- अनन्तश्रीविभूषित जगद्गुरु श्रीनिम्बार्काचार्य श्रीश्रीजी महाराज
श्वेता पुरोहित:-गौ समस्त प्राणियों की परम श्रेष्ठ शरण है, यह सम्पूर्ण विश्वकी माता है- ‘सर्वेषामेव भूतानां गावः शरणमुत्तमम्’, ‘गावो विश्वस्य मातरः ।‘ यह निखिलागमनिगमप्रतिपाद्य सर्ववन्दनीया एवं अमितशक्तिप्रदायिनी दिव्यस्वरूपा है। कोटि-कोटि देवताओं की दिव्य अधिष्ठान है। इसकी पूजा समस्त देवताओं की पूजा है। इसका निरादर समस्त देवताओं का निरादर है। यह भारतीय संस्कृति की प्रतीक- स्वरूपा है। परम दिव्यामृत को देनेवाली सकल हितकारिणी तथा सम्पूर्ण विश्व का पोषण करने वाली है। इसकी आराधना से सकल देववृन्द एवं विश्वनियन्ता भगवान् श्री सर्वेश्वर अतिशय प्रसन्न होते हैं। तभी तो वे व्रजराजकिशोर ‘गोपाल’ एवं ‘गोविन्द’ बनकर व्रज के वनोपवनों में, गिरिराज की मनोरम घाटियों में तथा कालिन्दी के कमनीय कूलोंपर नंगे चरणों असंख्य गोसमूहों के पीछे-पीछे अनुगमन करते हुए उनकी सेवा में निरत रहा करते थे। अग्निपुराण (२९२। १८) में कहा गया है-
गावः पवित्रं परमं गावो माङ्गल्यमुत्तमम् ।
गावः स्वर्गस्य सोपानं गावो धन्याः सनातनाः ॥
‘गायें परम पवित्र, परम मङ्गलमयी, स्वर्गकी सोपान, सनातन एवं धन्यस्वरूपा हैं।’
गवां हि तीर्थे वसतीह गङ्गा पुष्टिस्तथा तद्रजसि प्रवृद्धा।
लक्ष्मीः करीषे प्रणतौ च धर्म- स्तासां प्रणामं सततं च कुर्यात्॥
(विष्णुधर्मो० २। ४२। ५८)
‘गौ-रूपी तीर्थ में गङ्गा आदि सभी नदियों तथा तीर्थों का आवास है, उसकी परम पावन धूलि में पुष्टि विद्यमान है, उसके गोमय में साक्षात् लक्ष्मी है तथा इन्हें प्रणाम करने में धर्म सम्पन्न हो जाता है। अतः गोमाता सदा- सर्वदा प्रणाम करने योग्य है।’
शास्त्रों में स्थल-स्थल पर गौ की गरिमा, महिमा एवं सर्वोपादेयता निर्दिष्ट की गयी है। गौ का दर्शन, स्पर्श और अर्चन परम पुण्यमय है। गाय के स्पर्शमात्र से आयु बढ़ती है। भगवान् व्रजेन्द्रनन्दन श्रीश्यामसुन्दर ने गाण्डीवधारी अर्जुन को महाभारत के अनुशासन-पर्व (५१ । २७। ३२) में इस प्रकार उपदेश किया है-
कीर्तनं श्रवण दानं दर्शनं चापि पार्थिव।
गवां प्रशस्यते वीर सर्वपापहरं शिवम् ॥
निविष्टं गोकुलं यत्र श्वासं मुञ्चति निर्भयम् । विराजयति तं देशं पापं चास्यापकर्षति ॥
‘गोमाता की पुण्यमयी महिमा का कीर्तन, श्रवण, दर्शन एवं उसका दान सम्पूर्ण पापों को दूर करता है। निर्भय होकर जिस भूमि पर गाय श्वास लेती है वह परम शोभामयी है, वहाँ से पाप पलायित हो जाता है।’
भगवान् मनुने गोदान का फल कितना उत्कृष्ट बताया है-
‘अनडुहः श्रियं पुष्टां गोदो ब्रध्नस्य विष्टपम्’
अर्थात् ‘बैल को देने वाला अतुल सम्पत्ति तथा गाय को देने वाला दिव्यातिदिव्य सूर्यलोक को प्राप्त करता है।’
जिस भारत के धर्म, संस्कृति और विविध शास्त्र तथा सर्वद्रष्टा तत्त्वज्ञ ऋषि-मुनियों एवं आप्त महापुरुषों के अनेक उपदेश गोमाता की दिव्य महिमा से ओत-प्रोत हैं, जिस भारत की पुण्य वसुन्धरा सदा-सर्वदा से गौ के विमल यश से समग्र विश्व में अपनी दिव्य धवलिमा आलोकित करती आयी है, जिस भारत में अनन्त कोटि ब्रह्माण्डनायक, सर्वनियन्ता श्रीसर्वेश्वर भी ‘गोपाल’ बनकर गो महिमा की श्रेष्ठता, सर्वमूर्द्धन्यता बतलाते हैं, उस पवित्र भारत की दिव्य अवनि गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत के स्थान पर गोमाता के रक्त से रंजित की जा रही है। हमारी जनतन्त्र सरकार प्रतिदिन हजारों-हजार गायों को विविध प्रकार से निर्दयतापूर्वक भीषण यान्त्रिक यातनाओं के द्वारा मौत के घाट उतारती है। कैसा अकल्पनीय घोर अत्याचार है। जहाँ शास्त्र इस प्रकार का संदेश देता है- ‘अन्तकाय गोघातकम्’ अर्थात् गोघातक को प्राणदण्ड दिया जाना चाहिये। और अथर्ववेदका कहना है-
यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पूरुषम् । तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नोऽसो अवीरहा । ‘यदि तू हमारी गौ, घोड़े एवं पुरुषोंकी हत्या करता है तो हम सीसेकी गोलीसे तुझे बींध देंगे, जिससे तू हमारे
वीरों का वध न कर सके ।’ – वहाँ हत्या की तो बात दूर रही गौ की ताड़ना, उसे अपशब्द कहना, पैर से आघात करना, भूखी रखना तथा कठोरता से हाँकना आदि का भी शास्त्रों में निषेध किया गया है। इस सम्बन्ध में वेदादि निखिल शास्त्रों का एक स्वर से महान् उद्घोष है, किंतु महाघोर दुःख का विषय है कि उसके सर्वथा विपरीत आचरण करने वाली हमारी सरकार भारत की संस्कृति और धर्म को ठुकराकर मदान्धता से गोहत्या के जघन्यतम कृत्य में संलग्न है। क्या उसे अतीत का इतिहास स्मरण नहीं है ? हिरण्यकशिपु, रावण, कुम्भकर्ण, शिशुपाल तथा कंसादि का अभिमान चूर-चूर होकर विनष्ट हो गया। उनके अत्याचार का भीषण परिणाम उन्हें भोगना पड़ा। अतएव सत्ता के महामद में आकर सन्मार्ग को नहीं छोड़ बैठना चाहिये।
अहिंसा के पोषक भारत के शीर्षस्थ नेता लोकमान्य तिलक और महात्मा गाँधी के उपदेशों को विस्मरण कर सरकार का स्वेच्छाचारिता का अवलम्ब लेना देश की महान् प्रतिष्ठा को गहरी खाई में डालना है। भारत की सम्पूर्ण जनता की इस पवित्र माँग की सरकार उपेक्षा करती जा रही है। यह लोकतन्त्र का महान् उपहास और स्वार्थपरता का प्रत्यक्ष उदाहरण है। सरकार नाना प्रकार के तर्कहीन हेतु बता-बताकर भ्रान्त धारणा में डालकर स्वार्थ- सिद्धि के चक्कर में है, किंतु यह भारत की धर्मप्राण जनता धर्म के महत्त्व को भली प्रकार जानती है और अपनी गोमाता की रक्षा के लिये सर्वस्व बलिदान करने में कभी पीछे नहीं रहेगी।
सरकार को अब भी देश की समृद्धि तथा प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए सम्पूर्ण गोवध पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिये। धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक आदि सभी दृष्टियों से गोमाता परोपकारिणी है, इसका विनाश राष्ट्र का विनाश है। यह भारत की अतुलनीय अमूल्य सम्पत्ति है, अतः इसकी रक्षा राष्ट्र की रक्षा है।
गवां सेवा तु कर्तव्या गृहस्थैः पुण्यलिप्सुभिः ।
गवां सेवापरो यस्तु तस्य श्रीर्वर्धतेऽचिरात् ॥
अर्थात् प्रत्येक पुण्य की इच्छा रखने वाले सद्गृहस्थ को गायों की सेवा अवश्य करनी चाहिये, क्योंकि जो नित्य श्रद्धा-भक्ति से गायों की प्रयत्नपूर्वक सेवा करता है उसकी सम्पत्ति शीघ्र ही वृद्धि को प्राप्त होती है और नित्य वर्धमान रहती है।