल के रास्ते बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं के आकर बसने का सिलसिला जारी है और केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार की चुप्पी इसमें शामिल है।
बिहार के सीमांचल जिसमें 4 जिले हैं और यहां पर मुस्लिमों की आबादी तेजी से बढ़ी है। इस कारण हिंदुओं की आबादी का प्रतिशत घटा और कुछ तो पलायन कर गए लेकिन बाकी आबादी मुसलमानों के खौफ के नीचे रहने को मजबूर है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, किशनगंज में मुस्लिमों की जनसंख्या 67.58 प्रतिशत हो गई है। यहाँ हिंदू अब सिर्फ 31.43 प्रतिशत बचे हैं।कटिहार में मुस्लिमों की आबादी 44.47 प्रतिशत, अररिया में 42.95 प्रतिशत और पूर्णिया में 38.46 प्रतिशत हो चुकी है। यहां रहने वाले हिंदू विकट परिस्थितियों से जूझ रहे हैं और उन्हें अपना घर बार बेचकर पलायन करना पड़ रहा है और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है।
कहा जाता है कि इलाके में पहले से यहां पर रह रहे मुस्लिम अपनी जनसंख्या बढ़ाने के लिए ना सिर्फ बांग्लादेशियों को बसाने में मदद करते हैं, बल्कि उनके लिए दस्तावेज आदि का भी प्रबंध करते हैं। वहीं, हर मुस्लिम अधिक से अधिक बच्चे पैदा कर मुस्लिम दबदबा बढ़ाने में जोर-शोर से जुटे हैं । इन पर जनसंख्या कम करने का कोई जवाब नहीं है और वह इलाके में लगातार अपनी संख्या बढ़ाने में लगे हुए हैं। बताया जाता है कि यहां पर एक-एक मुस्लिम महिला के 14 तक बच्चे हैं। वहीं, सामान्य तौर पर सबसे कम बच्चे वाली मुस्लिम महिला के भी पाँच बच्चे होते हैं। सीमांचल के ये सारे जिले राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील बन गए हैं।
सुरक्षाकर्मी तो यहां मौजूद है लेकिन उनकी भी मुसलमानों की आगे नहीं चलती है। क्योंकि लगातार घुसपैठ होता दिख रहा है और साल 2017 में बांग्लादेश सीमा पर एक सुरंग का पता चला था। वह बांग्लादेश की ओर से 80 मीटर भूमि की खोदाई कर कंटीले बाड़ के नीचे से भारतीय सीमा में पहुँचाई गई थी। स्पष्ट है कि वह सुरंग घुसपैठ के लिए बनी थी। यहाँ घुसपैठ कराने से लेकर उनके जाली दस्तावेज बनवाने से लेकर उन्हें बसाने तक के लिए तस्करों का गिरोह काम करता है।
समय-समय पर ये तस्कर पकड़े भी जाते हैं, लेकिन उनके सिंडिकेट को तोड़ पाना आसान नहीं है। इनकी पैठ बांग्लादेश और नेपाल में बैठे मुस्लिमों तस्करों तक होती है और उनके साथ मिलकर ये ऑपरेट करते हैं। माना जा रहा है कि पैसे के लालच में प्रशासन का इन्हें सपोर्ट मिलता रहा है, जिसके चलते तस्करी का व्यापार यहां पर फलता फूलता रहा है। गौरतलब है कि बांग्लादेश और रोहिंग्या मुसलमान बंगाल में घुसते हैं और वहाँ से देश के अन्य हिस्सों में जाकर बस जाते हैं।
जहाँ-जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक होती है, वहाँ-वहाँ इन अवैध घुसपैठियों को प्रश्रय मिलता है। इसमें स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकारों का अप्रत्यक्ष तौर पर समर्थन मिलता है क्योंकि मुस्लिम आबादी बढ़ने से उनका एक बड़ा वोट बैंक तब्दील हो जाएगा लेकिन बाद में उनके देश में रहने वाले लोगों का क्या हाल होगा, इस बारे में उन्होंने अब तक सोचा नहीं है। यही कारण है कि बंगाल और बिहार केरल की तरह बढ़ रहा है, जहां पर मुसलमानों की संख्या हिंदुओं से अधिक होती चली गई। किशनगंज पहले कृष्णाकुंज के नाम से जाना जाता था और अब वह मुस्लिम गंज हो चुका है। बंगाल, नेपाल और बंगलादेश की सीमा से सटा किशनगंज पहले पूर्णिया जिले का अनुमंडल रहा है और इसे बिहार सरकार ने 14 जनवरी 1990 को इसे पूर्ण रूप से जिला घोषित किया गया।
सिर्फ एक अनुमंडल और सात प्रखंड वाले इस जिला को आर्थिक, साक्षरता सहित तमाम मामले में इसे पिछड़ा जिला माना जाता है। लेकिन बताया जाता है कि 32 साल पुराने इस जिला में मुस्लिम की आबादी अधिक है। यहां 68 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। किशनगंज जिले के पश्चिम में अररिया जिला, दक्षिण-पश्चिम में पूर्णिया जिला, पूर्व में पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिला, और उत्तर में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिला और नेपाल से घिरा हुआ है।
यह सोचने को मजबूर करता है कि बिहार के किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, अररिया समेत बांग्लादेश से सटे कुछ जिलों में जिस प्रकार से जनसंख्या का असंतुलन हो रहा है, उसे देखते हुए घुसपैठियों के खिलाफ जोरदार आंदोलन छेड़ा जाना चाहिए। क्योंकि इसके चलते इलाके में रोजगार का संकट उत्पन्न हो रहा है। जनगणना आंकड़े बताते हैं कि जनसंख्या के असंतुलन से सामाजिक असंतुलन बढ़ रहा है। इसे दूर करने के लिए हिंदुओं में जागरूकता लाने की तो बिल्कुल जरूरत है।