मोदी सरकार ने उप सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत को जब से नए सेना प्रमुख बनाने की घोषणा की है, कांग्रेस और कम्युनिस्ट एक सुर में इसका विरोध कर रहे हैं! इसे केवल विरोधी पार्टी के विरोध के रूप में नहीं देखा जा सकता! जनरल विपिन रावत की प्रोफाइल और कांग्रेस-कम्युनिस्टों के अतीत को देखते हुए इससे साजिश की बू आ रही है! कांग्रेस और कम्युनिस्ट, दोनों का अतीत खुद के देश भारत से अधिक पाकिस्तान और चीन को प्राथमिकता देने का रहा है, इसलिए इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है!
पहले कम्युनिस्टों को लेते हैं! जनरल रावत की नियुक्ति पर CPI नेता डी राजा ने कहा, ‘सेना पूरे देश की है, सरकार को जवाब देना चाहिए कि आखिर कैसे ये नियुक्तियां की गईं? इन नियुक्तियों पर देश को भरोसे में लिया जाना चाहिए।’ पाठकों को मैं बताना चाहता हूं कि भारत-चीन की लड़ाई में कम्युनिस्टों ने न केवल खुलकर चीन का पक्ष लिया था, बल्कि चीन की मदद से भारतीय सेना में अपना एक गुप्त दस्ता भी तैनात किया था, जो भारतीय सेना को अंदर से तबाह करने के लिए किया गया था! मेरी जनवरी 2017 में आ रही पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ में आपको पता चलेगा कि किस तरह से हरकिशन सिंह सुरजीत को चीन की मदद करने और भारतीय सेना को तबाह करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी!
यहां यह बताना जरूरी है कि लेफ्टिनेंट जनरल रावत ने चीन के साथ लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा एवं पूर्वोत्तर समेत कई इलाकों में परिचालन संबंधी विभिन्न जिम्मेदारियां संभाली हैं। इसलिए यह अकारण नहीं है कि कम्युनिस्ट पार्टी उनकी नियुक्ति के विरोध में उतर आई है! चीन जिस तरह से हमारी सीमा पर घुसपैठ करता रहता है, वह कम्युनिस्टों की नीति के अनुकूल है! शायद चीन के हित को देखते हुए ही कम्युनिस्टों ने जनरल रावत के विरोध का फैसला किया हो! मेरी किताब में आपको इसकी पूरी जानकारी मिलेगी कि किस तरह चीन-भारत युद्ध में भारतीय सेना को कम्युनिस्टों ने टारगेट किया था!
अब कांग्रेस पर आते हैं! उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत की नए सेना प्रमुख के रूप में नियुक्ति को लेकर कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि ‘हर संस्था की अपनी मर्यादा होती है और वरिष्ठता का सम्मान किया जाता है! हम नए सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत की काबिलियत पर उंगली नहीं उठा रहे लेकिन सवाल उठता है कि आखिर क्यों वरिष्ठ अधिकारियों को छोड़कर वरियता क्रम में चौथे स्थान वाले अधिकारी को सेना प्रमुख नामित किया गया।’
पाठको को शायद याद हो कि जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है तब से कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर, पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद आदि पाकिस्तान के अंदर जाकर न केवल अपनी सरकार का विरोध कर रहे हैं, बल्कि पाकिस्तानियों से आह्वान भी कर रहे हैं कि मोदी सरकार को सत्ता से हटाएं! मेरी इसी किताब ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ में आपको भारत विभाजन के लिए हो रही बैठक में मौजूद रामामनोहर लोहिया से लेकर पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर हमले के दौरान प्रमुख कमांडर तक के बयान संदर्भ के साथ मिलेंगे कि किस तरह पंडित जवाहरलाल नेहरू का निर्णय जिन्ना और पाकिस्तान को फायदा पहुंचा रहा था! आजादी के बाद से आने वाली हर कांग्रेसी सरकार ने यही नीति अपना ली, तभी 2014 में मनमोहन सिंह सरकार से हटते ही कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर पाकिस्तानियों से मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने की मांग करते देखे गए! और उसके बाद से ही लगातार सीमा पर पाकिस्तानी हमला शुरू हो गया! यह क्या महज संयोग है?
मोदी सरकार के आने के बाद से हमारे करीब 90 जवान शहीद हो चुके हैं। और यह कहीं न कहीं कांग्रेसी आह्वान पर बाहरी शक्तियों द्वारा वर्तमान सरकार को सत्ता से हटाने के लिए उसके खिलाफ देश के अंदर प्रतिकूल माहौल बनाने का प्रयास हो सकता है! मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक के खिलाफ कांग्रेसी उपाध्यक्ष राहुल गांधी और कम्युनिस्ट पार्टी सहित कम्युनिस्ट विचारधारा वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के विरोध में आप इसे देख व समझ सकते हैं!
इसलिए मोदी सरकार ने जहां वर्तमान चुनौतियों जैसे- सीमा पार से जारी आतंकवाद, पश्चिम दिशा से जारी छद्म युद्ध और पूर्वोत्तर की स्थिति को देखते हुए लेफ्टिनेंट जनरल रावत को सबसे उपयुक्त पाया गया है, वहीं यह निर्णय कांग्रेस व कम्युनिस्टों को खल रही है! लेफ्टिनेंट जनरल रावत के पास पिछले तीन दशकों से भारतीय सेना में विभिन्न कार्यात्मक स्तरों पर एवं युद्ध क्षेत्रों में सेवाएं देने का बेहतरीन व्यावहारिक अनुभव है, जिसमें पाकिस्तान के साथ लगती नियंत्रण रेखा, चीन के साथ लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा और पूर्वोत्तर में उनका कार्य बेहद उल्लेखनीय है।
छनकर आ रही खबरें तो यह भी बताती है कि बर्मा के अंदर व पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक में जनरल रावत की उल्लेखनीय भूमिका रही है! यही कारण है कि जनरल रावत जहां राष्ट्र की सुरक्षा के लिए गंभीर मोदी सरकार के लिए सबसे उपयुक्त हैं, तो पाकिस्तान और चीन के हितों में आजादी के बाद से ही दुबले होते आ रहे कांग्रेसियों व कम्युनिस्टों के लिए गंभीर खतरा!
और हां, कांग्रेसी यह तर्क न दें कि इंदिरा गांधी ने 1971 में पाकिस्तान को तोड़ा था! इन्हें उस समय के अखबारों को पलटना चहिए, जिसमें तत्काल सेना प्रमुख मानेकशॉ ने साफ-साफ कहा था कि भारतीय सेना ने जिसे युद्ध के मैदान पर जीता था, राजनीतिक नेतृत्व उसे शिमला के टेबल पर हार गया! मानेकशॉ के इस बयान से इंदिरा इतनी डर गई थी कि उन्हें लगने लगा था कि सेना उनका तख्ता पलट कर सकती है। इसका खुलासा भी कम्युनिस्ट पर तीन पुस्तकों की श्रृंखला की मेरी दूसरी पुस्तक में होगी।