जब से पतंजलि की कोरोनिल दवा लांच हुई है, विवादों की झड़ी सी लग गयी है. दवा लांच होने के मिनटों बाद से ही सोशल मीडिया के वामपंथी वारियर्ज़ ने फेसबुक आदि फोरम्स पर युद्ध बिगुल छेड़ दिया कि ऐसे कैसे बाबा रामदेव बोल सकते हैं कि कोरोना वायरस की आयुर्वेदिक दवाई बनाई है? जब बड़ी बड़ी दवाई कंपनियां, वैक्सीन कंपनियां अभी तक कोरोना वायरस की दवा ढूंढ रही हैं, तो भला बाबा की क्या बिसात? कुछ इस प्रकार का माहौल वामपंथ के सोशल मीडिया वारियर्ज़ ने तैयार किया.
पहले इस बात को लेकर कोहराम मच गया कि पतंजलि ने अभी तक आयुष मंत्रालय को इस दवा की कोई जानकारी नहीं दी थी. फिर कोरोनिल को मंज़ूरी देने वाली लाइंसेंसिंग अथांरिटी ने ही कोरोनिल पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया. उत्तराखंड के आयुर्वेदिक विभाग ने दिव्य फार्मेसी को नोटिस जारी कर दिया है जिसमे कहा गया है कि पतंजलि को तो कोरोना वायरस के उपचार के नाम पर दवा बेचने का लाइसेंस ही नहीं मिला था. उसे तो इस दवा को बुखार, सांस की बीमारी के इलाज और इम्यूनिटी बूस्टर के तौर पर बेचने की अनुमति मिली थी. नोटिस में दिव्य फार्मेसी को चेतावनी भी दी गयी है कि यदि कोरोना वायरस के इलाज के नाम पर ये दवा बेची जायेगी तो दवा का लाइसेंस रद्द कर दिया जायेगा. अब ये बात बड़ी अजीबोगरीब प्रतीत होती है कि इतने सारे न्यूज़ चैनलों पर बाबा रामदेव की कोरोनिल दवा का लांच दिखाया गया. सारे राष्ट्रीय मीडिया ने इस दवा के लांच की तुरंत खबरें भी प्रकाशित कीं. बाबा रामदेव ने लान्च के समय क्लिनिक ट्राइल्स से जुड़े तथ्य भी पेश किये. राजस्थान के उस मेडिकल इंस्टीटयूट का नाम भी बताया जिसकी सांझेदारी में ये क्लिनिकल ट्राइल्स की गयी थीं. तो ऐसा कैसे हो सकता है कि आयुष मंत्रालय के पास इस दवा को लेकर कोई भी जानकारी नही है और उत्तराखंड के आयुर्वेदिक विभाग को भी इस बात का बिल्कुल आभास नहीं कि ये दवा तो कोरोना वायरस की दवा के नाम पर बेची जायेगी. चलिये एक पल के लिये ये भी मान लेते हैं कि बाबा रामदेव सिर्फ एक विशुद्ध व्यापारी हैं जो चाहते हैं कि उनकी कंपनी के उत्पाद अधिक से अधिक बिकें. लेकिन अगर इस दृष्टिकोण से भी सोचें तो इस बात का कोई औचित्य नही बनता कि एक इतना बड़ा व्यवसायी जिसने अपने बूते पर इतना बड़ा आयुर्वेदिक उत्पादों का बिज़नेस खड़ा किया, वह भला कोरोना वायरस की दवाई को लेकर झूठ और छल कपट का सहारा लेकर इतना बड़ा जोखिम क्यों उठायेगा? ज़ाहिर सी बात है इतना बड़ा जोखिम उठाने से तो किसी की भी विश्वसनीयता मिट्टी में मिल जायेगी. फिर एक ऐसा व्यक्ति जो कि देश के कितने ही लोगों के लिये एक प्रेरणा स्त्रोत है, जिसने योग को भारत के साधारण जन मानस तक पहुंचाया, भला वह कोरोना की दवाई को लेकर मनगढंत बातें क्यों करेगा? और इस बात का भी कोई औचित्य नज़र नही आता कि बिना आयुष मंत्रालय को किसी भी प्रकार की जानकारी दिये बिना इस प्रकार का लांच किया जायेगा.
आयुष मंत्रालय के मंत्री श्रीपद नायक ने कहा है कि कोरोनिल दवाई की रिपोर्ट अब पतंजलि आयुर्वेद ने आयुष मंत्रालय के समक्ष प्रस्तुत कर दी है. और रिपोर्ट की जांच पड़्ताल के बाद ही मंत्रालय इस दवा के विषय में कोई निर्णय लेगा. पतंजलि के सी ई ओ आचार्य बालकृष्ण के ट्विटर पेज पर आयुष मंत्रालय के स्वीकृति पत्र की स्कैंड कांपी भी है. इस पत्र में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि मंत्रालय के पास क्लिनिकल ट्रायल से संबंधित सारे ज़रूरी कागज़ पहुंच गये हैं और अब इनकी जांच पड़्ताल की जायेगी. तो इन सब प्रमाणों को देखकर तो यही लगता है कि पतंजलि आयुर्वेद तो बड़ी ही सहजता से सारे सवालों का जवाब दे रहा है. न तो बाबा रामदेव और न ही उनकी कंपनी का कोई भी दूसरा व्यक्ति इन सवालों को लेकर किसी प्रकार का कोई ड्रामा कर रहे हैं. बल्कि ड्रामा तो लगता है वे लोग कर रहे हैं जो शायद चाह्ते ही नहीं कि कोरोना के उपचार के लिये एक ऐसी आयुर्वेदिक दवा मार्केट में उतरे जो गरीब से गरीब व्यक्ति की पहुंच के भीतर हो.
इस बात की जांच पड़्ताल अवश्य होनी चाहिये कि कोरोनिल नामक यह दवा सभी तयशुदा मानद्डों पर खरी उतरती है या नहीं. लेकिन दवा के बाज़ार में आने से पहले ही, इससे जुड़ी जांच प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही दवा को खारिज कर देना तो एक प्रकार का प्रोपोगैंडा ही है. अभी हाल ही में कोरोना वायरस के उपचार के लिये भारत में एक एलोपैथी की दवा भी लांच हुई है. इसे लेकर कोई हड़्कम्प नहीं मचा, कोई सवाल नहीं पूछे गये. इस दवा की विश्वसनीयता पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं खड़े किये गये. सवाल यह है कि फिर आयुर्वेद की दवाइयों को लेकर ही आखिर इतनी आपत्ति क्यों? एलोपैथी की दवाइयों को अंतराष्ट्रीय स्तर का माना जाता है जबकि आयुर्वेदिक की दवाइयों का मखौल उड़ाया जाता है, इन्हे अवैज्ञानिक करार दे दिया जाता है. जबकि आयुर्वेदिक दवाइयों से कितने ही जटिल रोग तक ठीक हो जाते हैं. लेकिन जिस प्रकार से एलोपैथी का मार्केटिंग और पब्लिसिटी का वैश्विक जाल है, वैसा आयुर्वेद का बिल्कुल भी नहीं है तो इसी मामले में आयुर्वेद पिछड़ जाता है.
कुछ लोगों की प्रतिक्रिया तो,जैसे बाबा जहर बेचने
आ गए, 7 दिन और सब कुछ सत्य सामने,दे कोई
चुनौती …….?