देश के खिलाफ रचे जा रहे षड्यंत्र का जब खुलासा होता है तो इसी प्रकार अपने आका को बचाने के लिए एक-एक कर षडयंत्रकारी बाहर आते हैं। अभी कुछ दिन पहले दिल्ली के एक पादरी अनिल कोटो ने क्रिश्चियन कम्युनिटी से मोदी सरकार के खिलाफ प्रार्थना अभियान चलाने का अनुरोध किया था। अब उनके समकक्ष गोवा के पादरी फिलिप नेरी फेराओ ने बयान जारी कर विकास के नाम पर मानवाधिकार को कुचलने तथा खतरे में संविधान की बात उठाई है। ध्यान रहे उन्होंने एक भी उदाहरण नहीं दिया है कि कैसे संविधान खतरे में है? और कहां विकास के नाम पर मानवाधिकार को कुचला जा रहा है? बस हवा में बयान भर दे दिया है। ताकि 2019 में होने वाले आम चुनाव के लिए केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ हवा बनाई जा सके। उनसे पूछा जाना चाहिए कि अगर संविधान खतरे में होता या मानवाधिकार को रौंदा जाता तो क्या आप इस तरह का बयान यहां दे सकते थे? आखिर उन्हें संविधान खतरे में क्यों दिख रहा है? उन्होंने कहां मानवाधिकार को कुचलते हुए देखा है? अब बहुत हुआ वेटिकन के इशारे पर अनर्गल प्रलाप कर रहे इन पादरियों को वहीं भेज देना चाहिए!
मुख्य बिंदु
* देश की जनता में रेलिजन का भय दिखाकर सांप्रदायिकता बढ़ाने का कर रहा है काम
* देश को बदनाम करने का षड्यंत्र रचने के लिए सरकार को करनी चाहिए कार्रवाई
फिलिप ने अपने पूरे बयान में कहीं भी जगह एक भी उदाहरण नहीं दिया है कि अमुक जगह सरकार ने विकास के नाम पर मानवाधिकार को कुचला है। न ही उन्होंने यह बताया है कि किस प्रकार हमारा संविधान खतरे में है। अगर उनके पास एक भी उदाहरण नहीं है तो फिर वह इस प्रकार झूठ क्यों फैला रहे हैं? क्या पादरी हो जाने से झूठ फैलान का लाइसेंस मिल जाता है? जिस देश का नमक खाते हैं उसी को बदनाम करने पर तुले हैं। ऐसे में देश के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल नहीं किया जाना चाहिए? कैथोलिकों को इकट्ठा करना उनका अधिकार है, लेकिन क्या इस तरह भय दिखाकर अपने रिलीजन के नाम पर सांप्रदायिकता को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं।
क्या इससे उनकी छटपटाहट नहीं उजागर हो रही है कि गरीब हिंदू अब उनकी धूर्तता को पहचान गया है? अब वे उनके फरेब में नहीं फंस रहे। संविधान इसलिए खतरे में है कि पूर्व सरकार की भांति उन्हें देश में कनवर्जन करने का मौका नहीं मिल रहा है? या इसलिए खतरे में है कि रिलीजन के नाम पर कहीं भी जमीन कब्जा कर वहां अवैध रूप से चर्च बनाने का खुला मैदान नहीं मिल रहा है?
देश के कैथोलिकों और कनवर्ट होकर क्रिश्चियनिटी को स्वीकारने वालों को भी फिलिप और कोटो जैसे राजनीतिक पार्टी के दलालों से बचना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि वे उनके हितैषी नहीं हैं बल्कि अपनी सुख-सुविधा के लिए उनकी चापलूसी कर रहे हैं। आखिर संविधान खतरे में था या देश में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार का हनन हो रहा था तो वे अब तक आवाज क्यों नहीं उठा रहे थे? उनसे पूछा जाना चाहिए कि कहां -कहां उन्होंने मानवाधिकार के खिलाफ हो रहे अत्याचार के लिए अभी तक काम किया है या फिर अभियान चलाया है? अगर आप पूछेंगे तो निश्चित रूप से वह उस समुदाय का नाम लेंगे जिसका ताल्लुक आतंकवादी संगठनों से होगा।
गोवा के आर्कबिशप फिलिप नेरी फेराओ ने वार्षिक पादरी पत्र में कैथोलिकों को सचेत होकर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया है। हालांकि हवाला तो उन्होंने संविधान बचाने का दिया है, लेकिन पराकांतर से कांग्रेस के लिए बैटिंग करते हुए दिखते हैं। उन्होंने झूठ फैलाते हुए कहा है कि विकास के नाम पर छल कर लोगों को अपनी जड़ से उखाड़ा जा रहा है। अब उन्हें पता नहीं कि जड़ क्या होती है? अगर पता होता तो वे हिंदुओं को अपने जड़ से उखाड़कर बलात क्रिश्चियन बनाने के मिशनरी का उपयोग नहीं करते।
याद हो कि करीब दो सप्ताह पहले दिल्ली के पादरी अनिल कोटो ने इस तरह के बयान से अपने समुदाय के लोगों को कांग्रेस के समर्थन में एकजुट होने के अभियान में शामिल होने का अनुरोध किया था। अब दो सप्ताह बाद गोवा के पादरी फिलिप इस अभियान में जुट गए हैं। उन्होंने कैथोलिकों से राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने की बात कही है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि अब जब 2019 का आम चुनाव सर पर है तो ऐसे में हम सभी को एकजुट होकर संविधान की रक्षा के लिए काम करना चाहिए।
2018-19 के लिए रविवार को जारी वार्षिक पादरी पत्र में फिलिप ने लोगों में भय बैठाने के लिए कहा कि देश में अधिकांश लोग असुरक्षा की भावना में जी रहे हैं, इसलिए हमारा संविधान खतरे में है। उन्होंने कहा कि गोवा में 26 प्रतिशत कैथोलिक हैं, इसलिए वे काफी प्रभावी बन सकते हैं। उन्होंने देश में उभरती एकल संस्कृति का आरोप लगाते हुए कहा कि इससे जहां मानवाधिकार पर हमला बढ़ा है वहीं हमारा लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है।
अब इन पादरियों को कौन समझाए कि भारत जैसे बहुलतावादी देश में कभी भी एक संस्कृति लागू नहीं हो सकती, भले ये सारे तथाकथित अल्पसंख्यक देश छोड़कर चले भी जाएं। क्योंकि हिंदुओं में ही इतनी बहुलता है कि कोई सरकार चाहकर भी एकल संस्कृति लागू नहीं कर सकती है। अब बताइये इन पादरियों का इससे बड़ा और कोई फरेब हो सकता है? पादरियों के इस प्रकार झूठ चलाने के अभियान के प्रति सरकार को भी सतर्क होना चाहिए। ये आगे देश में सांप्रदायिकता फैलाने, देश को बदनाम करने या देश को बांटने का कोई बड़ षड्यंत्र रचे उससे पहले इसे सबक सिखा देना चाहिए। और ये काम कानूनी तरीके से सरकार ही कर सकती है।
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URL: conspirator goa church bishop spreading fear among the poor against country’s ruler
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