रानी बचपन से चुलबुली लड़की थी। वह किसी से भी हंसकर तथा मुस्कुराहट के बीच खुलकर बात करती थी। जब रानी बीस साल की हुई तो उसके माता-पिता को उसकी शादी की चिंता सताने लगी। रानी जब शादी की बात सुनती तो अपने माता-पिता से मुंह फुला लेती थी। उसका कहना था कि आप लोग क्यों इस घर से रुखसत करना चाहती हो , क्या मैं इतना बोझ बन गई हूं? दीपक भैया भी तो इसी घर में रहते हैं ,उनको तो कोई कुछ नहीं बोलता ?
यह सुनकर उसकी मां राधिका देवी उसे समझाती, बेटी यह तो दुनिया का दस्तूर है और इसी परंपरा के चलते मैं तुम्हारे नाना- नानी का घर छोड़ कर यहां आई थी। वैसे भी शादी तो प्रत्येक माता पिता को अपनी लड़की की करनी ही होती है और तेरी भी शादी की अब उम्र हो गई है। यह सुनकर रानी मां का आंचल थाम कर मंद मंद मुस्कुराते हुए खिलखिलाने लगती थी।
रानी हर चीज से बेफिक्र अल्हड़ स्वभाव की थी । उसके तीखे नैन नक्श, रूप रंग ,आकर्षक चेहरा और उसकी स्माइल इस तरह की थी , की कोई भी उस पर फिदा हो जाए । रानी के पिता भी उसकी शादी को लेकर बहुत फिक्रमंद थे । रामप्रसाद रोज अपने नाते रिश्तेदारों से रानी की सुंदरता और मधुर स्वभाव के बारे में तारीफ के पुल बांधते रहते थे ताकि कोई अच्छा सा योग्य लड़का का रिश्ता बता दे और उनकी बेटी का हाथ पीले हो जाए। रामप्रसाद बताते रहते कि उनकी बेटी की हजारों में क्या लाखों में कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
खैर , समय बीतता गया इस दौरान कई लड़के वाले राम प्रसाद के घर आए और सुंदर- सुशील, रानी को देखा लेकिन आखिर में दान दहेज पर बात नहीं बन पाई , जिसके चलते रानी की शादी में दिक्कत पेश होने लगी थी।
रामप्रसाद और उनकी पत्नी राधिका देवी बेटी की शादी को लेकर अब मायूस हो चले थे वैसे इस मुद्दे पर जिस दिन रानी के घर चर्चा हो जाता उस दिन रानी भी बहुत दुखी हो जाती थी। एक दिन सुबह का वक्त था। रामप्रसाद अपने कमरे से रानी को चाय लाने का आवाज लगाने लगे लेकिन रानी का कोई जवाब नहीं आया। उसकी मां राधिका ने भी किचन से रानी को चाय लेकर अपने पापा के पास ले जाने के लिए जोड़ से आवाज लगाई लेकिन रानी तो घर में मौजूद ही नहीं थी जो उसे अपने माता-पिता की बातें सुनाई पड़ती।
राधिका किचन से बाहर आकर बेटी के कमरे में झांका तो बिस्तर खाली पड़ा था उसने सोचा शायद रानी बाथरूम गई हो लेकिन बाथरूम का दरवाजा तो खुला था। उसने यह बात रामप्रसाद को बताई फिर तो कोहराम मच गया। दोनों पति पत्नी भागकर अपने इकलौते बेटे दीपक के कमरे में गए जो अब तक सो रहा था। दंपत्ति अपने बेटे को जगाने के बाद मुख्य गेट की ओर भागे , जहां उन लोगों ने देखा की दरवाजा खुला है अब सबके बीच खुसर पुसर होने लगी ।
रामप्रसाद बोलने लगे इसका मतलब यह हुआ की रानी घर से भाग गई है। राधिका उन्हें भरोसा दिलाते हुए बोली नहीं -नहीं ऐसा नहीं हो सकता उसकी बेटी कहीं नहीं जा सकती, वह जल्द लौट आएगी। उधर, मेरा रामप्रसाद को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। एक -एक कर सारे रिश्तेदारों को फोन लगाकर रानी के बारे में पूछा लेकिन किसी ने भी यह हामी नहीं भरी कि उनके घर रानी आई है। इस बीच राधिका भी पड़ोस के सारे घरों के चक्कर लगा आई लेकिन रानी का कुछ भी अता-पता नहीं चला। दीपक भी रानी की एक एक सहेली को फोन करके उसके बारे में पूछा लेकिन सभी ने यही बताया कि रानी उनके घर नहीं आई है ।
शाम हो गई थी पति पत्नी और बेटा अचानक गुम हो गई रानी के बारे में चर्चा कर रहे थे । राम प्रसाद का कहना था की बेटी ने तो नाक कटवा दी, आज भर तो देख लेते हैं कि वापस आती है या नहीं, लेकिन कल पुलिस के पास जरूर उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने जाएंगे। इस बीच राम प्रसाद की फोन की घंटी बजने लगी।
उन्होंने कॉल उठाया तो दूसरी तरफ से एक लड़की की आवाज आई वह लड़की कोई नहीं उनकी बेटी रानी ही थी। रामप्रसाद को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह बोले बेटी तुम कहां चली गई हो। यह सुनकर रानी बोली पापा मैंने राजू से शादी कर लिया है , शादी ,राजू कौन राजू? वह पड़ोस वाला जो मार्बल दुकान में काम करता है ,जी पापा उधर से रानी बोली। अरे बेटा वह तो एक नंबर का नशेड़ी है उसके करतूतों से तो सारे पड़ोसी दुखी रहते हैं।
रामप्रसाद अपनी बेटी को समझाते हुए बोल पड़े तुझे भागकर शादी करने की क्या जरूरत आ गई थी। हम लोग तो तेरी शादी के लिए योग्य लड़के की तलाश कर ही तो रहे थे। यह दीगर बात है कि दान दहेज को लेकर बात बन नहीं पा रही थी लेकिन सुल्तानपुरी के एक लड़के से रिश्ते की बात फाइनल स्टेज में चल तो रही थी और जल्द ही तुम्हारा शादी तो करना ही था। पापा अब तो देर हो गई है मैंने मंदिर में राजू से शादी कर ली है और अब हम लोग एक साथ ही रहेंगे।
आप प्लीज बुरा मत मानिए और हम लोगों को आशीर्वाद दीजिए । बेटी की बात सुनकर रामप्रसाद की आंख भर आई उन्होंने उसे लाख समझाया कि वह नशेड़ी राजू का साथ छोड़ दें क्योंकि वह लड़का सही नहीं है लेकिन रानी नहीं मानी और जिद पर कायम रही।
इस बीच राधिका ने अपने पति को टोका और बोल पड़ी जब मेरी बेटी शादी कर ली है तो फिर क्यों उसे आशीर्वाद नहीं दे रहे हैं, आप तो अपनी जीवन भर की कमाई से उसके लिए दहेज सहेज नहीं आए और अब आशीर्वाद देने में भी कंजूसी कर रहे हैं। इस पर सुबकते हुए रामप्रसाद ने रानी से कहा कि चलो तुम लोगों ने शादी कर तो लिया है लेकिन मिलने तो आओ।
इस पर रानी ने शाम में मिलने को वादा किया और फिर उसने फोन काट दिया। जब शाम होने का वक्त हुआ तो राजू और रानी एक दूसरे का हाथ थामे हुए रामप्रसाद के घर में प्रवेश किया उस वक्त दीपक का तो खून खौल गया गया। क्योंकि राजू उनके मोहल्ले के ही एक मार्बल दुकान में काम करता था और एक नंबर का नशेड़ी था।
कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता था जब राजू शराब पीकर मोहल्ले वालों से गाली-गलौच नहीं कर लेता था। मोहल्ले वाले उसे रोज समझाते कि शराब इतना ज्यादा मत पियो ,इससे सेहत को खतरा हो सकता है लेकिन राजू किसी की बात कहां मानने वाला था। दीपक को इसलिए भी गुस्सा आ रहा था कि उनकी बहन को राजू में कौन सी ऐसी खूबी दिखाई दी जिसके चलते उसने इस लंपट से घर से भागकर शादी कर ली। खैर ,जब माता-पिता रानी को आशीर्वाद देने के लिए बुलाए हैं तो फिर मैं क्यों विलेन बनू।
यह बुद बुदाते दीपक वहां से अपने कमरे में चला गया। उधर रामप्रसाद और राधिका देवी ने अपने बेटी रानी का मुंह निहारते हुए कुछ पल के लिए गुस्सा तो किया लेकिन राजू के साथ जिंदगी बिताने की अनुमति देते हुए उसे खूब ढेर सारा आशीर्वाद भी दिया।
कुछ दिन तक तो रानी और राजू पहले उसी मोहल्ले में साथ रहे लेकिन राजू दूसरे मोहल्ले में पत्नी के साथ रहने चला गया । इस दौरान राजू की नौकरी भी किसी वजह से छूट गई और वह कोई और छोटे-मोटे काम करने लगा था। लेकिन राजू के शराब पीने की लत कम नहीं हुई और वह और ज्यादा शराब पीकर मदमस्त घूमा करता था उधर ,राजू और रानी एक दूसरे को पाकर बहुत खुश थे। रानी को राजू से दुकान आते जाते कब आंखें चार हो गई ,पता ही नहीं चल पाया। पहले तो दोनों एक दूसरे से छुप छुप कर मिलते रहे लेकिन बाद में दोनों ने भाग कर शादी रचा ली। राजू ज्यादा ही खुश था क्योंकि उसे बहुत सुंदर बीवी मिल गई थी।
वह दिन भर बीवी को एकटक निहारता रहता और राजू समय पर दुकान कभी नहीं जाता ,जिसके चलते उसके मालिक ने कई बार उसे खूब फटकारा लेकिन आदत में कोई बदलाव नहीं हुआ तो फिर बाद में उसे नौकरी से निकाल दिया। राजू ने कुछ दिनों तक पहले से जमा किए गए पूंजी को खर्च किया और घर से तभी बाहर निकलता जब उसे आटा चावल या फिर शराब पीना होता था । उसकी पत्नी ने उसे कई बार समझाया कि कोई काम धंधा ढंग से कर लिया करो लेकिन राजू कहां मानने वाला था वह तो निकम्मा और शराबी हो चुका था।
अब धीरे-धीरे राजू को अपनी पत्नी पर प्यार कम और गुस्सा ज्यादा आता था । इस दौरान रानी को अलग-अलग समय में पुत्र तथा पुत्री की प्राप्ति हुई लेकिन उसका स्वभाव बदला नहीं था वह आज भी राजू से इतना ही प्यार करती थी और उसकी खासियत थी कि वह पड़ोसियों से भी मधुर बर्ताव के साथ ही बातचीत करती थी । राजू को यह बिल्कुल पसंद नहीं था, वह हमेशा रानी के द्वारा हंस हंस कर बात करने को लेकर टोकता रहता था ।
उसे ऐसा लगता की रानी किसी न किसी एक दिन उसे छोड़ कर चली जाएगी। उसे तो पड़ोस में रहने वाले श्याम से रानी की बातचीत बिल्कुल पसंद नहीं थी। उसे ऐसा लगता था कि रानी श्याम के प्रति कुछ ज्यादा ही आकर्षित हो रही है। कुछ ही दिनों में राजू को लगने लगा को उसकी पत्नी और श्याम की जाल में फंस गई है क्योंकि वह उसके घर भी अब आने लगा था। यदि श्याम कभी घर नहीं आता तो रानी उसे फोन कर उसका हालचाल ले लेती थी लेकिन रानी श्याम को अपने भाई दीपक जैसा समझती थी लेकिन नशेड़ी राजू को यह सब क्या पता था।
एक दिन ऐसा भी आया जब राजू इस बात को लेकर इतना रानी से गुस्सा करने लगा कि वह मारपीट पर उतर आया था यह तो भला हो श्याम का जिसने मौके पर आकर उसे बचा लिया। बाद में रानी ने इस बात की जानकारी अपने माता पिता व भाई को दिया फिर रामप्रसाद रानी और उसके दोनों बच्चे को अपने घर ले गए थे।
राजू का जब गुस्सा शांत हुआ तब वह अपने ससुराल पहुंचा जहां माफी मांगकर बीवी बच्चों को घर ले आया लेकिन उसके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। रात का वक्त था और राजू नशे में रानी के कमरे में आया और श्याम से उसके संबंधों को लेकर फिर से झगड़ा करने लगा । कोलाहल से दोनों बच्चों की नींद टूट गई और दोनों अपनी मां से चिपक गए लेकिन राजू पर तो मानो भूत सवार था उसने अपने हाथ रखे हथौड़े से रानी के सिर पर दे मारा इस दौरान दोनों बेटे बेटियों ने जब पिता का हाथ पकड़ा तो गुस्से में उसने तीनों को मौत की नींद सुला दिया।
घटना की खबर रानी की मां-बाप तथा पुलिस को भी मिली, लेकिन तब तक राजू मौके से भाग खड़ा हुआ था। तिहरे हत्याकांड को लेकर रानी के माता पिता का कहना था कि इस घटना को सिर्फ राजू ने ही अंजाम दिया होगा क्योंकि उनकी बेटी दानव के चक्कर में पड़ गई थी जबकि वह एक नंबर का निकम्मा और नशेड़ी था।
घटना को लेकर माता-पिता तथा भाई का रोते-रोते हाल बुरा हो गया उधर पुलिस टीम तीनों शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम में भेजे जाने के बाद रानी के माता पिता तथा भाई के बयान लिए और उनसे मिली जानकारी के बाद उस शैतान को अगले दिन खोज निकाला जो पत्नी तथा बच्चों की हत्या कर अपने मूल गांव भागने के फिराक में था । पुलिस ने हैरानी जताई जिस समय आरोपी को पकड़ा गया उस समय भी वह शराब के नशे में धुत था।
आरोपी से जब पत्नी तथा बच्चों की हत्या के बाबत पूछा गया तो उसका जवाब था शराब के नशे में होने के चलते उसे कुछ भी याद नहीं है उसने पत्नी और बच्चों को क्यों मारा। पुलिस को भी समझ नहीं आ रहा यदि आरोपी को पत्नी से दिक्कत थी तो उसने उसे मारने की बजाय दोनों मासूम बच्चों को क्यों मौत की नींद सुला सुला दी। पुलिस ने आरोपी के कब्जे से खून सने कपड़े तथा वारदात में प्रयुक्त हथौड़े को जप्त किया तथा उसे कोर्ट में पेश किया जहां से राजू को जेल भेज दिया गया
नोट- स्टोरी में पात्रों के नाम काल्पनिक हैं और यह घटना हाल ही में बाहरी दिल्ली में घटित तिहरे हत्याकांड पर आधारित है।