कमलेश कमल|जब जिंदगी और मौत के बीच चंद साँसों और कुछ पलों का फ़ासला हो; तो फालतू की सूचना नहीं देते। कम सूचना दें, लेकिन एकदम सही (verified) दें। स्वयं फोन नम्बर आदि चेक कर मदद करने आगे आएँ।
जितनी सूचना हो, उससे रत्ती भर भी अधिक न दें। डींग हाँकने से मदद नहीं होती। किसी को 1 सेकेंड भी उलझा कर न रखें। पूरा कंफर्म हो, तब भी कहें– अन्य जगहों पर भी कोशिश करते रहें।
कोरोना वैश्विक महामारी है। सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवा वाले देश भी पीक को नहीं संभाल सके। यहाँ भी स्थिति इतनी बुरी कभी नहीं थी। कहीं बेड या ऑक्सिजन होने से मिलेगा। उपलब्धता होने पर भी थोड़ी ही देर बाद कहीं न मिले, यह हो सकता है।
मिनट-मिनट पर किसी का हाल पूछना बेवकूफी है। कोई उपचार ढूंढें, आराम करे या आपको बताता रहे? मरीज़ को फोन कतई न करें…तकलीफ़ होती है। व्हाट्सएप करें!
सकारात्मक रहें! कोई अगर मदद न कर पाया, तो झुंझलाहट न हो। कोई आपके लिए सोचे, यही बहुत बड़ी बात है।
[नोट–साझा कर सकते हैं।]