कांग्रेस के आईटी सेल में महिलाओं का शोषण हो रहा है, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी ही पार्टी की पीड़िता से नहीं मिल रहे हैं, लेकिन चोरी-चोरी, चुपके-चुपके 100 महिला पत्रकारों से मिलने का समय है उनके पास! पिछले दिनों इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में राहुल गांधी गुप्त तरीके से लुटियन दिल्ली की 100 महिला पत्रकारों से मिले। वुमन प्रेस क्लब से जुड़ीं ये पत्रकार राहुल के बुलावे पर ऐसे बलिहारी हुई कि पूछिए मत! इन महिला पत्रकारों ने अपनी ही बिरादरी को धोखा दे दिया और खुद को राहुल गांधी की प्रिविलेज क्लब की मेंबर मान कर उन्हें दुत्कारना शुरू कर दिया, जिनके पास टीम राहुल का मेल नहीं पहुंचा था! लुटियन महिलाओं के बीच राहुल गांधी का सान्निध्य पाने के लिए’सौतनिया लड़ाई’ शुरू हो चुकी है। लेखिका सोनाली मिश्र इस पूरे मुद्दे पर लिखती हैं:-
“परदे में रहने दो, पर्दा न उठाओ, पर्दा जो उठ गया जो राज खुल जाएगा!” यह पर्दा ही है जो न जाने कितनों की राजनीति का आधार है, यह पर्दा ही है जो आजकल कई चीज़ों पर पड़ा हुआ है और यह पर्दा ही है जो कईयों की लाज बचाए हुए है, तो यह पर्दा ही है जो आपस में हडकंप और संघर्ष का कारण बना हुआ है। कुछ पर्दे ऐसे होते हैं जो कुछ का कुछ प्रस्तुत करने के लिए डाले जाते है। यशपाल की एक बहुत ही लोकप्रिय कहानी है पर्दा। जिसमें कई घटनाक्रमों के बाद घर की इज्ज़त बचाने के लिए एक पर्दा डाल दिया जाता है और बाहर वालों को पता नहीं चलता कि अन्दर क्या राज़ दफ़न है, या अंदर आखिर हो क्या रहा है? चौधरी पीरबख्श की इज्ज़त का आधार था, घर के दरवाजे़ पर लटका पर्दा । भीतर जो हो, पर्दा सलामत रहता । कभी बच्चों की खींचखाँच या बेदर्द हवा के झोंकों से उसमें छेद हो जाते, तो परदे की आड़ से हाथ सुई-धागा ले उसकी मरम्मत कर देते। कुछ इसी तरह का पर्दा टांग रखा है विपक्ष की कथित रूप से सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने और इसी परदे की सिलाई करने के लिए पिछले सप्ताह सौ महिला पत्रकारों के साथ एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया था।
ख़ास बैठक:
इस बैठक को विशेष इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि फटे परदे में सिलाई करने के लिए कुछ ख़ास कारीगरों को ही बुलाया गया था, मतलब कलम के कारीगरों को। जिनके पास कांग्रेस के पसंदीदा रंग और तर्क के धागे थे। और जिनकी नज़र में कांग्रेस के युवराज ही वर्ष 2014 में गद्दी पर बैठने चाहिए थे और बेचारे युवराज का हक़ इस जालिम जनता ने छीन कर उस हिटलर नरेंद्र मोदी के हाथों थमा दिया है। जो भी महिला पत्रकार वहां गईं, सूत्रों और कानाफूसियों के अनुसार उन्हें फोन तक उस बैठक में नहीं ले जाने दिए थे और न ही बाद में किसी महिला पत्रकार ने अपने ट्विटर आदि से इस बैठक की पुष्टि की। यह बैठक इस हद तक गोपनीय रखी गयी थी कि महिला पत्रकारों की संस्था आईडब्ल्यूपीसी की भी सदस्य पत्रकारों को इसके बारे में भनक नहीं थी। भाजपा या कहा जाए दक्षिण पंथ की तरफ झुकाव रखने वाली सभी महिला पत्रकारों को इस बैठक से दूर रखा गया।
आयोजन किसका? और कौन – कौन निमंत्रित?
इस विषय में जब वरिष्ठ पत्रकार सर्जना शर्मा से बात की तो उनका साफ़ कहना था कि उनके पास कोई मेल नहीं आया, और इस बैठक के विषय में आईडब्ल्यूपीसी में भी कुछ चुनिन्दा ही पत्रकारों के पास मेल आए थे। तो अब प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर महिला पत्रकारों के बीच इस तरह भेदभाव आखिर क्यों किया गया और किसके कहने पर किया गया? और सबसे प्रमुख सवाल कि अपनी अपनी विचारधारा के आधार पर यदि ऐसा कोई आयोजन भाजपा या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा किया गया होता तो उसकी प्रतिक्रिया क्या होती? क्या उसे भी इतनी ही सहजता से लिया जाता, जितनी सहजता से राहुल गांधी के द्वारा आयोजित इस चुनिन्दा पत्रकारों के साथ की गयी बैठक को लिया जा रहा है।
यह भी सुनने में आया है कि इस बैठक के कारण आईडब्ल्यूपीसी की सदस्य पत्रकारों के बीच बवाल मचा है, मगर कुछ पत्रकार इस मुद्दे पर पानी भी डालती नज़र आईं। एक वरिष्ठ महिला पत्रकार का कहना था कि आईडब्ल्यूपीसी की सभी सदस्य पत्रकारों से मेल के द्वारा पूछा गया था कि क्या उन्हें जाना है या नहीं? मगर उनकी इस बात का खंडन करते हुए एक लेख द प्रिंट में पत्रकार सीमा मुस्तफा के द्वारा प्रकाशित हुआ है, जिसमे सीमा मुस्तफा के अनुसार आईडब्ल्यू पीसी की सभी सदस्यों के पास इस बैठक की जानकारी नहीं थी? तो सवाल महिला पत्रकारों की संस्था आईडब्ल्यूपीसी पर भी हैं कि क्या महिला पत्रकारएक राजनीतिक दल का ही विचार रखने के लिए अपने ही साथियों के साथ दुराव और छिपाव का बर्ताव करेंगी?
सीमा मुस्तफा एकदम स्पष्ट लिखती हैं कि आखिर जो सौ पत्रकारों की सूची बनी उसका आधार क्या था? क्या सूची आईडब्ल्यूपीसी ने बनाकर दी थी? या फिर वह कांग्रेस से ही बनकर आई थी? यदि यह आईडब्ल्यूपीसी से बनी थी तो उसके प्रतिनिधित्व का आधार क्या था? सवाल कई हैं और सबसे बड़ा सवाल इस बैठक की गोपनीयता का है, कि आखिर इतना क्या भय है कुछ पत्रकारों से कि कांग्रेस की तरफ से उन्हें निमंत्रित ही नहीं किया गया?
शब्दों के पैबन्दों से गुनाह नहीं छिपते?
अब प्रश्न उठता है कि राहुल गांधी या कांग्रेस केवल कुछ चुनिन्दा मुस्लिम बुद्धिजीवियों या फिर कुछ चुनिन्दा महिला पत्रकारों से ही मिलने में क्यों यकीन करती है? क्या राहुल गांधी को यकीन है कि यही लोग हैं जो कांग्रेस की उधड़े और फटे पर्दों में अपने शब्दों का पैबंद लगाने में सफल होंगे? और जिस तरह यशपाल की कहानी में कुछ हाथ आते थे और पर्दा सिल जाते थे, मगर वे पर्दा सिलने वाले हाथ दरवाजों की कमज़ोर चौखटों को तो नहीं ढाक सकते थे, यही कुछ हाल इन चुनिन्दा पत्रकारों का भी हो सकता है, कि यह तो हो सकता है कि वे कुछ चुनिंदा पैबंद तो लगा दें, मगर दरवाजे की चौखटे तो ढह चुकी हैं, अब कितना भी खूबसूरत पैबंद लगा लीजिए, यह पर्दा तो गिर ही जाना है, फिर उसके नीचे की गंदगी जनता देख ही चुकी है। शब्दों के पैबंद से आप सनसनी पैदा कर सकते हैं, मगर जाति-धर्म के आधार पर अपराध बाँट सकते हैं, मगर यह जनता है, जो पर्दे पर लगे हुए पैबंद देख रही है।
चुने हुए पत्रकार कुछ शब्द दे सकते हैं, मगर यह राजदारी, यह गोपनीयता कहीं उन्हीं ख़ास महिला पत्रकारों को उन्हीं ही बिरादरी में अकेला न कर दे, यह भी देखना होगा।
URL: Congress hired 100 women journalists for 2019 election victory
Keywords: Congress, women journalist, congress media nexus, 2019 election, congress hired journalist,
कांग्रेस, महिला पत्रकार, कांग्रेस मीडिया नेक्सस, 201 9 चुनाव,