खिलाफत आन्दोलन की असफलता से चिढ़े मुसलमानों ने पूरे देश में दंगा करना शुरू कर दिया और जहाँ-जहाँ भी वो संख्या में अधिक थे अपना सारा गुस्सा हिन्दुओं पर निकालने लगे। देश में सांप्रदायिक दंगों की बाढ़ आ गई थी। उत्तर प्रदेश, बंगाल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के शहरों में (1/24)
दंगे भड़कने लगे। इनमें केरल के मालाबार क्षेत्र का मोपला कांड सबसे अधिक भयानक था। मालाबार में मोपलाओं ने हिन्दुओं पर जो जुल्म किए वे अत्यंत बर्बर और रोंगटे खड़े करने वाले थे जिन्हें पढ़कर हृदय दहल जाता है। वहाँ उनके सामने इस्लाम या मौत का विकल्प रखा गया। “सर्वेन्ट्स ऑफ (2/24)
इंडिया सोसायटी” के सर्वेक्षण के अनुसार 15000 से ज्यादा हिन्दुओं की हत्या की गई, बीस हजार को जबरन मुसलमान बनाया गया, सैकड़ों मंदिर तोड़े गए तथा तीन करोड़ से अधिक हिन्दुओं की संपत्ति लूट ली गई। (जबकि वास्तविक संख्या इससे कई गुना अधिक थी)। पूरे घटनाक्रम में महिलाओं को सबसे (3/24)
ज्यादा उत्पीड़ित होना पड़ा। यहां तक कि गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। मोपलाओं की वहशियत चरम पर थी। इस सम्बन्ध में 7 सितम्बर, 1921 में “टाइम्स आफ इंडिया” में जो खबर छपी वह इस प्रकार है, “विद्रोहियों ने सुन्दर हिन्दू महिलाओं को पकड़-पकड़ कर उनका बुरी तरह बलात्कार (4/24)
किया, जबरदस्ती मुसलमान बनाया और उन्हें अल्पकालिक पत्नी के रूप में इस्तेमाल किया।” मोपला दंगों के चश्मदीद गवाह रहे केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रथम अध्यक्ष और स्वतंत्रता सेनानी श्री माधवन नायर अपनी पुस्तक “मालाबार कलपन” में लिखते हैं कि “हिन्दुओं का सिर काट कर उन्हें (5/24)
थूर के कुओं में फेंक दिया गया था जिनसे वो लबालब भर गये थे। एक ओर मोपला मुस्लिम मौलानाओं द्वारा मस्जिदों में भड़काऊ भाषण दिए जा रहे थे और दूसरी और असहयोग आन्दोलनकारी हिन्दू जनता से यह अपील कर रहे थे की हिन्दू मुस्लिम एकता को पुष्ट करने के लिए खिलाफत वालों को पूर्ण सहयोग (6/24)
दिया जाए। गाँधी जो अपनी नीति के कारण इसके उत्तरदायी थे, मौन रहे। इतने बड़े ऐतिहासिक दंगो के बाद भी गांधी की अहिंसा की दोहरी नीति पर कोई फर्क नहीं पड़ा… और तो और मुसलमानों को खुश करने के लिए उन्होनें इतने बड़े दंगो के दोषी मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया।“ (7/24)
महान स्वाधीनता सेनानी भाई परमानन्द जी ने उस समय चेतावनी देते हुए कहा था, “गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुसलमानों को तुष्ट करने के लिए जिस बेशर्मी के साथ खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया तथा अब मोपला के खूंखार हत्यारों की प्रशंसा कर रहे हैं, यह घटक नीति आगे चलके इस्लामी उग्रवाद (8/24)
को पनपाने में सहायक सिद्ध होगी।” डा. एनी बेसेंट ने २९ नवम्बर १९२१ को दिल्ली में जारी अपने वक्तब्य में कहा था था, “असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन का भाग बनाकर गांधीजी तथा कुछ कांग्रेसी नेताओं ने मजहबी हिंसा को पनपने का अवसर दे दिया है।” डा. बाबा साहेब अम्बेडकर ने अपनी (9/24)
पुस्तक ‘भारत का विभाजन‘ के पृष्ठ १८७ पर गाँधी पर प्रहार करते हुए लिखा, “गाँधी जी हिंसा की प्रत्येक घटना की निंदा करने में कभी नहीं चूकते थे किन्तु गाँधी जी ने इन हत्याओं का कभी विरोध नहीं किया बल्कि उन्होंने चुप्पी साध ली। ऐसी मानसिकता का केवल एक ही विश्लेषण है कि गाँधीजी (10/24)
हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए व्यग्र थे और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हजारों हिन्दुओं की हत्या से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था।” (उसी पुस्तक के पृष्ठ १५७ पर) मालाबार और मुल्तान के बाद सितम्बर १९२४ में कोहाट में मजहबी उन्मादियों ने हिन्दुओं पर भीषण अत्याचार ढाए। कोहाट के (11/24)
इस दंगे में हिन्दुओं की नृशंस हत्याएं किये जाने का समाचार सुनकर भाई परमानन्द जी, स्वामी श्रध्दानंद जी तथा लाला लाजपत राय ने एकमत होकर कहा था, “खिलाफत आन्दोलन में मुसलमानों का समर्थन करने के चलते ही यह दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं कि जगह जगह मुसलमान घोर पाशविकता का प्रदर्शन (12/24)
कर रहे हैं।” हिन्दू महासभा के डा. मुंजे इसे ‘खिला- खिलाकर आफत बुलाना’ कहते थे। मौलाना हसरत मोहानी ने कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में मोपला अत्याचारों पर लाए गए निन्दा प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा था, “मोपला प्रदेश दारुल अमन नहीं रह गया था, वह दारुल हरब में तब्दील हो (13/24)
गया था मोपलाओं ने ठीक किया कि हिन्दुओं के सामने कुरान और तलवार का विकल्प रखा और यदि हिन्दू अपनी जान बचाने के लिए मुसलमान हो गए तो यह स्वैच्छिक मतान्तरण है, इसे जबरन नहीं कहा जा सकता।” (राम गोपाल-इंडियन मुस्लिम-ए पालिटिकल हिस्ट्री, पृष्ठ-157) इस आंदोलन के दौरान ही गांधी (14/24)
ने अफगानिस्तान के शाह अमानुल्ला को तार भेजकर भारत को दारुल इस्लाम बनाने के लिए अपनी सेनाएं भेजने का अनुरोध किया। अब अली भाई अपने चेलों का एक शिष्टमंडल लेकर सऊदी अरब के शाह अब्दुल अजीज से खलीफा बनने की प्रार्थना करने गये। शाह ने तीन दिन तक मिलने का समय ही नहीं दिया और (15/24)
चौथे दिन दरबार में सबके सामने उन्हें दुत्कार कर बाहर निकाल दिया। भारत आकर मो.अली ने भारत को दारुल हरब (काफिरों की भूमि) कहकर मौलाना अब्दुल बारी से हिजरत का फतवा जारी करवाया। इस पर हजारों मुसलमान अपनी सम्पत्ति बेचकर अफगानिस्तान चल दिये। इनमें उत्तर भारतीयों की संख्या (16/24)
सर्वाधिक थी; पर वहां उनके मजहबी भाइयों ने ही उन्हें खूब मारा तथा उनकी सम्पत्ति भी लूट ली। अपमान की आग में जलते वापस लौटते हुए भारत की सीमा से ही वो रास्ते भर दंगे और लूटपाट करते हुए आए। मोपलाओं द्वारा हिन्दुओं की नृशंस हत्याओं का जब आर्य समाज तथा हिन्दू महासभा ने विरोध (17/24)
किया तब भी गाँधी जी मोपलाओं को ‘शांति का दूत’ बताते रहे। दिसम्बर १९२४ में कर्णाटक के बेलगाँव में प. मदनमोहन मालवीय जी की अध्यक्षता में हुए हिन्दू महासभा के अधिवेशन में कांग्रेस की मुस्लिम पोषक नीति पर कड़े प्रहार कर हिन्दुओं को राजनीतिक दृष्टि से संगठित करने पर बल दिया (18/24)
गया। इतिहासकार शिवकुमार गोयल ने अपनी पुस्तक में कांग्रेस की भूमिका का उल्लेख किया है। यह देश का दुर्भाग्य रहा है की कांग्रेस ने इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं बोला। स्वामी श्रध्दानंद जी ने कांग्रेस से सम्बन्ध तोड़ लिया। स्वामी श्रध्दानंद जी शुध्दि अभियान (19/24)
में पुरे जोर शोर से सक्रिय हो गए। २२ दिसम्बर १९२६ को दिल्ली में अब्दुल रशीद नामक एक मजहबी उन्मादी ने उनकी गोली मारकर हत्या कर डाली। स्वामी श्रध्दानंद जी की इस नृशंस हत्या ने सारे देश को व्यथित कर डाला। परन्तु गाँधी ने यंग इंडिया में लिखा, ”मैं भईया अब्दुल रशीद नामक (20/24)
मुसलमान, जिसने श्रध्दानंद जी की हत्या की है, का पक्ष लेकर कहना चाहता हूँ, की इस हत्या का दोष हमारा है। अब्दुल रशीद जिस धर्मोन्माद से पीड़ित था, उसके लिए केवल मुसलमान ही नहीं, हिन्दू भी दोषी हैं।” स्वातंत्रवीर सावरकर जी ने उन्हीं दिनों २० जनवरी १९२७ के ‘श्रध्दानंद’ के (21/24)
अंक के अपने लेख में गाँधी द्वारा हत्यारे अब्दुल रशीद की तरफदारी की कड़ी आलोचना करते हुए लिखा, “गाँधी जी ने अपने-आपको को साधू-हृदय, ‘महात्मा’ तथा निस्पक्ष सिद्ध करने के लिए एक मजहबी उन्मादी हत्यारे के प्रति सुहानुभूति व्यक्त की है। मालाबार के मोपला हत्यारों के प्रति वे (22/24)
पहले ही ऐसी सहानुभूति दिखा चुके हैं।” गाँधी ने स्वयं ‘हरिजन’ तथा अन्य पत्रों मैं लेख लिखकर स्वामी श्रध्दानंद जी तथा आर्य समाज के ‘शुद्धि आन्दोलन’ की कड़ी निंदा की वहीं दूसरी ओर जगह जगह हिन्दुओं के जबरन धर्मांतरण के (23/24)
विरुद्ध उन्होंने एक भी शब्द कहने का साहस नहीं दिखाया। #साभार (24/24)