
ज्ञानवापी मस्जिद में वीडियोग्राफी कराने का कोर्ट का आदेश, मुस्लिमों की कमिटी ने कहा – नहीं करने देंगे, परिणाम भुगतने के लिए तैयार
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में स्थानीय कोर्ट द्वारा मस्जिद का वीडियोग्राफी कराने के निर्णय का अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद (प्रबंधन समिति) ने विरोध करने का निर्णय लिया है। बता दें कि स्थानीय कोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ मस्जिद कमिटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था।
कोर्ट के आदेश पर नियुक्त अधिवक्ता कमिश्नर की देखरेख में यह वीडियोग्राफी 6 और 7 मई को ज्ञानवापी मस्जिद में होनी है। कोर्ट ने इसकी रिपोर्ट 10 मई को देने के लिए कहा है। इस पर अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने कहा, “हम वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण के लिए मस्जिद परिसर में किसी के प्रवेश की अनुमति नहीं देंगे।” उन्होंने कहा कि वे परिणाम भुगतने के लिए तैयार हैं।
विवादित संपत्ति पर वक्फ कानून लागू नहीं
वहीं, इस मामले को लेकर मस्जिद कमिटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने गुरुवार (28 अप्रैल 2022) को इस याचिका को खारिज कर दिया। इस दौरान मंदिर पक्ष के वकील ने कहा कि काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे में विवादित संपत्ति पर वक्फ के प्रावधान लागू नहीं होते हैं। इसलिए यह वक्फ की संपत्ति नहीं है।
अधिवक्ता ने कहा, “जब 1995 का वक्फ कानून अस्तित्व में आया तो इस कानून में एक प्रावधान था कि वक्फ की संपत्ति को फिर से पंजीकृत कराया जाए, लेकिन विवादित संपत्ति को इस कानून के तहत पुनः पंजीकृत नहीं कराया गया। इसलिए विवादित संपत्ति वक्फ की संपत्ति नहीं है और इस कानून के प्रावधान यहाँ लागू नहीं होते।”
मंदिर के वकील ने दलील दी कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 4 यहाँ लागू नहीं होती, क्योंकि यहाँ एक प्राचीन मंदिर था। इसका निर्माण 15वीं शताब्दी से पूर्व कराया गया था। भगवान विवादित ढांचे के भीतर विराजमान हैं। यदि किसी भी तरह से मंदिर नष्ट किया भी गया है तो भी इसका धार्मिक चरित्र नहीं बदला है।
बता दें कि पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम की धारा 4, स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 को मौजूद स्थिति के मुताबिक, किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के परिवर्तन के संबंध में कोई वाद दायर करने या कानून कार्यवाही से रोकती है।
मंदिर तोड़कर बनाई गई मस्जिद
इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा गया कि मस्जिद विश्वेश्वर नाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई है। इस दौरान कोर्ट ने अपने आदेश में 1936 में अदालत द्वारा दिए गए आदेश को भी रेखांकित किया है। तर्क दिया गया कि पूर्व में दाखिल वाद केवल तीन मुस्लिमों से संबंधित था। वह सामान्य आदेश नहीं था। उस आदेश के आधार पर कोई दावा नहीं किया जा सकता है।
विवादित स्थल के ‘निरीक्षण और वीडियोग्राफी’ के लिए आयुक्त द्वारा श्रृंगार गौरी और अन्य देवी-देवताओं के मौजूद विग्रह के साक्ष्यों के संकलन को लेकर मंदिर पक्ष के अधिवक्ता ने अदालत में दलील दी। उन्होंने कहा कि सभी सबूतों और तथ्यों को देखें तो ज्ञानवापी मस्जिद चारों तरफ से चारदीवारी से घिरी हुई है, जो कि मस्जिद से काफी पुरानी है। जो चहारदीवारी है, वह मंदिर का हिस्सा है और मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है।
निचली कोर्ट ने वीडियोग्राफी का दिया था आदेश
वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी परिसर में स्थित माँ श्रृंगार गौरी और अन्य देव विग्रहों की पूजा अर्चना के मामले में मंगलवार (26 अप्रैल, 2022) को सीनियर डिवीजन के सिविल जज रवि कुमार ने फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा था कि इस बार ईद के बाद 10 मई से पहले एडवोकेट कमिश्नर से मौके का मुआयना करा वहाँ की वीडियोग्राफी कराई जाएगी। कमिश्नर द्वारा अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपने के बाद इस पर 10 मई को सुनवाई होगी।
रिपोर्ट के मुताबिक, माँ श्रृंगार गौरी और अन्य देव विग्रहों के बारे में स्थितियों का पता लगाने के लिए इसी महीने की 8 अप्रैल को अदालत ने एडवोकेट कमिश्नर को नियुक्त किया था। इसके बाद एडवोकेट कमिश्नर द्वारा कार्रवाई को लेकर 18 अप्रैल को कोर्ट में एक प्रार्थना पत्र दायर किया था। इसमें कहा गया था कि श्रृंगार गोरी बैरिकेडिंग के बाहर है। ऐसे में उसके अंदर मुस्लिमों और सुरक्षाकर्मियों के अलावा कोई और नहीं जा सकता। वीडियोग्राफी के लिए कोर्ट ने आवश्यक होने पर पुलिस बल की सहायता लेने के लिए भी कहा है।
कैसे शुरू हुआ वीडियोग्राफी का मामला
यह मामला 18 अगस्त 2021 का है, जब दिल्ली की रहने वाली राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता शाहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक की ओर से कोर्ट में एक याचिका दायर कर श्रृंगार माता के नियमित दर्शन और पूजा-अर्चना करने की इजाजत माँगी थी। उल्लेखनीय है कि ये याचिका हिंदू महासभा की ओर से दायर की गई थी। इसमें दावा किया गया था कि ऐसा न करने देना हिंदुओं के हितों का उल्लंघन होगा। इसमें विपक्ष के तौर पर अंजुमन इंतजामिया मसाजिद, वाराणसी के कमिश्नर, पुलिस कमिश्नर, जिले के डीएम और राज्य सरकार को चुना गया था।
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