कई बार जो भाषा नहीं कह पाती, आप स्वयं कहने में विफल हो जाते हैं, वह आपके हाव-भाव और वेश-भूषा कह जाता है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक आयोजन में शामिल होने आरएसएस मुख्यालय नागपुर पहुंचे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने तो खूब बोला और उदगार से बोला। फिर भी उनके बोलने से ज्यादा प्रभाव उनके पारंपारिक भारतीय परिधान (झक्क धोती-कुर्ता) का रहा। इस तरह नागपुर आना और संघ के तृतीय वर्ष शिक्षा वर्ग के स्वयंसेवकों को संबोधित करना सराहनीय रहा।
उनके भाषण का अलग अलग आशय निकालना और निकलना शुरू हो गया है। लेकिन उन्होंने अपने संबोधन के अवसान पर जो कुछ कहा वह संघ के मूल राष्ट्रीय सिद्धांत को ही दर्शाता है। प्रणब दा ने स्पष्ट कहा है कि इस देश में जितनी भी विविधताएं हों लेकिन सभी एक व्यवस्था के तहत एक राष्ट्र और एक ध्वज के तहत रहते आए हैं। संघ का मूल सिद्धांत भी तो यही है कि एक व्यवस्था एक राष्ट्र और एक ध्वज होना चाहिए।
ऐसे में अगर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी एक देश, एक झंडा और एक व्यवस्था में रहने की वकालत करते हैं तो किसकी आलोचना हुई और किसकी प्रशंसा इसका सहज अनुमान आप खुद लगा सकते हैं। सभी को पता है कि जब देश में कश्मीर को विशेष दर्जा देते हुए अलग संविधान बनाने की मांग कांग्रेस के नेताओं ने मान ली थी तब यही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और तब के भारतीय जनसंघ के नेताओं ने इसका विरोध किया था। भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि एक देश में दो विधान दो निशान नहीं चलेंगे। आरएसएस और भाजपा तो तब से देश में दो निसान का विरोध करते रहे हैं। ऐसे में अगर प्रणब दा ने अपने संबोधन में एक देश, एक घ्वज की बात कही है तो क्या ये संघ के विचार का सैद्धांतिक समर्थन नहीं है? याद हो कि कांग्रेस ने तो हाल ही में चुनाव के दौरान कर्नाटक के अलग झंडे की मंजूरी भी दे थी। कश्मीर में अलग झंडे का प्रावधान कांग्रेस की ही देन है।
प्रणब मुखर्जी ने स्वयंसेवकों को भारतीय इतिहास के संक्षिप्त क्रोनोलॉजी के बारे में बताया। उन्होंने फाह्यान से लेकर ह्वेनसांग तक के भारत आगमन के बारे में बताया। उन्होंने मौर्य से लेकर गुप्त वंश के बारे में बताया लेकिन जब मुगलों की बारी आई तो उन्होंने भी उसे आक्रांता ही बताया है।
मालूम हो कि आरएसएस भी मुगलों को आक्रांता ही मानता आ रहा, जबकि देश की पुरानी पार्टी कांग्रेस ने मुगलों को कभी भी न आक्रांता कहा है और न ही आक्रंता माना है। अपने संबोधन के दौरान कई जगहों पर प्रणब दा ने दरअसल कांग्रेस को आईना दिखाया है। वह जब खुशी के मापदंड पर दुनिया में देश की दयनीय स्थिति के बारे में बताते हैं तो उस समय भाजपा से ज्यादा कांग्रेस की जिम्मेदारी होती है क्योंकि सबसे ज्यादा दिनों तक उन्होंने ही देश पर शासन किया है।
लेकिन कांग्रेस ने प्रणब दा के संबोधन का सार समझे बगैर ही देर रात आनन-फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर प्रणब दा के भाषण की प्रशंसा तो की लेकिन उसके सार समझे बगैर उनके भाषण को भाजपा और आरएसएस के लिए आईना बता दिया। कांग्रेस ने कहा कि आरएसएस मुख्यालय जाकर प्रणव दा ने आरएसएस को बता दिया कि उनके विचारधारा में कितनी बुराई है। कांग्रेस के जो नेता नागपुर जाने से पहले प्रणब दा को नसीहत देने से बाज नहीं आते थे वे उनकी प्रशंसा करने में जुट गए हैं।
दरअसल कांग्रेश इसलिए खुश हो रही है कि प्रणब दा ने उनके बारे में कुछ नहीं बोला। जिस पार्टी को अपने ही पुराने नेताओं से डर लगने लगे उस पार्टी के मनोभाव को जाना जा सकता है। मुझे तो लगता है कि कांग्रेस मूर्ख लोगों की टोलियों की पार्टी हो गई है।
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