जो राजनीतिक परिस्थिति अभी कर्नाटक में हैं ऐसी ही परिस्थिति 22 साल पहले 1996 में गुजरात में उत्पन्न हुई थी। दोनों राजनीतिक नाटक में कमोवेश पात्र भी एक जैसे थे, अंतर बस इतना है कि भूमिका बदली हुई है। उस समय गुजरात के भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वजु भाई वाला थे, यही वजू भाई जो आज कर्नाटक के राज्यपाल हैं। उस समय फरियादी थे आज निर्णायक की भूमिका में हैं। तब देश के प्रधानमंत्री देव गौड़ा थे, जो आज फरियादी की भूमिका में हैं। उस समय सुरेश मेहता के नेतृत्व में भाजपा सरकार को गुजरात विधानसभा में अपना विश्वास मत हासिल करना था। सुरेश मेहता ने सदन में बहुमत साबित कर विश्वासमत हासिल भी कर लिया था। इसके बावजूद गुजरात के तत्कालीन राज्यपाल कृष्णपाल सिंह ने प्रदेश में संवैधानिक संकट होने की घोषणा कर दी।
सही ही कहा गया है कि जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल मिलेगा। कर्नाटक में कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री देव गौड़ा की पार्टी जेडीएस के साथ आज जो कुछ हो रहा है वह उसका 22 साल पहले गुजरात में किया गया पाप का ही परिणाम है जो उसके सामने फल के रूप में पकट हुआ है। यह सच है कि पिछले कर्म का परिणाम अपने हिसाब से सभी को भुगतना पड़ता है।
मुख्य बिंदु
* 22 साल पहले देव गौड़ा ने महज 15 मिनट के अंदर मेहता सरकार को बर्खास्त कर दिया था
* कांग्रेस ने ही भाजपा को तोड़ने के लिए शंकर सिंह बाघेला और दीपक पारिख का किया था समर्थन
इस घटना के पीछे भाजपा के नेता शंकर सिंह बाघेला के साथ दीपक पारिख का दिमाग था। भाजपा के उन दोनों नेताओं का कांग्रेस समर्थन कर रही थी। मंशा साफ था, भाजपा को तोड़कर उसकी सरकार को गिराने के लिए ही कांग्रेस बाघेला और पारिख का समर्थन कर रही थी। कांग्रेस अपनी साजिश में कामयाब भी हुई। कांग्रेस के साथ मिलकर दोनों नेताओं ने गुजरात विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर मतविभाजन के दौरान सदन को ठप करने के लिए हिंसा करने से भी बाज नहीं आई। जबकि अविश्वास प्रस्ताव का गिरना तय था। अपनी सुनिश्चित हार को देख उनलोंगों ने हिंसा का सहारा लिया। इस कारण विधानसभा अध्यक्ष को पूरे विपक्ष को सिर्फ एक दिन के लिए निलंबित करने का फैसला मजबूरी में लेना पड़ा। इसके बाद अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सका और सरकार अपना बहुमत साबित कर पाई।
लेकिन खेल यहीं खत्म नहीं हुआ, क्योंकि कांग्रेस समर्थक तत्कालीन राज्यपाल कृष्णपाल सिंह ने प्रदेश में कानून व्यवस्था नहीं होने की बात कहते हुए प्रदेश में संवैधानिक संकट की घोषणा कर दी। इतना ही नहीं इस बाबत उन्होंने तब के प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा को रिपोर्ट भी भेज दी। सबसे महत्वपूर्ण और खास घटना तब ये हुई कि देव गौड़ा ने उस रिपोर्ट को अमल में लाने के लिए 15 मिनट भी जाया नहीं किया।। ये वही देवगौड़ा हैं जो कर्नाटक में मतदान से पहले चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस को गाली देते थकते नहीं थे। उन्होंने रिपोर्ट मिलने के 15 मिनट के अंदर गुजरात में लोकतांत्रिक ढंग से बहुमत हासिल करने वाली भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। बाद में इस नाकट के प्रमुख पात्र के रूप में उभरे शंकर सिंह बाघेला को पुरस्कार स्वरूप मुख्यमंत्री का पद मिला। लेकिन एक साल बाद ही उनके स्थान पर दीपक पारिख को मुख्यमंत्री बनाया गया। वह भी महज ढाई महीने ही मुख्यमंत्री पद का सुख भोग पाए। लेकिन तभी कांग्रेस ने उन दोनों से अपना समर्थन वापस ले लिया।
अब गुजरात में विधानसभा चुनाव होना अपरिहार्य हो गया था। सो चुनाव हुआ, बाघेला 47 से घटकर 4 सीटों पर सिमट गए। कांग्रेस को प्रदेश की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया। भाजपा की प्रदेश में जीत हुई और फिर केशुभाई पटेल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। लेकिन 22 साल के अंतराल के बाद समय ने फिर करवट बदला। दोनों पक्षों के पात्र वही हैं। एक ओर वजु भाई वाला हैं और दूसरी ओर एचडी देव गौड़ा की पार्टी जेडीएस। इसमें सिर्फ एक अंतर है वह यह कि उस समय पार्टी वजु भाई वाला की थी और सत्ता देव गौड़ा के हाथ में थी और आज पार्टी देव गौड़ा की है और सत्ता कर्नाटक के राज्यपाल के रूप में वजुभाई वाला के पास है।
Karma comes to haunt Congress + HD Devegowda after 22 years in form of Governor Vajubhai Vala pic.twitter.com/WK1N3sTmAY
— Rishi Bagree ?? (@rishibagree) May 16, 2018
इसलिए तो कहा जाता है कि आज आप भले ही शक्तिशाली हों लेकिन समय हमेशा ही आपसे ज्यादा ताकतवर होता है। परिस्थिति कभी भी बदल सकती है, इसलिए जब भी जो करें समय ताकतवर होता है इसका ध्यान रखकर करें।
URL: Congress and HD Devegowda might forgot, history repeats it self
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