उत्तरप्रदेश सरकार निजी मदरसों का सर्वेक्षण कराना चाहती है किंतु मुस्लिम नेता और दीनीविस्तारक नहीं चाहते कि उनके मदरसों की निजता और गोपनीयता भंग की जाय। मुस्लिम नेताओं और दीनीविस्तारकों ने अपनी “स्वेच्छाचारिता संरक्षक नीतियों” के अंतर्गत सरकार पर आक्रमण कर दिया है, यह अपने वर्चस्व की स्थापना की दिशा में गजवा-ए-हिन्द की गतिविधियों के बचाव में एक वैचारिक एवं रक्षात्मक उपाय है। यह कोई नयी बात नहीं है, दुनिया भर में अ-सुरों द्वारा वैचारिक, सांस्कृतिक और सांहारिक आक्रमणों के समय अपनी नीतियों और गतिविधियों की निर्बाधता के लिए हर तरह के रक्षात्मक कवच की नीति अपनायी जाती रही है।
मुस्लिम नेताओं और दीनीविस्तारकों के अनुसार भारत के संविधान ने उन्हें अपनी दीनीतालीम की निजता और गोपनीयता बनाये रखने का अधिकार दिया है, वे भारत और उसके राज्यों की सरकारों का किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप सहन नहीं करेंगे, सिवाय इसके कि सरकारें उन्हें आर्थिक सहयोग देती रहें।
आल इण्डिया मुस्लिम इत्तिहादुल मुस्लमीन के नेता पवनराव अंबेडकर ने इस्लामिक गतिविधियों का समर्थन करते हुये बताया कि मदरसों का सर्वेक्षण मुस्लिमों को निशाना बनाने का बहाना है। उन्होंने कहा कि उत्तरप्रदेश में आतंकवादियों को पैदा करने वाली ग्यारह सौ वेद पाठशालायें संचालित हैं जिनका सर्वेक्षण सरकार को करवाना चाहिये। अंबेडकर ने प्रश्न किया कि मदरसे मुसलमानों के लिए हैं, सरकार उनकी स्वतंत्रता समाप्त कर उन पर अपना नियंत्रण क्यों करना चाहती है?
“आतंकवादी उत्पन्न करने वाली वेद पाठशालायें”! हमारे लिए यह नयी जानकारी थी, हमने छानबीन की तो पता लगा कि उत्तरप्रदेश में ग्यारस सौ नहीं बल्कि एक सौ छह निजी वेद पाठशालायें संचालित हो रही हैं। हमें ऐसा कोई सूत्र नहीं मिला जिससे प्रमाणित हो सके कि उत्तरप्रदेश ही नहीं बल्कि भारत की किसी भी वेदपाठशाला से पढ़कर निकले किसी छात्र ने आतंकवादी गतिविधि में किसी भी स्तर पर कोई सहभागिता की हो। पवन राव का यह कुटिल झूठ कलुषित मानसिकता का प्रतीक है।
क्या आपको नहीं लगता कि “सीएनबीसी आवाज” जैसे राष्ट्रीय टीवी चैनल पर इस तरह निराधार और षड्यंत्रकारी वक्तव्य देने के लिए पवन राव अंबेडकर के विरुद्ध देश भर में प्राथमिकी अंकित की जानी चाहिये!
क्या आपको नहीं लगता कि धर्म, सम्प्रदाय और जीवनशैली की भिन्नताओं के आधार पर भारत के विभाजन के बाद भी भारत में “आल इण्डिया मुस्लिम इत्तिहादुल मुस्लमीन” और इस जैसी अन्य इस्लामिक संस्थाओं, इस्लामिक गतिविधियों, दीनी तालीमों, मदरसों, मजारों, दरगाहों, मस्जिदों और हज हाउस आदि दीनीविस्तारक इस्लामिक संस्थाओं को संवैधानिक अधिकार प्रदान करना किसी दूरगामी षड्यंत्र का परिणाम है!
क्या आपको नहीं लगता कि धर्म-निरपेक्ष देश में धर्म-सापेक्ष विचारों के आधार पर नीतियों और योजनाओं का निर्माण किसी गम्भीर षड्यंत्र का हिस्सा है!
क्या आपको नहीं लगता कि सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देने की घोषणा करने वाले संविधान में अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों जैसी कूटरचित “सांख्यिकीय जातियों” एवं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, दलित, पिछड़ा वर्ग और सवर्ण जैसी विभेदकारी संज्ञाओं को शासन, प्रशासन और समाज के लिए महत्वपूर्ण बना देना भारत को खण्ड-खण्ड करने और भारत की समावेशी संस्कृति को समाप्त करने की योजना का एक हिस्सा है, जिसे सरकारों द्वारा कठोर कवच उपलब्ध करवाये गये हैं!
भारत के सनातनी-नागरिक इस देश के प्रधानमंत्री से जानना चाहते हैं कि यदि किसी समुदाय, समाज या देश के लिए किसी की निजता और स्वेच्छाचारिता के घातक और विनाशकारी होने की आशंका हो तो उस व्यक्ति या संस्था के विरुद्ध कोई दाण्डिक कार्यवाही क्यों नहीं होनी चाहिए? किसी देश का संविधान यदि अपने नागरिकों के प्रति समदृष्टी नहीं है और कूटरचित विभिन्न कारणों को आधार बनाकर विभेदकारी दृष्टि रखता है तो ऐसे संविधान को बदल दिया जाना ही न्यायोचित है।
साभार: कौशल किशोर मिश्रा।