सुमंत विद्वांस।
कुछ ही दिनों पहले भारत सरकार लोगों को याद दिलाना चाहती थी कि आपातकाल में कांग्रेस सरकार ने कितने अत्याचार किए थे।
उसी भारत सरकार के अधीन काम करने वाला सेंसर बोर्ड आज उसी आपातकाल पर बनी एक फिल्म की रिलीज में अड़ंगे डाल रहा है।
मुझे विश्वास है कि अधिकांश लोगों को इसमें भी कुछ गलत नहीं लगेगा। वर्तमान सरकार के समर्थक इस बात को सही ठहराने के लिए कुछ बेतुके तर्क भी अवश्य ही ले आएंगे। इसलिए मैं ज्यादा कुछ लिखने में अपना समय खराब नहीं करूंगा।
केवल दो बातें कहना आवश्यक समझता हूं।
पहली बात ये कि सेंसर बोर्ड सीधे भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन काम करता है। इसके सब सदस्यों की नियुक्ति भी सीधे भारत सरकार ही करती है।
दूसरी बात ये दोहराना चाहता हूं कि भारत कानून से नहीं, बल्कि अराजकता से चल रहा है। आप आज मुझसे अवश्य असहमत रहिए, लेकिन कुछ समय बाद आप मेरी बात का मतलब समझ जाएंगे।
यह तो स्वाभाविक है कि आपातकाल पर बनी फिल्म कांग्रेस के राज में रिलीज नहीं हो सकती, लेकिन ऐसी कोई फिल्म जब भाजपा का शासन होते हुए भी रिलीज न होने दी जाए, तो यह समझना कठिन नहीं है कि सरकार जैसी आपको दिख रही है, वैसी है नहीं।
यह बहुत दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि भारत आज इस दशा में है। लेकिन उससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि स्वयं को राष्ट्रवादी मानने वाले और भारत सरकार का समर्थन करने वाले लोगों को भी यह दिखाई नहीं दे रहा है।
भारत सरकार की आलोचना करते ही कुछ लोग यह प्रश्न लेकर कूद पड़ते हैं कि भाजपा से नाराजगी के कारण क्या कांग्रेस को जिता दें? उनकी बुद्धि में अभी तक यह बात नहीं गई है कि यह सब शोर-शिकायत कांग्रेस को जिताने के लिए नहीं है बल्कि भाजपा को यह याद दिलाने के लिए है कि वह कांग्रेस नहीं, भाजपा है और उसे भाजपा ही बने रहने चाहिए।
साभार: सुमंत विद्वांस के फेसबुक पेज से।