विनीत नारायण।
आप लोगों ने जब यह पढ़ा होगा तो आपकी आस्था को बड़ा झटका लगा होगा। लेकिन मैं तो 2010 से किसी भी मंदिर का या कथा का प्रसाद नहीं खा रहा। क्योंकि मुझे पता था कि यह केवल तिरुपति की बात नहीं है, सभी मंदिरों में, भंडारों में 600-800 रुपये वाले सस्ते घी का उपयोग हो रहा है और यह घी और कुछ नहीं 50-55 रुपये किलो की चर्बी है। जब मैं यह कहता तो अंधे भक्त मुझे ही डाँटने लगते। कोई मानता नहीं था। कुछ ही मंदिरों ने देशी गाय के घी का उपयोग शुरू किया। अब तो लेबोरेटरी की रिपोर्ट आ गई है कि तिरुपति मंदिर का प्रसाद गाय की चर्बी और मछली के तेल से बनता था।
एक ओर गोपालकों और गोशालाओं के शुद्ध देशी गाय के घी को 0.01% लोग भी नहीं खरीद रहे। हजारों किलो शुद्ध घी पड़ा है और गोशालाओं को भीख मांगना पड़ रहा है। गोपालकों को गोवंश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। दूसरी ओर घी के नाम पर चर्बी हाथोंहाथ बिक जाती है क्योंकि 99.99% लोग यही मांगते हैं। इसीलिए 1 लाख से अधिक गायें रोज कटती हैं।
इसी को तमोगुणी बुद्धि कहा गया है कि 55 रुपये की चर्बी का घी 600-800 में महंगा नहीं लगता लेकिन 2500-3000 का घी इसी भाव में बहुत महंगा लगता है।
अब क्या करें?
जिनकी तमोगुणी बुद्धि है, वे देशी गाय का घी नहीं खा सकते। तिरुपति की घटना से जिनकी सात्विक बुद्धि जाग गई है। जिन्हें धन से मानवता, धर्म और स्वास्थ्य अधिक कीमती लगता है, वे तुरंत देशी गाय का घी बनानेवाले विश्वसनीय गोपालकों और गोशालाओं से संपर्क करें।
पथमेड़ा के पूज्य स्वामी दत्तशरणानंदजी-राजेन्द्रदासजी एवं कुछ संतों के कहने पर कई मंदिरों में दीपक व प्रसाद में देशी गाय के घी का उपयोग प्रारंभ हुआ। जिन्हें देशी गाय के घी की मिठाइयाँ चाहिए वे पथमेड़ा गोशाला की मिठाइयां खरीदें।
देशी गाय के घी की शुद्धता की पहचान के लिए गो-सुषमा से संपर्क करें।
022 4016 3439 / 8693 8693 45