हिंदी में एक कहावत है कि ‘रस्सी जल गई पर बल न गया’। कांग्रेस पर यह कहावत सटीक बैठती है। जो कांग्रेस कल तक अयोध्या में श्री रामजन्म भूमि पर सार्वजनिक शौचालय और अस्पताल आदि बनवाने की बात करती थी आज उसी कांग्रेस को सरकारी तीन मूर्ति भवन में देश के अन्य किसी भी पूर्व प्रधानमंत्री को स्थान देना गवारा नहीं है। उसे वह अपनी पैतृक संपत्ति बनाने पर तुली हुई है। तभी तो कांग्रेस पार्टी ने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कड़े लहजों वाली चिट्ठी भिजवाई है।
अपनी चिट्ठी में मनमोहन सिंह ने मोदी सरकार से तीन मूर्ति भवन स्थित नेहरू स्मृति संग्रहालय एवं पुस्तकालय (नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी- एनएमएमएल) को अक्षुण्ण रखते हुए उसके साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं करने की बात कही है। पिछले सप्ताह नरेंद्र मोदी को भेजे अपने पत्र में मनमोहन सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र करते हुए लिखा है कि वाजपेयी ने भी कभी इसमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की । लेकिन मोदी सरकार अपने एजेंडे के तहत नेहरू मेमोरियल में बदलाव की कोशिश कर रही है। वैसे तो डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनाए जाने के एवज में कांग्रेस की हक अदायगी कर रहे हैं। उन्होंने वही लिखा है जो सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने कहा है।
Former PM Manmohan Singh writes a letter to Prime Minister Narendra Modi; says, 'Nehru Memorial Museum & Library is dedicated to memory of India's first Prime Minister. It should be left undisturbed. Jawaharlal Nehru belongs not just to Congress, but to the entire nation' pic.twitter.com/a88abtAKuP
— ANI (@ANI) August 27, 2018
काश डॉ. मनमोहन सिंह सोनिया और राहुल के इशारे पर चलने की बजाय अपने विवेक का इस्तेमाल करते! अपनी चिट्ठी में तीन मूर्ति भवन के इतिहास और वर्तमान स्थिति पर भी प्रकाश डाला होता! और अपने 10 साल के शासनकाल के दौरान रामजन्म भूमि मंदिर तथा सेतु समुद्रम को लेकर देश की आस्था के बारे में विचार किया होता? तो आज उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह नहीं लिखना पड़ता कि नेहरू का संबंध कांग्रेस से नहीं बल्कि पूरे देश से है।
वैसे भी मोदी सरकार ने नेहरू मेमोरियल के संबंध में ऐसा कुछ नहीं किया है जिससे नेहरू की स्मृति पर कोई आंच आए। मोदी ने तो नेहरू को और भी सर्वव्यापक बना दिया है। लेकिन सोनिया और राहुल गांधी को नेहरू की स्मृति संग्रहालय की चिंता नहीं है उसे चिंता है तो नेहरू के नाम पर लुटियंस जोन में 25 एकड़ में फैले तीन मूर्ति भवन की संपत्ति की। उसे चिंता है अपनी सत्ता छिन जाने की और निकट भविष्य में सत्ता हाथ में न आने की। उसे चिंता है अपने पूर्वज के साथ देश के अन्य पूर्व प्रधानमंत्री के स्थापित होने की। क्योंकि कांग्रेस अभी भी खुद को फर्स्ट एमांग इक्वल (बराबरी के बीच प्रथम) नहीं बल्कि “एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति” मानती है।
तीन मूर्ति भवन मसले से गांधी-नेहरू वंश की असुरक्षा का खुला राज
सत्ता छिन जाने से जितना असुरक्षा बोध नहीं होता उससे कहीं ज्यादा असुरक्षा का भाव निकट भविष्य में सत्ता हाथ में नहीं आने से होता है। कांग्रेस पार्टी को अपनी जायदाद समझने वाले नेहरू-गांधी वंश की संरक्षक सोनिया गांधी और अध्यक्ष राहुल गांधी में असुरक्षा का भाव किस कदर भर गया है उसका साक्षात उदाहरण तीन मूर्ति भवन का मसला है? मोदी सरकार ने हाल ही में तीन मूर्ति भवन स्थित नेहरू मेमोरियल में देश के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों की स्मृति संजोने का फैसला लिया है। मोदी सरकार के इस फैसले पर छात्रों, इतिहासकारों, शोधार्थियों तथा बुद्धिजीवियों को छोड़ दिया जाए तो किसी ने संज्ञान में भी नहीं लिया।
मोदी सरकार का यह फैसला इतना निर्विवाद है कि मीडिया तक ने इसे कोई तरजीह नहीं दी। लेकिन नेहरू-गांधी के पूर्वजों के साथ किसी और को स्थान दिया जाए यह सोनिया और राहुल गांधी को कैसे गंवारा हो सकता है? तभी तो उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखवाकर इसे विवादित बना दिया है। क्योंकि गांधी परिवार आज भी देश में सर्वोत्कृष्ट होने की मनःस्थिति से उबर नहीं पाया है। मनमोहन सिंह ने क्रोध में लिखे पत्र में पीएम नरेंद्र मोदी पर बदले की भावना से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की विरासत को मिटाने का प्रयास करने का आरोप लगाया है।
सोनिया गांधी का तीन मूर्ति भवन में पूर्व प्रधानमंत्रियों की स्मृति संजोने के फैसले को विवादित बनाने का यह फैसला उसकी वंशवादी सोच का परिचायक है। नेहरू-गांधी परिवार देश की आजादी से लेकर चार साल पहले तक येनकेन प्रकारेण सत्ता से अपना नियंत्रण नहीं खोया। यह स्पष्ट करता है कि किस प्रकार इस वंशवादी परिवार ने देश की जनता पर छल-बल से अपना नियंत्रण बनाए रखा और दशकों तक अपनी पीढ़ियों के लिए पोषित किया। लेकिन अब जब सात दशकों के बाद पहली बार सत्ता छिन जाने के बाद लंबे समय के लिए दूर होती दिख रही है, तो भी असुरक्षा भाव के साथ ही डर भी लगने लगा है।
निजी स्वार्थ के लिए इसे विवादित बनाया जा रहा है
तीन मूर्ति भवन परिसर में देश के दूसरे पूर्व प्रधानमंत्रियों के संग्रहालय बनाने के प्रस्ताव को विवादित बनाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि यह संग्रहालय तीन मूर्ति भवन के परिसर में बनना है न कि तीन मूर्ति भवन को पुनर्निर्माण करना है। वैसे भी यह पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू का निवास था जिसे बाद में उनकी स्मृति में संग्रहालय और पुस्तकालय में बदल दिया गया। इस बारे में नेहरू मेमोरियल के कार्यकारी परिषद के सदस्य सूर्यप्रकाश का कहना है कि तीन मूर्ति भवन और तीन मूर्ति एस्टेट दोनों अलग-अलग संस्थाएं हैं। साजिश के तहत अक्सर इन दोनों संस्थाओं को एक करने का प्रयास किया गया है। इस परिसर में पुस्तकालय से लेकर प्लैनेटोरियम तक का निर्माण बाद में किया गया। इस एस्टेट की कुछ जमीन दिल्ली पुलिस को भी दी गई है।
इसके बाद भी इस परिसर में इतनी जमीन है कि इसमें कई और निर्माण हो सकते हैं। लेकिन दिक्कत ये है कि कांग्रेस इसे निजी संपत्ति मान बैठी है। तभी तो मोदी सरकार के इस फैसले से कांग्रेस इतना आग बबूला हो रही है। कांग्रेस के नेता तथा नेहरू मेमोरियल कार्यकारी परिषद के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और जयराम रमेश का कहना है कि यह जवाहरलाल नेहरू की विरासत है जिसका संबंध स्वतंत्रता संग्राम से है। उन्होंने नरेंद्र मोदी पर द्वेषभाव के तहत जवाहरलाल नेहरू की स्मृति को मिटाने का आरोप लगाया है।
अपनी असली मंशा छिपाते हुए कांग्रेस खेल रही ब्लेम गेम
कांग्रेस ने अभी तक तीन मूर्ति भवन के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जितने आरोप लगाए हैं वे सब निराधार है। कांग्रेस ने अपने आरोप में कहीं भी इसका जिक्र नहीं किया कि किस प्रकार दूसरे पूर्व प्रधानमंत्रियों के संग्रहालय बन जाने से जवाहरलाल नेहरू की स्मृति पर आंच आएगी? कांग्रेस ने ये नहीं बताया कि तीन मूर्ति स्टेट में दूसरे संग्रहालय बन जाने से तीन मूर्ति भवन पर क्या असर पड़ेगा? कांग्रेस ने यह भी नहीं बताया है कि अन्य प्रधानमंत्रियों की स्मृति बनाने का नरेंद्र मोदी का फैसला किस प्रकार कपटपूर्ण और जवाहरलाल नेहरू की विरासत को मिटाने वाला है? जिस प्रकार कांग्रेस मोदी सरकार पर आरोप लगा रही है उससे सहज सवाल उठता है कि क्या तीन मूर्ति स्टेट निजी संपत्ति है? क्या यह नेहरू-गांधी परिवार से संबंधित है? दरअसल कांग्रेस की मंशा बिल्कुल इससे भिन्न है, जिसे वह जगजाहिर नहीं करना चाहती है। उसकी मंशा है कि अभी तक देश में सर्वोत्कृष्ट होने का हांसिल दर्जा कायम रहना चाहिए। उसके पूर्वजों के साथ किसी दूसरे प्रधानमंत्री को जगह नहीं मिलनी चाहिए। क्योंकि उसकी बराबरी देश के किसी भी व्यक्ति से नहीं की जा सकती है।
तीन मूर्ति भवन स्थित नेहरू मेमोरियल की वास्तविक स्थिति
नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (एनएमएमएल) संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्थान है। इस संस्था के अध्यक्ष पदेन प्रधानमंत्री होते हैं तथा उपाध्यक्ष पदेन गृह मंत्री होते हैं। इसकी संपत्ति केंद्र सरकार से संबद्ध है। तीन मूर्ति एस्टेट परिसर में देश के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के संग्रहालय बनाने का फैसला जुलाई में हुई आम सभा की बैठक में लिया गया था। उस सभा की अध्यक्षता गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की थी। केंद्र सरकार के इस फैसले ने कांग्रेस को मिर्ची लगा दी।
गौरतलब है कि तीन मूर्ति भवन प्रधानमंत्री का आधिकारिक आवास 1948 में बना था। इससे पहले यह देश के थल सेनाध्यक्ष का आधिकारिक आवास हुआ करता था। गांधी के निधन के बाद ही जवाहरलाल नेहरू ने खुद को दूसरों से विशिष्ट बनाने की मंशा से इसे अपना आवास बनाया। नेहरू को कांग्रेस जितना भी जनवादी बताए लेकिन वे हमेशा ही खुद को दूसरों से विशिष्ट समझते रहे। तभी तो उन्हों केंद्रीय मंत्रियों के आवास से अलग अपना आवास का चुनाव किया। यही मंशा आज तक उनके वंशज में भी रही है। इसी मंशा की वजह से तो मोदी सरकार के इस जनवादी फैसले का कांग्रेस विरोध कर रही है।
मालूम हो कि तीन मूर्ति भवन को नेहरू मेमोरियल बनाने का फैसला तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, शिक्षा और संस्कृति मंत्री एमसी छागला तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। एनएमएमएल के निदेशक शक्ति सिन्हा के मुताबिक नेहरू मेमोरियल बन जाने के बाद 9 अगस्त 1968 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नेहरू मेमोरियल के संदर्भ में यह फैसला किया था उसे फिर से एक बार प्रधानमंत्री का निवास बना दिया जाना चाहिए। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने तो देश हित में फैसला लेते हुए देश की राजधानी दिल्ली की इतने महत्वपूर्ण स्थान पर देश के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के संग्रहालय बनाने का फैसला किया है।
URL: Congress does not want to give place to other prime ministers in Teen Murti Bhavan
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