पतंजलि द्वारा हाल ही में लांच की गयी कोरोनिल दवा की क्लिनिकल ट्राइल्स को लेकर जो विवाद था, अब उस पर से काफी हद तक परदा हट चुका है. राजस्थान के नेशनल इंस्टीट्यूट आंफ मेडिकल साइंस के चेयरमैन डां बी एस तोमर ने इस बात की पुष्टि की है कि क्लिनिकल ट्राइल्स को लेकर संबंधित विभागों से बाकायदा अनुमति ली गयी थी.
इंडिया टुडे की न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार तोमर ने इंडिया टुडे को दिये गये एक् इंटरव्यू में कहा है कि कोरोना वायरस ग्रस्त मरीज़ों पर क्लिनिकल ट्राइल्स करने की अनुमति क्लिनिकल ट्राइल्स रेजिस्ट्री नामक संस्थान से ली गयी थी जो कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद का ही एक हिस्सा है. उन्होने यह भी कहा कि उनके पास प्रमाण के तौर पर सभी अनुमति पत्र हैं.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार डां तोमर ने यह भा बताया कि नेशनल इंस्टीट्यूट आंफ मेडिकल साइंस के 100 मरीजों पर क्लिनिकल ट्राइल्स की गयी थीं जिनमे से 69 प्रतिशत 3 दिन में ठीक हो गये और पूरे 100 प्रतिशत 7 दिन में.
डां तोमर ने इस बात की भी पुष्टि की है कि कोरोनिल दवा में जितने भी इंग्रीडियंट्स यानि संघटक हैं, उन सभी की क्लिनिकल ट्राइल्स की गई हैं.
आचार्य बाल्कृष्ण जो कि पतंजलि के सी ई ओ हैं, उन्होने स्वयं अपने एक ट्वीट में पूरी क्लिनिकल ट्राइल प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया है. उन्होने कहा कि नेशनल इंस्टीट्यूट आंफ मेडिकल साइंस, जयपुर में ‘कोरोना पांज़िटिव मरीज़ों पर श्रासारी वटी व अणु तेल के साथ अश्वगंधा, गिलोय घनवटी और तुलसी घनवटी के घनसत्वों से निर्मित औषधियों का निर्धारित मात्रा में सफल क्लिनिकल परीक्षण किया गया, और औषधि प्रयोग के परिणामों को 23 जून 2020 को सार्वजनिक किया गया’.
आचार्य बालकृष्ण ने फिर इस बात की जानकारी दी कि किस प्रकार तीन मुख्य जड़ी बूटियों वाली कोरोनिल दवा को विधिवत पंजीकृत कराया गया.
कोरोनिल को लेकर जो भी विवाद खड़े हो रही हैं या इस दवाई की गुणवत्ता या फिर कोरोना वायरस को ठीक करने की उसकी क्षमता को लेकर पतंजलि पर जो भी आरोप लगाये जा रहे हैं, वे सब पूरी तरह पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं. इन कोई भी आरोपों को लेकर कोई ऐसा प्रमाण नही है जिससे ये सिद्ध हो सके कि पतंजलि ने किसी प्रोटोकांल का पालन नहीं किया या दवा को लेकर किसी प्रकार का झूठ बोला.
दवा को लेकर लगतार पतंजलि पर आरोप लगाये जा रहे हैं और वह अपनी सफाई में सिर्फ बातें नहीं कर रहा बल्कि बाकायदा प्रमाण प्रस्तुत कर रहा है. जबकि आरोप लगाने वाले सिर्फ पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर हवा में बातें कर र्हे हैं.
अब तो नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस ने भी कोरोना वायरस मरीज़ों पर क्लिनिकल ट्राइल्स होने की पुष्टि कर दी है. फिर इतना विवाद किस बात पर खड़ा किया जा रहा है? पतंजलि की दवाइयों का मज़ाक उड़ाने वाला एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है. ज़रा सोचिये अगर ऐसा ही कोई वीडियो किसी बड़ी दवाई कंपनी या विश्व स्वास्थ्य संगठन को लेकर वायरल हुआ होता तो अब तक कितनी बड़ा मुद्दा बन जाता है. बिना किसी आधार के आरोपों की झड़ी लगाना , इसे तो अब प्रोपोगैंडा ही कहेंगे न .
बिलकुल सही कहा है आपने। ये सिर्फ एक propaganda ही है