Abhinav Kumar. अमेरिका में भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन ‘Covaxin’ के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी नहीं दी गयी। भारत में बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन होने के बावजूद अमेरिका की FDA ने ‘कोवैक्सीन’ को अमेरिका में इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी है। ऐसा लगता है कि अमेरिका की FDA ने भारत द्वारा फाइजर को भारत में अपनी वैक्सीन बेचने की अनुमति देने से माना कर देने के बाद प्रतिशोध के रूप में यह निर्णय लिया है।
यह सभी ने देखा है कि किस तरह फाइजर भारत में अपनी वैक्सीन बेचने के लिए तिकड़म लगा रहा था। अमेरिका की इस बिग फार्मा की मदद के लिए बाइडन प्रशासन भी मदद कर रहा था और कई raw material को भारत में निर्यात करने पर भी बैन लगा चुका था। अब FDA ने ‘कोवैक्सीन’ को Emergency Use Authorisation ही नहीं दिया है। हालाँकि, कहा जा रहा है कि डेटा की कमी के कारण ये फैसला लिया गया है।
अमेरिकी खाद्य और दवा नियामक यानी FDA ने इसके अमेरिकी साझेदार ओक्यूजेन इंक को सलाह दी है कि वो भारतीय वैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी हासिल करने के लिए और अधिक डेटा के साथ Biologics License Applications के तहत फिर से आवेदन करें। US फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा है कि उनके पास कोवैक्सिन को आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण देने के लिए अभी तक पर्याप्त डेटा नहीं है।
बता दें कि कोवैक्सीन भारत की पहली स्वदेशी वैक्सीन है। ओक्यूजेन ने गुरुवार को एक बयान में कहा था कि वो FDA की सलाह के अनुसार कोवैक्सीन के लिए BLA दाखिल करेगी। BLA , FDA की ‘पूर्ण अनुमोदन’ व्यवस्था है, जिसके तहत दवाओं और टीकों की मंजूरी दी जाती है। ऐसे में कोवैक्सीन को अमेरिकी मंजूरी मिलने में थोड़ा और वक्त लग सकता है। इसके साथ ही कुछ अतिरिक्त जानकारी और डेटा के लिए अनुरोध भी किया गया है। हालाँकि ओक्यूजेन ने अब स्पष्ट कहा है कि, ‘कंपनी अब कोवैक्सीन के लिए इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति पाने की कोशिश नहीं करेगी।’
अमेरिका में इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी न मिलने का मतलब ये नहीं है कि कोवैक्सीन में कोई कमी है बल्कि यह अमेरिका के FDA का भारतीय वैक्सीन के खिलाफ एजेंडा दिखाई देता है।
भारत बायोटेक की वैक्सीन सफल व कम लागत वाली है और दुनिया के हर कोने में पहुंच सकती है, इसकी सफलता ने अमेरिका की बिग फार्मा कंपनियों के एकाधिकार को समाप्त कर दिया है। पिछले कुछ समय में कोवैक्सीन के खिलाफ लिबरल ब्रिगेड का हमला तेज़ हुआ है और इसे discredit करने का हर प्रयास किया जा रहा है जिससे भारत के इस स्वदेशी वैक्सीन को बदनाम किया जा सके।
हालाँकि विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका में आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण (EUA) के लिए कोवैक्सिन पर विचार नहीं करने के निर्णय का WHO द्वारा भारतीय कोविड वैक्सीन फॉर इमरजेंसी यूज लिस्टिंग (ईयूएल) की चल रही समीक्षा पर कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है। इसका भारत के अपने टीकाकरण कार्यक्रम पर भी “कोई असर नहीं” पड़ेगा।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है जब अमेरिका ने वैक्सीन निर्माण हेतु कच्चे माल के export पर प्रतिबंध हटाने से इंकार किया था तब ठीक बाद ही अमेरिकी कंपनी Pfizer ने भारत में अपनी वैक्सीन बेचने का अनुरोध किया था परन्तु भारत ने उस अनुरोध को ठुकरा दिया था। इससे पहले भारत सरकार फरवरी में भी Pfizer के आवेदन को ठुकरा चुकी है। और पढ़ें: केंद्र ने अमेरिकी वैक्सीन को कहा न, अब Pfizer ने भारत सरकार को मानाने के लिए सात करोड़ डॉलर का दांव
Pfizer कंपनी के वैक्सीन से होने वाले साइडइफ़ेक्ट जैसे palsy, और anaphylaxis को देखते हुए भारत पहले ही इसके आवेदन को फरवरी में रिजेक्ट कर चुका है लेकिन फिर भी यह कंपनी बाइडन प्रशासन की मदद से अपनी वैक्सीन को बेचने के लिए हर तिकड़म लगा रही है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बाइडन Pfizer के फायदे के लिए काम कर रहे हैं क्योंकि Pfizer उनके राष्ट्रपति चुनाव के समय फंडिंग में सबसे आगे था। अब उसी के बदले अमेरिका भारत पर raw material की जगह Pfizer की वैक्सीन के लिए दबाव बनाना चाहता है।
कोवैक्सीन को अमेरिका में इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति नहीं मिलने के निर्णय का बहाना बना कर भारत में मौजूद भारत विरोधी तत्व कोवैक्सीन के खिलाफ माहौल बनाने की भरपूर कोशिश करेंगे। इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि अगर कोवैक्सीन को अमेरिका में Emergency Use Authorisation प्राप्त नहीं हुआ तो इसका कारण फाइजर का भारत में बुरी तरह फेल होना है जिसका प्रतिशोध कोवैक्सीन पर निकला जा रहा है।
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