कांग्रेस पार्टी ने तुर्की में अपना कार्यालय खोला है, तुर्की की ही मीडिया एजेंसी, अनादोलू ने सबसे पहले खबर दी कि भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी काग्रेस ने वहा, तुर्की में अपना आफिस खोला है. मोहम्मद यूसुफ खान नाम के एक कांग्रेस नेता तुर्की में स्थित कांग्रेस के इस कार्यालय का प्रतिनिधित्व करंगे.
अन्तराष्ट्रीय मंच पर भारत विरोधी रवैया अपनाने वाली तुर्की की धरती पर कांग्रेस कार्यालय खोलने का क्या है औचित्य?
अब सोचने वाली बात यह है कि ऐसे समय में जब भारत और तुर्की के आपसी कूटनीतिक रिश्ते एक बुरे दौर से गुज़र रहे हैं, जब जम्मू कश्मीर पर से धारा 370 हटने जैसे संवेदनशील मुद्दे को लेकर तुर्की ने एक अंतराष्ट्रीय मंच पर, संयुक्त राश्ट्र संघ की जेनेरल असेम्बली में भारत के विरुद्ध और पाकिस्तान के पक्ष में बोला और भारत को कश्मीर मसला पाकिस्तान के साथ मिलकर सुलझाने की नसीहत दी, ऐसे समय में इस बात का क्या औचित्य है कि भारत का सबसे प्रमूख विपक्षीय दल ये सब जानते समझते हुए भी तुर्की जैसे देश में अपना कार्यालय खोल रहा है. ऐसा करके वो क्या संदेश देना चाहता है? और ऐसा होना एक संयोग मात्र तो हो नहीं सकता कि कार्यालय ऐसे समय में खुल रहा है जब औपचारिक तौर पर , कूटनीतिक तौर पर दोनों देशों के बीच बहुत तनाव है.
भारत सरकार ने अपनाया तुर्की को लेकर सख्त रवैया
जम्मू कश्मीर पर से धारा 370 हटने के सिलसिले में जो तुर्की ने बयान दिया है और पाकिस्तान के साथ तुर्की की बढ़्ती नज़दीकियों के चलते भारत तुर्की को निर्यात किये जाने वाले हथियारों और सैन्य उपकरणों की मात्रा में भी कटौती का विचार कर रहा है. इसके अलावा तुर्की से जो सामान भारत में इम्पोर्ट होता है, उसमें भी भारत कटौती करने पर विचार कर रहा है. यानि भारत के तुर्की के साथ जो व्यापारिक रिश्ते हैं, तुर्की के भारत विरोधी रवैये को लेकर भारत अब इन रिश्तों पर कुछ् कुछ् अंकुश लगने की मंशा में है.
मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत और तुर्की के द्विपक्षीय संबंधों की रूपरेखा
तुर्की की हमेशा से पाकिस्तान के साथ कूटनीतीक सांझेदारी रही है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने 2016 से ही तुर्की के साथ अपने संबंध बेहतर करने के प्रयास शुरू कर दिये थे. जहां प्रधनमंत्री मोदी ने 2016 में एर्द्रोगन की तरफ मित्रता के हाथ बढ़ाये थे, वहीं 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद एर्दोगन ने अपने विदेश दौरों में से सबसे पहले भारत का विदेश दौरा किया. तब से दोनों देशों के व्यापारिक संबंध बेहतरी की ओर अग्रसर होते गये और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को लेकर दोनों देशों के बीच इंटेलिजेंस की आदान प्रदान की सांझेदारी हुई. लेकिन अगस्त में जम्मू कश्मीर पर से धारा 370 हटने के बाद जो तुर्की ने भारत के साथ विश्वासघात किया है और सारे अंतराष्ट्रीय समुदाय में भारत की छवि बिगाड़ने का प्रयत्न किया है, उसने भारत के लिये कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है तुर्की के साथ सामान्य संबंध रखने की भी, बेहतर तो बहुत दूर की बात .
तुर्की में इस समय कार्यालय खोलकर कांग्रेस जा रहा प्रजातंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के विरुद्ध
तो अब वापस आते हैं कांग्रेस पार्टी की तरफ जिसने तुर्की में कार्यालय स्थापित किया है. तुर्की की अनादलू एजेंसी की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की में स्थापित ये कांग्रेस कार्यालय भारत और तुर्की के रिश्तों के विभिन्न आयामों जैसे की संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति, संस्कृति, व्यापार, पर्यटन की बेहतरी का प्रयास करेगा. तो पहले तो हम कांग्रेस पार्टे को ये बता दें कि किसी भी दूसरे देश के साथ द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने का काम वहां की सरकार का होता है, न कि विपक्षी पार्टी का. एक ज़िमेदार विपक्ष का दायित्व होता है देश के विभिन्न महत्व्पूर्ण मुद्दों को लेकर सांसद में एक स्वस्थ विमर्श का मौहाल तैयार करना और यदि वो सरकार की आलोचना भी कर रहे हैं, तो एक सकरात्मक आलोचना यानि कंस्ट्र्क्टिव क्रिटिसिज़्म करना . लेकिन विदेश नीति में देश की सरकार के मत के विरुद्ध जाकर किसी ऐसे देश के साथ द्विपक्षीय संबंध सुधारने की बात करना और उसके लिये वहां कार्यालय भी खोलना , ऐसा देश जो कि अंतराष्टृईय समुदाय के सामने हमारी किरकिरी कर् रहा है, एक प्रकार का देशद्रोह ही है.
दूसरी बात यह है कि जब बात विदेश नीति या रक्षा नीति की आती है या कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों की आती है तो अपास में भले ही कितने भी आंतरिक मतभेद हों, बाहर की दुनिया के सामने एक एकमत छवि प्रस्तुत करना ज़रूरी है. ये तो एक मुलभूत सैद्धांतिक बात है. और कांग्रेस ने इस मूलभूत सिद्धांत को ही तिलांजलि दे दी है. कभी कांग्रेस के सिद्धु जैसे नेता पाकिस्तान के इमरान खान के साथ प्रगाढ़ मित्रता का प्रदर्शन कर देश के मत के विरुद्ध जाते हैं तो कभी कांग्रेस के राहुल गांधी विदेशी विश्विद्यालयों में जाकर एन डी ए सरकार की नीतियों की निंदा करते हैं. जम्मू कश्मीर पर से धारा 370 हट्ने क्के तुरंत बाद से ही कांग्रेस ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़े करने की कोशिश की. लेकिन जब उन्होने देखा कि धीरे धीरे सारा अन्तराष्ट्रीय समुदाय इसे लेकर सरकार के साथ एकमत हो रहा है तो उन्हे समझ में आ गया कि अब यहां पर हमारी दाल नहीं गलने वाली तो कांग्रेस नें पैंतरे बदल दिये और अंतराष्ट्रीय मंच पर सरकार के साथ एकमत होने का स्वांग र्रचने लगा. लेकिन तुर्की में जो उसने कार्यालय खोल रहा है, इससे अब ये स्वांग टुटता सा नज़र आ रहा है. ये किस प्रकार का प्रपोगैंडा है और ऐसा करके वो क्या हासिल करना चाहता है, यह तो समय ही बतायेगा लेकिन एक बात तय ज़रूर है कि ऐसा करके कांग्रेस अन्तराष्ट्रीय समुदाय में देश की ही छ्वि बिगाड़ रहा है.
कांग्रेस का तुर्की में कार्यालय खोलना उसकी मुस्लिम अपीज़मेंट नीति का ही हिस्सा
कांग्रेस हमेशा से ही मुसलमानों को एक वोट बैंक के रूप में देखती है. और कांग्रेस की मुस्लिम अपीज़मेंट नीति भी इसी संदर्भ में फिट बैठती है. अब जैसे जैसे कांग्रेस देश के नागरिको के बीच अपनी मान्यता खोती जा रही है, वैसे वैसे वो अपने आप को जीवित रखने के लिये, अपनी पहचान बनाये रखने के लिये नये नये तिकड़्म लगा रही है. मुसलमानो को लेकर मोदी सरकार को कटघरे में खड़े करने की कोशिश करना और खुद मुसलमानों का हितैषी बनना उसकी पुरानी सियासत रही है. और तुर्की में उसका कार्यालय खोलना भी उसी सियासत की कड़ी है. उसके भी सीधे तार कांग्रेस की मुस्लिम अपीज़मेंट पांलिसी से जुड़ते हैं. इसे लेकर उसकी और भी खतरनाक मंशा हो सकती है.. तुर्की और पाकिस्तान जैसे विरोधी देशो को साथ ले अंतराष्ट्रीय समुदाय मे मोदी सरकार की छ्वि बिगाडना. और यदि ऐसा है तो ये वाकई में चिंताजनक और घृणास्पद दोनो है.
Why Billgates foundation vaccination be tested on our brotheren, when Our ICMR is jointly developing Covid 19 vaccination, we better test our vaccination which is in sight.